Amaresh Saurabh Blog
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लोकगीतों को संजोने के लिए कितना संवेदनशील है हमारा समाज?
- Friday November 22, 2024
- अमरेश सौरभ
लोकगीतों पर चर्चा के बीच भाषा और बोलियों की चर्चा अकारण नहीं है. देखिए कैसे. छठ हो या कोई अन्य तीज-त्योहार, जन्मदिन-छठी हो या शादी-विवाह, शारदा सिन्हा के गाए गीत हमें केवल इसलिए नहीं भाते हैं कि वे कर्णप्रिय हैं. वे गीत इसलिए भी हमारे जेहन में हमेशा के लिए घर कर जाते हैं, क्योंकि वे ज्यादातर उन बोलियों में रचे गए हैं, जिनसे किसी न किसी रूप में हमारा गहरा वास्ता रहा है.
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हर हाथ में फोन, पर इंटरनेट की बुनियादी जानकारी न होना खतरनाक!
- Thursday November 14, 2024
- अमरेश सौरभ
NSS के व्यापक सालाना मॉड्यूलर सर्वे (2022-23) के मुताबिक, देश में 15 साल से ऊपर के सिर्फ 60 फीसदी लोग ही इंटरनेट का इस्तेमाल करना जानते हैं. शहरी इलाकों में यह आंकड़ा 74 फीसदी है, जबकि ग्रामीण इलाकों में 54 फीसदी.
- ndtv.in
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सिर्फ बाहर उजाला करने से क्या होगा, रोशनी की सबसे ज्यादा जरूरत तो भीतर है!
- Tuesday October 29, 2024
- अमरेश सौरभ
प्रकाश के पर्व को जबरन कुछ गैरजरूरी चीजों से जोड़कर हम न केवल अपनी धरती और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि सेहत को भी खतरे में डालते हैं.
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सिर्फ़ वर्कलोड नहीं, कामकाज के बुनियादी मकसद पर भी बात होनी चाहिए
- Friday October 4, 2024
- अमरेश सौरभ
दिनकर जी एक जगह लिखते हैं, 'स्वर्ग की सुख-शांति है आराम में / किन्तु, पृथ्वी की अहर्निश काम में.' यहां शब्दार्थ नहीं, भावार्थ देखने की जरूरत है. यह समझने की जरूरत है कि इन पंक्तियों में कविवर के कहने का आशय क्या है.
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अपने देश में इस्तीफ़े का शास्त्र समझना इतना भी मुश्किल काम नहीं!
- Tuesday September 24, 2024
- अमरेश सौरभ
'त्यागपत्र' के शुरू में जो 'त्याग' शब्द लगा है न, इसे हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए. इस त्याग और त्याग की भावना की बदौलत ही संसार में कोई दधीचि बनकर अमर हो गए, कोई बुद्ध-महावीर बनकर. लेकिन इतिहास गवाह है कि इनमें से कोई भी अपनी सीट पर गमछा नहीं रख गए थे.
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हिंदी में नुक़्ता के इस्तेमाल की सीमा क्या हो, मीडिया किस राह पर चले?
- Saturday September 14, 2024
- अमरेश सौरभ
भाषा के कई विद्वान हिंदी में नुक़्ता का प्रयोग साफ तौर पर न किए जाने के पक्षधर हैं. इनका तर्क है कि बाहर से आए जिन शब्दों में नुक़्ता लगाया जाता है, उन शब्दों को अब हिंदी ने पूरी तरह अपना लिया है. जब वैसे शब्द हिंदी में पूरी तरह घुल-मिल चुके हैं, तो उन्हें हिंदी के बाकी शब्दों की तरह बिना नुक़्ता के ही लिखा जाना चाहिए. ज़्यादातर हिंदीभाषी उन शब्दों का उच्चारण भी वैसे ही करते हैं, जैसे उनमें नुक़्ता न लगा हो.
- ndtv.in
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हिन्दी में तेज़ी से फैल रहे इस 'वायरस' से बचना ज़रूरी है...!
- Saturday September 7, 2024
- अमरेश सौरभ
यहां हिंदी बोलने और लिखने में अंग्रेजी या दूसरी भाषाओं के शब्दों के बढ़ते इस्तेमाल की बात नहीं हो रही है. दूसरी भाषाओं के शब्दों को अपने में अच्छी तरह समा लेना तो अच्छी बात है. इससे तो हिंदी समृद्ध ही हो रही है.
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BLOG : सैलून में बाल कटवाने से पहले किताबें पढ़ने की शर्त शानदार है!
- Saturday August 31, 2024
- अमरेश सौरभ
ऐसा पाया गया है कि रोजाना कुछ देर किताबें पढ़ने से ब्लड-प्रेशर और तनाव से निपटने में मदद मिलती है. सोने से ठीक पहले किताबें पढ़ने से नींद की क्वालिटी में सुधार हो सकता है. पढ़ने की आदत से ब्रेन एक्टिव रहता है, जिससे मानसिक और भावनात्मक रूप से मजबूती हासिल करने में मदद मिलती है.
