ये जगजाहिर है कि गोवा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए बेहद सौभाग्यशाली रहा है। गुजरात दंगों के बाद जब उन्हें गुजरात के मुख्यमंत्री से हटाने की बात चल रही थी, तब 2002 गोवा में हुई बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में ही पूरी पार्टी उनके पीछे खड़ी हो गई थी। पिछले साल गोवा में हुई बीजेपी कार्यकारिणी की बैठक में उन्हें चुनाव समिति की कमान सौंप कर प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में आगे बढ़ाया गया था। प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी का दिल्ली के बाहर पहला दौरा भी गोवा में ही था।
पर्रिकर इस पूरी तस्वीर में मोदी के साथ कुछ बाद में नजर आए। 2009 में उन्हें बीजेपी का अध्यक्ष बनाने की पूरी तैयारी हो गई थी। मगर तब लाल कृष्ण आडवाणी को ‘पुराना अचार’ बताने वाले उनके विवादास्पद बयान से मामला लटक गया। बाद में वे गोवा के मुख्यमंत्री बने और अपने बयानों को लेकर सुर्खियां बटोरते रहे। साफ-सुथरी, ईमानदार मगर आक्रामक छवि के लिए पर्रिकर मशहूर रहे हैं। काम करने और सादगी को लेकर उनकी तारीफ होती रही है। राज्य में वो आम लोगों के ही बीच रहते हैं। उन्हें सड़क पर बाकी लोगों के साथ चलते हुए देखा जा सकता है। आईआईटी से निकल कर मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने वाले वे देश के पहले नेता हैं।
गोवा में पर्रिकर ने मजबूत राजनीति की है। अच्छी खासी संख्या के ईसाई वोट वाले इस राज्य में पर्रिकर ने पार्टी को ताकत दिला कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दिल जीता। गौड़ सारस्वत ब्राह्मण पर्रिकर दो बार इस राज्य के मुख्यमंत्री बने हैं। राजनीतिक अस्थिरता, जोड़-तोड़ और धन बल के लिए कुख्यात गोवा की राजनीति में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। कुशल प्रशासक के तौर पर उन्होंने राज्य में छाप भी छोड़ी है। राज्य में पीएसी के अध्यक्ष के तौर पर अवैध खनन घोटालों के कई पहलुओं को जनता के सामने लाकर उन्होंने अपनी छवि बनाई।
शुरुआत में पर्रिकर दिल्ली आने को तैयार नहीं थे। हालांकि उन्हें काफी दिन पहले प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि वो दिल्ली आ कर रक्षा मंत्रालय संभालें। वित्त मंत्री अरुण जेटली का स्वास्थ्य बीच में खराब रहा और वो करीब एक महीने तक दफ्तर नहीं आ सके थे। ये शुरू से ही तय था कि जेटली को रक्षा मंत्रालय का प्रभार अस्थाई तौर पर दिया जा रहा है।
मुंबई में देवेंद्र फड़णवीस के शपथ ग्रहण समारोह में मोदी ने फिर उनसे कहा। और बुधवार को सारे काम छोड़ कर वो प्रदेश अध्यक्ष और संगठन सचिव के साथ दिल्ली आए जहां उन्हें साफ कर दिया गया कि उन्हें अब रक्षा मंत्री की ज़िम्मेदारी संभालनी होगी।
मोदी ने बहुत सोच समझकर पर्रिकर का चुनाव किया है। सरकार में वो मंत्रियों का चुनाव कोटा सिस्टम नहीं बल्कि योग्यता के आधार पर करना चाहते हैं। उन्हें इस बात का एहसास है कि मई में शायद उन्हें अपने मंत्रियों के चयन करने में कुछ जल्दबाजी हुई और इसीलिए कुछ मंत्रियों के पर कतरने की बात भी हो रही है। लेकिन रक्षा मंत्री के रूप में पर्रिकर को दिल्ली आना उनमें मोदी के भरोसे को भी दिखाता है।
मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के सफर में पर्रिकर ने खुल कर उनका साथ दिया। आडवाणी की नाराजगी को दरकिनार करते हुए पर्रिकर लगातार मोदी को प्रधानमंत्री को उम्मीदवार घोषित करने की मांग करते रहे। पिछले साल गोवा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में उन्होंने ये मांग भी की थी कि मोदी को बजाय प्रचार समिति का का प्रमुख बनाने के सीधा प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया जाए।
नई ज़िम्मेदारी के साथ पर्रिकर का कद बहुत ऊंचा हो गया है। बतौर रक्षा मंत्री वो सरकार के पांच शीर्ष नेताओं में से एक हो जाएंगे। वो कैबिनेट की रक्षा मामलों की समिति यानी सीसीए के सदस्य रहेंगे। सरकार में शामिल दो अन्य पूर्व बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी और एम वेंकैया नायडू को ये सम्मान नहीं मिल सका है। चीन और पाकिस्तान के साथ सीमा पर तनाव उनकी बड़ी चुनौती होगी। सेना के आधुनिकीकरण के लिए जेटली ने जो फैसले किए हैं उन्हें लागू करना और साथ ही नए हथियारों की खरीद जैसे काम भी उनके हवाले होंगे।
टैक्नोक्रेट की छवि वाले पर्रिकर को प्रधानमंत्री का पूरा विश्वास और समर्थन मिलेगा जो उनका काम आसान करेगा। 58 साल के मनोहर गोपालकृष्ण प्रभु पर्रिकर अब दिल्ली में अपनी नई सियासत की शुरुआत करेंगे।
This Article is From Nov 06, 2014
अखिलेश शर्मा की कलम से : पर्रिकर और मोदी का गोवा कनेक्शन
Akhilesh Sharma, Rajeev Mishra
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Updated:नवंबर 20, 2014 13:11 pm IST
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Published On नवंबर 06, 2014 20:42 pm IST
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Last Updated On नवंबर 20, 2014 13:11 pm IST
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