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This Article is From Apr 30, 2018

क्‍या लालू से मिलकर राहुल ने कर लिया भ्रष्‍टाचार से समझौता?

Akhilesh Sharma
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 01, 2018 19:25 pm IST
    • Published On अप्रैल 30, 2018 21:16 pm IST
    • Last Updated On मई 01, 2018 19:25 pm IST
"अगर हमें इस देश में भ्रष्टाचार से लड़ना है तो हम चाहे कांग्रेस हों या फिर बीजेपी, हम छोटे समझौते नहीं कर सकत. क्योंकि जब हम ऐसे छोटे समझौते करते हैं तो हम हर चीज़ पर समझौता कर लेते हैं." ये मेरे शब्द नहीं हैं पर सुनने में बहुत अच्छे लगते हैं. खासतौर से तब जबकि कोई बड़ा नेता बोले. ये शब्द राहुल गांधी ने 27 सितंबर 2013 को प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में कहे थे. उस समय वे कांग्रेस के उपाध्यक्ष थे.

तो किस समझौते की बात कर रहे थे राहुल गांधी? दरअसल, जुलाई 2013 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया कि अगर कोई सांसद, विधायक, एमएलसी दोषी पाया जाता है और उसे दो साल की सजा होती है तो सदन से उसकी सदस्यता तुरंत चली जाएगी. इससे तब की यूपीए सरकार दबाव में आई क्योंकि न सिर्फ उसके एक राज्यसभा सांसद राशिद मसूद पर तलवार लटकी बल्कि सबसे भरोसेमंद सहयोगी लालू प्रसाद पर भी, जिन पर चारा घोटाले में जल्दी ही फैसला आने वाला था. तब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए पहले संसद में बिल रखा और उसके पारित न हो पाने पर अध्यादेश लाने का फैसला किया. इसकी तीखी आलोचना हुई.

तब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह विदेश यात्रा पर थे और कांग्रेस नेता अजय माकन दिल्ली में प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में एक प्रेस कांफ्रेंस कर रहे थे. वहां राहुल अचानक पहुंचे और उन्होंने अध्यादेश के बारे में कहा कि उनके विचार से यह अध्यादेश बेमतलब है. राहुल गांधी ने कहा कि इसे फाड़ देना चाहिए और फेंक देना चाहिए.

राहुल के इस बयान के बाद हड़कंप मचा. वो अजय माकन जो राहुल के आने से पहले तक पत्रकारों के बीच अध्यादेश का बचाव कर रहे थे, उनके जाते ही इसका विरोध करने लगे. विपक्ष ने कहा कि यह प्रधानमंत्री का अपमान है और प्रधानमंत्री बोले कि राहुल ने जो कहा उस पर कैबिनेट की बैठक में विचार करेंगे. इस बीच तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी भी इस पर ऐतराज़ कर चुके थे. कैबिनेट की बैठक हुई और अध्यादेश रद्दी की टोकरी के हवाले हो गया. इसके कुछ ही समय बाद लालू प्रसाद चारा घोटाले में दोषी पाए गए और उनकी संसद सदस्यता चली गई.

राहुल की जमकर वाहवाही हुई और इसे तब एक के बाद एक घोटालों की आंच झेल रही कांग्रेस में नए खून की आमद और ताजा हवा का झोंका बताया गया. देश को यह भी बताया कि बाद में राहुल और लालू की कभी नहीं बनी क्योंकि लालू को भ्रष्टाचार के आरोपों में दोषी पाया गया और राहुल उनसे दूरी रखना चाहते हैं. बिहार में 2015 में चुनाव के वक्त चाहे कांग्रेस ने आरजेडी और जेडीयू से हाथ मिला कर महागठबंधन बनाया लेकिन राहुल ने कभी लालू के साथ मंच साझा नहीं किया क्योंकि वे भ्रष्टाचार के विरोध में रहे.

यहां तक कि पिछले साल 27 अगस्त को जब पटना में लालू ने भाजपा भगाओ देश बचाओ रैली की तो उसी समय राहुल नॉर्वे की यात्रा पर थे. लेकिन बर्फ तब पिघली जब पिछले साल ही राहुल और तेजस्वी दिल्ली में लंच पर गए. रविवार को दिल्ली में कांग्रेस ने जन आक्रोश रैली की और राहुल ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर मोदी सरकार पर खूब आक्रोश जताया. उसके बाद वे आज दिल्ली के एम्स में भर्ती लालू प्रसाद से मिलने चले गए.

तो सवाल उठता है कि राहुल का सजायाफ्ता लालू से मिलना छोटा समझौता है या बड़ा समझौता? क्या लालू से मिलने के बाद भ्रष्टाचार के मुद्दे पर मोदी सरकार पर राहुल के हमलों की धार भोथरी हो जाएगी? या यह वक्त का तकाजा है कि भ्रष्टाचार की बात भूल कर एक हुआ जाए?

क्या राहुल ने लालू से इसलिए मुलाकात की क्योंकि उन्हें लगता है कि 2019 में बिना लालू के उनकी नाव पार नहीं लगेगी? क्या वे लालू से वैसा ही ठोस समर्थन चाहते हैं जैसा लालू उनकी मां सोनिया गांधी को लगातार देते रहे हैं मगर राहुल के नाम पर वे कभी सहमत नहीं दिखाई दिए.

जाहिर है इन सवालों के जवाब के लिए इंतज़ार करना होगा. लेकिन यह जरूर है कि लालू से मुलाकात कर राहुल गांधी ने खुद को सवालों के घेरे में खड़ा ज़रूर कर लिया है.

(अखिलेश शर्मा एनडीटीवी इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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