सतपाल मलिक को जम्मू-कश्मीर की कमान सौंपने के क्या हैं मायने...

सतपाल मलिक का वैचारिक दृष्टि से संघ के करीबी न होना भी जम्मू-कश्मीर में उन्हें राज्यपाल के तौर पर भेजे जाने की हो सकती है एक वजह

सतपाल मलिक को जम्मू-कश्मीर की कमान सौंपने के क्या हैं मायने...

जम्मू-कश्मीर में पहली बार किसी राजनीतिक व्यक्ति को राज्यपाल बनाकर केंद्र सरकार ने राज्य की जनता से सीधा रिश्ता बनाने का ठोस और महत्वपूर्ण संकेत दिया है. सतपाल मलिक को जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल ऐसे वक्त बनाया गया है जब राज्य में राज्यपाल शासन लगा है. बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रह चुके मलिक साल 2004 में बीजेपी में शामिल हुए. उनकी पृष्ठभूमि आरएसएस या बीजेपी की नहीं है. वैचारिक तौर पर वे समाजवादी नेता माने जाते हैं जो चौधरी चरण सिंह, वीपी सिंह और चंद्रशेखर के करीबी रहे. उनका वैचारिक दृष्टि से संघ के करीबी न होना भी जम्मू-कश्मीर में उन्हें राज्यपाल के तौर पर भेजे जाने की एक वजह रहा है ताकि कश्मीर घाटी के लोग उन पर भरोसा कर सकें और इसमें राज्यपाल के जरिए राज्य में सीधे शासन करने की काल्पनिक साजिश न देखें.

मलिक की तैनाती के बाद कुछ सवाल उठे हैं. क्या केंद्र सरकार संविधान की धारा 35 ए को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई पर एनएन वोहरा के रवैये से खुश नहीं थी? दूसरा यह कि क्या बीजेपी पीडीपी के बागी नेताओं को साथ लेकर सरकार बनाने की कोशिश करेगी?

पहले बात वोहरा की. 82 साल के वोहरा सबसे अधिक दस साल तक राज्यपाल रहे हैं. 2008 में राज्यपाल बनने से पांच साल पहले तक वे जम्मू-कश्मीर में बातचीत के लिए केंद्र सरकार के प्रतिनिधि रहे. पिछले कुछ महीने से राज्यपाल शासन लगने के बाद से उन पर सबकी नजरें लगी रहीं. हालांकि वे स्पष्ट कर चुके थे कि बढ़ती उम्र के कारण वे अब एक और कार्यकाल के इच्छुक नहीं हैं. केंद्र ने उन्हें अमरनाथ यात्रा समाप्त होने तक राज्यपाल बने रहने को कहा. उनके शासन में कई कश्मीरियों ने फर्क महसूस किया. उन्हें लगा जैसे प्रशासन को अधिक जिम्मेदार बनाया गया और आम लोगों की बातें सुनी गईं. लेकिन राज्य को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 35 ए पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई को लेकर राज्य बीजेपी और वोहरा के बीच मतभेद खुलकर सामने आ गए थे. राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि नगर और पंचायत चुनावों के मद्देनज़र सुनवाई टाल दी जाए. केंद्र इसे टकराव के रूप में नहीं देखना चाहता था. इसी के बाद उनके हटने की अटकलें शुरू हो गई थीं.

इस बीच केंद्र सरकार ने इशारा दिया कि वह किसी रिटायर्ड नौकरशाह या वरिष्ठ सेना अधिकारी के बदले किसी राजनेता को राज्यपाल बनाना चाहती है. राज्यपाल बनने के बाद मलिक ने कहा कि यह एक चुनौतीपूर्ण दायित्व है. उनकी पहली प्राथमिकता राज्य के लोगों का भरोसा जीतना है. एक राजनेता को राज्यपाल बनाने के संकेत पर मलिक ने कहा कि इसका संकेत यह है कि राज्यपाल लोगों के होने चाहिए. उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय मुफ्ती मोहम्मद सईद के साथ अपने रिश्तों को भी याद किया. दोनों वीपी सिंह सरकार में साथ काम कर चुके हैं. मलिक ने कहा है कि प्रधानमंत्री मोदी जम्मू-कश्मीर के बारे में हमेशा गंभीर रहे हैं. राज्य के विकास और तीनों इलाकों के बीच क्षेत्रीय असंतुलन को लेकर भी गंभीर रहे हैं और हर संकट के समय वे लोगों के साथ खड़े नज़र आए.

गौरतलब है कि पंद्रह अगस्त को लाल किले से अपने भाषण में पीएम मोदी ने जम्मू-कश्मीर का जिक्र करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सूत्र वाक्य जम्हूरियत, इंसानियत और कश्मीरियत का जिक्र किया था. इस बीच जानकारों का कहना है कि मलिक की जिम्मेदारी लोगों से संपर्क बढ़ाकर उनका भरोसा जीतने की होगी. रही बात सुरक्षा हालात की तो इसके लिए प्रशासन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के साथ नजदीकी के साथ काम करेगा. अगर वहां के हालात की बात करें तो गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि आज आतंकवादियों ने बीजेपी के कार्यकर्ता शबीर अहमद भट की पुलवामा में हत्या कर दी.

तो ऐसे में जबकि मोदी सरकार के सिर्फ आठ महीने बचे हैं, एक राजनीतिज्ञ को जम्मू-कश्मीर की कमान सौंपकर क्या केंद्र सरकार राज्य की अवाम को यह संदेश देना चाह रही है कि वह उनकी चिंताओं के प्रति संवेदनशील है? क्या मलिक को राज्यपाल बनाने से कश्मीर में जमीनी हालात पर कुछ असर पड़ेगा?


(अखिलेश शर्मा NDTV इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)

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