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माइक टायसन की वापसी यही कहती है - उम्र महज़ एक आंकड़ा है
- Wednesday August 21, 2024
- अमरेश सौरभ
माइक टायसन जब अपने प्रतिद्वंद्वी से भिड़ने के बाद रिंग से बाहर आएंगे, तो उनसे एक सवाल ज़रूर पूछा जाना चाहिए. यही कि वह भारत के गांव-गांव, शहर-शहर की ख़बरों पर पैनी नज़र रखते हैं क्या? आखिर उनके दिमाग में इस उम्र में रिंग में उतरने का खयाल आया कहां से?
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ओलम्पिक गेम्स के नतीजों में छुपे हैं सफल जीवन के कई सुनहरे सूत्र
- Tuesday August 13, 2024
- अमरेश सौरभ
पेरिस में आयोजित ओलम्पिक गेम्स ने देश-दुनिया का भरपूर मनोरंजन किया. हमारे हिस्से भी 6 मेडल आए, लेकिन इस तरह के खेल-आयोजनों को सिर्फ़ मेडल पाने या अवसर गंवाने के नज़रिये से देखना सही नहीं होगा. खेल और इनके नतीजे हर किसी के लिए कुछ बड़े सबक छोड़ जाते हैं, और यहां कुछ वैसे ही सुनहरे सूत्रों को समेटने की कोशिश की गई है.
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सिर्फ कोचिंग सेंटर का बेसमेंट नहीं, अपनी शिक्षा-व्यवस्था की बुनियाद भी जांचना ज़रूरी
- Wednesday August 7, 2024
- अमरेश सौरभ
ज़्यादातर स्टूडेंट जब एक बार किसी टीचर को आदर्श मान लेते हैं, किसी कोचिंग इंस्टीट्यूट को 'नंबर वन' समझ लेते हैं, तो वहां पढ़ने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं. खासकर सिविल सर्विसेज़ एग्ज़ाम के लिए, जहां सक्सेस रेट महज 0.2% के आसपास हो. बड़े नाम वाले कोचिंग की भीड़ ही साल-दर-साल और बड़ी भीड़ को खींच लाती है.
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ट्रैफ़िक रूल तोड़ने वाला 'स्पाइडर मैन' लोगों को क्या मैसेज देना चाहता है...?
- Monday July 29, 2024
- अमरेश सौरभ
नजफ़गढ़ वाले 'स्पाइडर मैन' का मैसेज भी एकदम क्लियर है. घर हो या सड़क, इंसान को इंसान की तरह जीने का सलीका भी आना चाहिए. खुद ही जाल बुनना, अपने ही जाल में फंसे रहना, फिर उसी में दम तोड़ देना क्या इंसानों का काम है?
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पैसों की तंगी के बावजूद CA, IAS या इंजीनियर बनने की खबरें सबको सम्मोहित क्यों करती हैं?
- Friday July 19, 2024
- अमरेश सौरभ
आर्थिक तंगी के बावजूद, कड़ी मेहनत के बूते बड़ी कामयाबी हासिल करने वालों की खबरें जब-तब आती रहती हैं. कभी किसी ऑटो-रिक्शा चालक की बेटी सिविल सर्विसेज की परीक्षा पास कर जाती है. कभी घर-घर काम करने वाली अम्मा का बेटा अचानक करोड़ों के पैकेज वाली नौकरी पा लेता है. सवाल है कि आखिर इस तरह की खबरें सबको अपनी ओर खींचती क्यों हैं?
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ये जो भीड़ है, धर्म का मर्म समझने में भूल कैसे कर देती है?
- Friday July 12, 2024
- अमरेश सौरभ
शास्त्रकार कहकर गए हैं कि अठारहों पुराण पढ़ने की फुर्सत न हो, तो कोई बात नहीं. इनमें सिर्फ दो ही बातें हैं- परोपकार पुण्य है, दूसरों को सताना पाप है. ठीक यही बात तुलसीबाबा भी कहते हैं- परहित के समान कोई धर्म नहीं, परपीड़न के समान कोई अधर्म नहीं.
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हमारे एजुकेशन सिस्टम में कहां-कहां 'रॉकेट साइंस' लगाने की जरूरत है?
- Friday July 5, 2024
- अमरेश सौरभ
हमारे यहां कौन-सी परीक्षा कैसे ली जाए, यह आज एक बड़ा मुद्दा बन चुका है. सड़क से लेकर संसद तक चर्चा हो रही है. परीक्षाओं में 'रॉकेट साइंस' लगाने की जरूरत पड़ रही है! लेकिन मसले और भी हैं. एजुकेशन सिस्टम में कई जगह 'रॉकेट साइंस' लगाने की दरकार है. कहां-कहां, जरा देखते चलिए.
