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This Article is From Mar 15, 2018

रेलवे में सभी खाली पद नहीं भरे जाएंगे, नौजवान उल्लू बनाए जाते रहेंगे

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मार्च 15, 2018 00:01 am IST
    • Published On मार्च 15, 2018 00:01 am IST
    • Last Updated On मार्च 15, 2018 00:01 am IST
रेलवे पर संसद की स्थाई समिति को रेल मंत्रालय ने कहा है कि उसका इरादा सभी ख़ाली पदों को भरने का नहीं है. वह अपने मुख्य कार्य के लिए पदों को भरेगी मगर बाकी काम के लिए आउटसोर्सिंग जैसा विकल्प देख रही है. यानी बहुत सारे पद ठेके पर दिए जाने हैं जिनका कुछ अता पता नहीं होता है. आप भी स्थाई समिति की रिपोर्ट के पेज नंबर 15 पर यह जवाब पढ़ सकते हैं.

रेल मंत्री गोयल को यह बात छात्रों से कह देनी चाहिए कि हमारी नीति सारे ख़ाली पदों को भरने की नहीं है. वैसे अब सरकारी नौकरी भी ठेके की नौकरी जैसी हो गई है. पेंशन नहीं है. कम वेतन में काम के अत्यधिक घंटे यहां भी हैं. तभी तो मंगलवार को रेलवे कर्मचारी पुरानी पेंशन व्यवस्था की बहाली की मांग को लेकर प्रदर्शन करने जुटे थे.

लोकसभा के मौजूदा सत्र में ही रेल मंत्री ने लिखित जवाब में कहा है कि रेलवे में 2 लाख 22 हज़ार से अधिक पद ख़ाली हैं. स्थाई समिति की रिपोर्ट में भी यही आंकड़ा है. नब्बे हज़ार पदों की भर्तियां निकली हैं मगर रेलवे में भरतियों को पूरा करने का औसत समय दो से तीन साल है. इसलिए कब किस वजह से ये अटक जाए और मुझे फिर से 2022 में मूर्ख बन चुके नौजवानों पर नौकरी सीरीज करनी पड़ सकती है. 90,000 भर्तियां निकली हैं मगर ख़ाली पदों की संख्या तो 2 लाख 22 हज़ार हैं. बाकी का एक लाख 30 हज़ार कब भरेगा? जब 2014 से 2019 के बीच वाले बूढ़े हो जाएंगे तब? आने वाले समय में हिन्दू मुस्लिम के नए नए वर्ज़न लांच किए जाने वाले हैं ताकि बेरोज़गारी का सवाल छोड़ दें और मंदिर निर्माण के सपने में खो जाएं.

बढ़ती बेरोज़गारी और बेरोज़गारों के ग़ुस्से से विपक्ष का जीभ लपलपा रहा है. मेरी राय में ग़ुस्से का लाभ न तो सत्ता पक्ष को मिलना चाहिए और न विपक्ष को. ग़ुस्से में दिया गया वोट ज़ीरो नतीजा ला रहा है. जैसे आप अपनी आँखों के सामने देख रहे हैं. आप नौजवानों को याद रखना चाहिए कि आपकी नौकरी जब नहीं निकल रही थी तब विपक्ष ने सवाल उठाया? उसके नेता सड़कों पर थे? जब सरकार लोकसभा में लिख कर दे रही है कि पांच साल से ख़ाली पड़े पद समाप्त किए जाएंगे तब विपक्ष ने पूछा कि ये पद ख़ाली कैसे रह गए, क्या इन पदों के लिए भर्तियां निकाली गईं थीं? सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों नौजवानों को उल्लू समझते हैं. कई बार नौजवान उनके झांसे में आकर इसे सही साबित कर देते हैं.

अवसरवादी और आलसी विपक्ष भी ऐसे सवालों पर हंगामा नहीं करता है क्योंकि ऐसी नीतियाँ तो उसी के दौर की हैं और उसके आने पर भी जारी रहेंगी.क्या विपक्ष उन नीतियों से पीछे हटने के लिए तैयार है? तो आप एक सवाल ख़ुद से पूछें ? क्या आपके ग़ुस्से का लाभ इन्हें मिलना चाहिए? जो नाराज़गी आपके लिए अवसर पैदा न कर सके, वो दूसरों के लिए क्यों करे?

