हाल ही में नेशनल सैंपल सर्वे (NSS) की एक रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें बताया गया है कि देश में करीब 95 फीसदी लोगों के पास टेलीफोन या मोबाइल है. इसी सर्वे में बताया गया है कि 15 साल से ऊपर के करीब 40 फीसदी लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करना नहीं जानते. इन दोनों तथ्यों को एकसाथ देखें, तो हालात चिंताजनक नजर आते हैं. कैसे, इसे थोड़ा विस्तार से देखने की जरूरत है.
सर्वे में क्या है?
NSS के व्यापक सालाना मॉड्यूलर सर्वे (2022-23) के मुताबिक, देश में 15 साल से ऊपर के सिर्फ 60 फीसदी लोग ही इंटरनेट का इस्तेमाल करना जानते हैं. शहरी इलाकों में यह आंकड़ा 74 फीसदी है, जबकि ग्रामीण इलाकों में 54 फीसदी. सर्वे से साफ है कि देश में करीब-करीब हर हाथ में फोन है. लेकिन एक बहुत बड़ी आबादी के पास इंटरनेट की बुनियादी जानकारी नहीं है, जो खतरे की घंटी की तरह है. खासकर तब, जब साइबर फ्रॉड के मामले दिनोंदिन बढ़ते जा रहे हों.
साक्षरता का बदलता मतलब
सबसे पहली बात तो यह कि देश की तरक्की में सबका योगदान हो, इसके लिए लोगों का शिक्षित होना सबसे जरूरी है. पूरी तरह शिक्षित न सही, कम से कम साक्षर होने की तो दरकार है ही. तकनीक के इस युग में साक्षरता की पुरानी परिभाषा भी अपना अर्थ खोती जा रही है. एक समय साक्षर उसे माना जाता था, जो कम से कम पोस्टकार्ड पर खुद चिट्ठी लिख सके और किसी की लिखी हुई चिट्ठी को पढ़ सके. इसी तरह, आज साक्षर उसे माना जाना चाहिए, जो इंटरनेट से वाकिफ हो और इसके इस्तेमाल से किसी को मेल भेजना जानता हो.
आज के हालात पर सरसरी नजर डालें, तो मामला इतना सीधा नहीं है. आज भी मेल-आईडी क्रिएट करना और उसका पासवर्ड याद रखना बहुत लोगों के लिए टेढ़ी खीर है. इंटरनेट के इस्तेमाल की जानकारी रखने वालों में से भी कई लोग पासवर्ड को हमेशा के लिए मोबाइल में सेव रखते हैं. जाहिर है कि यह तरीका किसी बड़ी मुसीबत को दावत दे सकता है.
साइबर क्राइम की चुनौती
वैसे तो साइबर अपराधी पढ़े-लिखे और ऊंचे ओहदे पर बैठे लोगों को भी अपने जाल में फांस ले रहे हैं. इसके बावजूद, इस तरह की ठगी की एक बड़ी वजह है लोगों में इंटरनेट और इससे जुड़ी बुनियादी बातों की समझ न होना. मैलवेयर और अनसेफ वेबसाइट से क्या-क्या नुकसान हो सकते हैं, इतनी जागरुकता की अपेक्षा हर किसी से की जानी चाहिए. खासकर तब, जब आज हर हाथ में फोन है.
इंटरनेट के इस्तेमाल की सही जानकारी न होने से आइडेंटिटी की चोरी से लेकर बैंक खातों में सेंधमारी तक का खतरा हमेशा बना रहेगा. साइबर ठगी की घटना होने से पहले ही उसकी आहट पहचानी जा सके, इसके लिए भी इंटरनेट की बुनियादी जानकारी की दरकार है. खासकर तब, जब अपराधी 'तू डाल-डाल, मैं पात-पात' की कहावत चरितार्थ करते दिख रहे हों.
असल-नकल की पहचान
इंटरनेट लिटरेसी इसलिए भी जरूरी है, जिससे लोग असली और फर्जी जानकारियों के बीच आसानी से फर्क कर सकें. कौन-सी जानकारी किस सोर्स से आ रही है, किसके पीछे क्या मंशा हो सकती है, इसे ताड़ने में इंटरनेट की समझ मददगार हो सकती है. इसके अभाव में एक सीधे-सादे आदमी के लिए फोन पर हर रोज आने वाली कंटेंट की बाढ़ से पार पाना मुश्किल होगा.
अब टेक्स्ट, ऑडियो और वीडियो में किस हद तक और किस-किस स्तर पर छेड़छाड़ और मिलावट की जा सकती है, इसका अंदाजा लगाना हर किसी के लिए बहुत मुश्किल है. ऐसे में लोग फेक न्यूज और अफवाहों को सच मानकर उसे फॉरवर्ड कर सकते हैं. सोशल मीडिया पर नजर डालें, तो हर रोज इसके कई उदाहरण बिना खोजे दिख जाते हैं. ऐसी स्थिति में जानकारी ही सबसे बड़ा बचाव है.
प्राइवेसी का सवाल
अपनी निजी और संवेदनशील जानकारियों को किस तरह सुरक्षित रखा जाए, इसके लिए भी इंटरनेट की बुनियादी समझ जरूरी है. इस समझ के अभाव में लोग निजी जानकारी, जैसे लोकेशन, फोन नंबर, फोटो, पर्सनल डेटा आदि को अनजाने में शेयर कर सकते हैं. आज के दौर में बड़े पैमाने पर डेटा जुटाने और इस पर कब्जा जमाने के लिए किस कदर होड़ मची है, यह बात किसी से छुपी नहीं है. ऐसे में छोटी-सी भूल से भी किसी की प्राइवेसी और सुरक्षा के लिए खतरा पैदा हो सकता है.
दूसरी ओर, तकनीकी ज्ञान रखने का फायदा यह है कि इससे निजी चीजों को भी सुरक्षित तरीके से शेयर करना आसान हो जाता है. यहां भी वही बात सामने आती है कि फोन रखते हुए इंटरनेट की खूबियों-खामियों से परिचित होना बहुत जरूरी है.
'डिजिटल इंडिया' और जागरुकता
आज ज्यादातर सेवाएं पारंपरिक तरीकों से आगे बढ़ते हुए ऑनलाइन हो चुकी हैं. बैंकिंग, बीमा, शेयर बाजार, हेल्थ, एजुकेशन से लेकर तमाम सरकारी सेवाएं फोन की डिब्बी में समायी हुई हैं. इस स्थिति में 'डिजिटल इंडिया' के फायदों को अपने पक्ष में भुनाने के लिए कुछ बुनियादी शर्तों को तो पूरा किया ही जाना चाहिए. इन शर्तों में इंटरनेट से मेल-जोल पहले स्थान पर रखा जाना चाहिए.
जरा सोचकर देखिए कि साइबर ठगी करने वाला गिरोह किस मुस्तैदी से अपने गुर्गों को ट्रेनिंग देता होगा. वे वहां तक सोच लेते हैं, जिसकी काट निकालना हर किसी के लिए आसान न हो. ऐसे में बचाव के उपायों को भी उतनी ही मुस्तैदी से अपनाए जाने की दरकार होगी. मतलब, हर हाथ में फोन वाले देश को इंटरनेट लिटरेसी की दिशा में आगे बढ़ना ही होगा.
अमरेश सौरभ वरिष्ठ पत्रकार हैं... 'अमर उजाला', 'आज तक', 'क्विंट हिन्दी' और 'द लल्लनटॉप' में कार्यरत रहे हैं...
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