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लोकगीतों को संजोने के लिए कितना संवेदनशील है हमारा समाज?
- Friday November 22, 2024
- अमरेश सौरभ
लोकगीतों पर चर्चा के बीच भाषा और बोलियों की चर्चा अकारण नहीं है. देखिए कैसे. छठ हो या कोई अन्य तीज-त्योहार, जन्मदिन-छठी हो या शादी-विवाह, शारदा सिन्हा के गाए गीत हमें केवल इसलिए नहीं भाते हैं कि वे कर्णप्रिय हैं. वे गीत इसलिए भी हमारे जेहन में हमेशा के लिए घर कर जाते हैं, क्योंकि वे ज्यादातर उन बोलियों में रचे गए हैं, जिनसे किसी न किसी रूप में हमारा गहरा वास्ता रहा है.
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हर हाथ में फोन, पर इंटरनेट की बुनियादी जानकारी न होना खतरनाक!
- Thursday November 14, 2024
- अमरेश सौरभ
NSS के व्यापक सालाना मॉड्यूलर सर्वे (2022-23) के मुताबिक, देश में 15 साल से ऊपर के सिर्फ 60 फीसदी लोग ही इंटरनेट का इस्तेमाल करना जानते हैं. शहरी इलाकों में यह आंकड़ा 74 फीसदी है, जबकि ग्रामीण इलाकों में 54 फीसदी.
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सिर्फ बाहर उजाला करने से क्या होगा, रोशनी की सबसे ज्यादा जरूरत तो भीतर है!
- Tuesday October 29, 2024
- अमरेश सौरभ
प्रकाश के पर्व को जबरन कुछ गैरजरूरी चीजों से जोड़कर हम न केवल अपनी धरती और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि सेहत को भी खतरे में डालते हैं.
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सिर्फ़ वर्कलोड नहीं, कामकाज के बुनियादी मकसद पर भी बात होनी चाहिए
- Friday October 4, 2024
- अमरेश सौरभ
दिनकर जी एक जगह लिखते हैं, 'स्वर्ग की सुख-शांति है आराम में / किन्तु, पृथ्वी की अहर्निश काम में.' यहां शब्दार्थ नहीं, भावार्थ देखने की जरूरत है. यह समझने की जरूरत है कि इन पंक्तियों में कविवर के कहने का आशय क्या है.
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अपने देश में इस्तीफ़े का शास्त्र समझना इतना भी मुश्किल काम नहीं!
- Tuesday September 24, 2024
- अमरेश सौरभ
'त्यागपत्र' के शुरू में जो 'त्याग' शब्द लगा है न, इसे हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए. इस त्याग और त्याग की भावना की बदौलत ही संसार में कोई दधीचि बनकर अमर हो गए, कोई बुद्ध-महावीर बनकर. लेकिन इतिहास गवाह है कि इनमें से कोई भी अपनी सीट पर गमछा नहीं रख गए थे.
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हिंदी में नुक़्ता के इस्तेमाल की सीमा क्या हो, मीडिया किस राह पर चले?
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- अमरेश सौरभ
भाषा के कई विद्वान हिंदी में नुक़्ता का प्रयोग साफ तौर पर न किए जाने के पक्षधर हैं. इनका तर्क है कि बाहर से आए जिन शब्दों में नुक़्ता लगाया जाता है, उन शब्दों को अब हिंदी ने पूरी तरह अपना लिया है. जब वैसे शब्द हिंदी में पूरी तरह घुल-मिल चुके हैं, तो उन्हें हिंदी के बाकी शब्दों की तरह बिना नुक़्ता के ही लिखा जाना चाहिए. ज़्यादातर हिंदीभाषी उन शब्दों का उच्चारण भी वैसे ही करते हैं, जैसे उनमें नुक़्ता न लगा हो.
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हिन्दी में तेज़ी से फैल रहे इस 'वायरस' से बचना ज़रूरी है...!
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यहां हिंदी बोलने और लिखने में अंग्रेजी या दूसरी भाषाओं के शब्दों के बढ़ते इस्तेमाल की बात नहीं हो रही है. दूसरी भाषाओं के शब्दों को अपने में अच्छी तरह समा लेना तो अच्छी बात है. इससे तो हिंदी समृद्ध ही हो रही है.
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BLOG : सैलून में बाल कटवाने से पहले किताबें पढ़ने की शर्त शानदार है!