27 दिनों तक लगातार नौकरी पर सीरीज करन के बाद भी किसी भी दल के मुख्य नेता ने चयन आयोगों की हालत पर कुछ नहीं कहा. किसी को नौकरी नहीं देनी है सबको बेरोज़गारी पर ग़ुस्से का लाभ उठाना है. पक्ष और विपक्ष के नेताओं का अहंकार बहुत बढ़ गया हैं. जिसके पास हज़ार हज़ार करोड़ मामूली चुनाव में फूंक देने के लिए हों ऐसे दो कौड़ी के नेता आपकी बेरोज़गारी के सवाल पर रो रहे होंगे, मुझे नहीं लगता. मगर आप ही इनके फेंके हुए टुकड़े पर सर पर पट्टी बाँध कर ज़िंदाबाद करते हैं.

इसलिए बेरोज़गारी के सवाल का जवाब तभी मिलेगा जब आप अपने सवालों के प्रति निष्ठावान रहेंगे. उस सवाल को काम करने के बेहतर हालात और सामाजिक सुरक्षा से जोड़ेंगे. हर तरह ग़ुलामी चल रही है. यह जिन नीतियों की वजह से है उनमें सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों की समान आस्था है. उनकी आस्था आपके सपनों और आपकी भूख में नहीं है.

आप नौजवानों ने देखा कि बैंकरों की कितनी हालत ख़राब है. वे ग़ुलाम की ज़िंदगी जी रहे हैं. उनकी कमर और गर्दन टूट चुकी है. वे तय नहीं कर पा रहे हैं कि बोलें या रोएँ. वे तय नहीं कर पा रहे हैं कि सिर्फ सैलरी ज़्यादा चाहिए या उस झूठ और धोखे से मुक्ति जो उन पर दबाव डाल कर किसानों और ग्राहकों से करवाया जा रहा है. वे तय नहीं कर पा रहे हैं कि मर जाने की हद तक बैंक में काम करते रहें या सेलरी के साथ इस सवाल को भी महत्वपूर्ण बना दें.

उनकी हालत पर कई दिनों से रिपोर्ट कर रहा हूं. किसी मुख्य नेता ने नहीं कहा. क्योंकि मूल मुद्दे के बहाने वे चाहते तो हैं कि उनके पक्ष में हवा बन जाए लेकिन आपका भला हो इसके लिए बोलते नहीं हैं. अपनी नीतियाँ बदलते नहीं हैं. क्योंकि उद्योगपतियों के लिए बैंक लूटे जाने की छूट के लाभार्थी वे भी रहे हैं.

नतीजा आज तेरह लाख बैंकर ग़ुलामी की ज़िंदगी जी रहे हैं. बैंकों में लाखों पद ख़ाली हैं मगर बहाली नहीं हो रही है. इसके लिए कौन नेता सड़कों पर आया है ? उन्हें नेता ख़रीदने और टिकट बेचने के रोज़गार से फुर्सत नहीं है.

गोरखपुर और फूलपुर में कोई वोट देने नहीं गया. लोगों ने घर बैठ कर ठीक किया . सत्ता पक्ष और विपक्ष की फालतू होती जा रही राजनीति के लिए आप कब तक लाइन में लगेंगे और मूर्ख बनेंगे. सरकार बदलती है. सिस्टम नहीं बदलता है.

किसी ने यूनिवर्सिटी सीरीज की हालत पर नहीं बोला. सब यही दुआ करते रहे कि इसी से जवान भड़क जाएं और सत्ता की गेंद उनके पाले में आ जाए. हालत तो इन्होंने भी बिगाड़ी और नीयत अभी भी पुरानी वाली है. सत्ता पक्ष आपको ग़ुलाम समझा है कि आप जाएंगे भी तो कहां जाएंगे. क्या आप ग़ुलाम समझे जाने से ख़ुश हैं ? जैसे आपको मूर्ख बनाया गया उसी तरह 18 साल के प्रथम मतदाताओं को खोजा जा रहा है ताकि नए लोगों को उल्लू बनाया जाए.

नौजवानों को यह पांच साल याद रखना चाहिए. जैसे नेताओं ने उन्हें घर बिठा दिया वैसे ही मतदान आने पर वे एक और दिन घर बैठ लें. नोटा तो है ही. अपने मुद्दे और ग़ुस्से के प्रति ईमानदार रहें वरना फिर कोई दूसरा बेईमान आपको लूट ले जाएगा.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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