- Saturday August 31, 2024
- अमरेश सौरभ
ऐसा पाया गया है कि रोजाना कुछ देर किताबें पढ़ने से ब्लड-प्रेशर और तनाव से निपटने में मदद मिलती है. सोने से ठीक पहले किताबें पढ़ने से नींद की क्वालिटी में सुधार हो सकता है. पढ़ने की आदत से ब्रेन एक्टिव रहता है, जिससे मानसिक और भावनात्मक रूप से मजबूती हासिल करने में मदद मिलती है.
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माइक टायसन की वापसी यही कहती है - उम्र महज़ एक आंकड़ा है
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- अमरेश सौरभ
माइक टायसन जब अपने प्रतिद्वंद्वी से भिड़ने के बाद रिंग से बाहर आएंगे, तो उनसे एक सवाल ज़रूर पूछा जाना चाहिए. यही कि वह भारत के गांव-गांव, शहर-शहर की ख़बरों पर पैनी नज़र रखते हैं क्या? आखिर उनके दिमाग में इस उम्र में रिंग में उतरने का खयाल आया कहां से?
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ओलम्पिक गेम्स के नतीजों में छुपे हैं सफल जीवन के कई सुनहरे सूत्र
- Tuesday August 13, 2024
- अमरेश सौरभ
पेरिस में आयोजित ओलम्पिक गेम्स ने देश-दुनिया का भरपूर मनोरंजन किया. हमारे हिस्से भी 6 मेडल आए, लेकिन इस तरह के खेल-आयोजनों को सिर्फ़ मेडल पाने या अवसर गंवाने के नज़रिये से देखना सही नहीं होगा. खेल और इनके नतीजे हर किसी के लिए कुछ बड़े सबक छोड़ जाते हैं, और यहां कुछ वैसे ही सुनहरे सूत्रों को समेटने की कोशिश की गई है.
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सिर्फ कोचिंग सेंटर का बेसमेंट नहीं, अपनी शिक्षा-व्यवस्था की बुनियाद भी जांचना ज़रूरी
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ज़्यादातर स्टूडेंट जब एक बार किसी टीचर को आदर्श मान लेते हैं, किसी कोचिंग इंस्टीट्यूट को 'नंबर वन' समझ लेते हैं, तो वहां पढ़ने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं. खासकर सिविल सर्विसेज़ एग्ज़ाम के लिए, जहां सक्सेस रेट महज 0.2% के आसपास हो. बड़े नाम वाले कोचिंग की भीड़ ही साल-दर-साल और बड़ी भीड़ को खींच लाती है.
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ट्रैफ़िक रूल तोड़ने वाला 'स्पाइडर मैन' लोगों को क्या मैसेज देना चाहता है...?
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- अमरेश सौरभ
नजफ़गढ़ वाले 'स्पाइडर मैन' का मैसेज भी एकदम क्लियर है. घर हो या सड़क, इंसान को इंसान की तरह जीने का सलीका भी आना चाहिए. खुद ही जाल बुनना, अपने ही जाल में फंसे रहना, फिर उसी में दम तोड़ देना क्या इंसानों का काम है?
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पैसों की तंगी के बावजूद CA, IAS या इंजीनियर बनने की खबरें सबको सम्मोहित क्यों करती हैं?
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- अमरेश सौरभ
आर्थिक तंगी के बावजूद, कड़ी मेहनत के बूते बड़ी कामयाबी हासिल करने वालों की खबरें जब-तब आती रहती हैं. कभी किसी ऑटो-रिक्शा चालक की बेटी सिविल सर्विसेज की परीक्षा पास कर जाती है. कभी घर-घर काम करने वाली अम्मा का बेटा अचानक करोड़ों के पैकेज वाली नौकरी पा लेता है. सवाल है कि आखिर इस तरह की खबरें सबको अपनी ओर खींचती क्यों हैं?
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ये जो भीड़ है, धर्म का मर्म समझने में भूल कैसे कर देती है?
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- अमरेश सौरभ
शास्त्रकार कहकर गए हैं कि अठारहों पुराण पढ़ने की फुर्सत न हो, तो कोई बात नहीं. इनमें सिर्फ दो ही बातें हैं- परोपकार पुण्य है, दूसरों को सताना पाप है. ठीक यही बात तुलसीबाबा भी कहते हैं- परहित के समान कोई धर्म नहीं, परपीड़न के समान कोई अधर्म नहीं.
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हमारे एजुकेशन सिस्टम में कहां-कहां 'रॉकेट साइंस' लगाने की जरूरत है?
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- अमरेश सौरभ
हमारे यहां कौन-सी परीक्षा कैसे ली जाए, यह आज एक बड़ा मुद्दा बन चुका है. सड़क से लेकर संसद तक चर्चा हो रही है. परीक्षाओं में 'रॉकेट साइंस' लगाने की जरूरत पड़ रही है! लेकिन मसले और भी हैं. एजुकेशन सिस्टम में कई जगह 'रॉकेट साइंस' लगाने की दरकार है. कहां-कहां, जरा देखते चलिए.
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