उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) अध्यक्ष अमित शाह कमर कस तैयार हो गए हैं। पार्टी ने राज्य में 14 वर्ष से चले आ रहे वनवास को खत्म करने के लिए ब्लूप्रिंट तैयार कर लिया है, और अगले आठ महीने उसी के हिसाब से काम किया जाएगा। पार्टी अभी अपनी सारी ऊर्जा बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं को संगठित करने में लगा रही है, और मुद्दों की पहचान कर राज्य की समाजवादी पार्टी सरकार को घेरने का काम भी साथ-साथ चलता रहेगा।
पार्टी के बेहद वरिष्ठ सूत्रों ने यूपी को लेकर बीजेपी की रणनीति को साझा किया। पार्टी का मानना है कि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में संगठन के हिसाब से परिस्थितियां ज्यादा कठिन थीं। राज्य में एक के बाद एक हार के चलते कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटा हुआ था। जमीनी स्तर पर संगठन गायब हो चुका था। सिर्फ 32 फीसदी बूथों पर ही पार्टी का संगठन मजबूत स्थिति में था। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह, जो उस वक्त महासचिव और यूपी के प्रभारी थे, उन्होंने बूथ स्तर पर ही पार्टी को मजबूत करने की कवायद शुरू की। आज बीजेपी के पास 87 फीसदी बूथों पर कार्यकर्ताओं की मजबूत टीम तैयार है।
शाह ने बीजेपी को जीतने का मंत्र दिया है। उन्होंने कहा है कि बूथ जीता तो पार्टी जीती। शाह यूपी के छह अलग-अलग क्षेत्रों में बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं का सम्मेलन कर रहे हैं। ऐसे दो सम्मेलन हो चुके हैं। एक में 18,500 तो दूसरे में 16,000 कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया। इन्हें कहा गया है कि उम्मीदवार चाहे कोई हो, उनका लक्ष्य सिर्फ कमल के फूल को जिताने का होना चाहिए।
"अब जनता का अखिलेश सरकार से मोहभंग हो चुका है..."
बीजेपी मानती है कि 2014 में सपा की अखिलेश यादव सरकार को आए सिर्फ दो साल हुए थे। तब युवा अखिलेश यादव को जनता ने उत्साह से स्वीकार किया था और सरकार के खिलाफ कोई माहौल नहीं था, लेकिन अब चार साल पूरे होने पर यूपी की जनता का अखिलेश सरकार से, खासतौर से कानून व्यवस्था के मुद्दे पर मोहभंग होने लगा है। बीजेपी इसे ही बड़ा मुद्दा बना रही है। यह मथुरा और कैराना को लेकर पार्टी के आक्रामक तेवरों से साफ भी है।
बीजेपी का आकलन है कि यूपी की परिस्थितियां बिहार से भिन्न हैं, जहां सभी विपक्षी पार्टियों के साथ आने से उसे मुंह की खानी पड़ी थी। पार्टी के शीर्ष नेता सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के बयान की ओर ध्यान दिलाते हैं, जिसमें उन्होंने बीएसपी से तालमेल की संभावना से इंकार किया। बीजेपी मानकर चल रही है कि यूपी में उसका, सपा और बसपा का त्रिकोणीय मुकाबला होगा। बीजेपी कांग्रेस को लड़ाई में गिन ही नहीं रही है। हालांकि पार्टी नेता इस सवाल पर चुप्पी साध लेते हैं कि अगर बीएसपी और कांग्रेस का तालमेल हो गया, तो मुस्लिम वोटों को एकजुट होने के लिए एक मंच मिल जाएगा और ऐसे में मुस्लिम, दलित और कुछ अगड़े वोटों का यह गठबंधन बीजेपी के लिए कड़ी चुनौती पेश कर सकता है।
बीएसपी को लेकर बीजेपी आशंकित नहीं...
दरअसल, बीएसपी को लेकर बीजेपी ज्यादा आशंकित नहीं है। पार्टी राज्य में लग रहे उन नारों की परवाह भी नहीं कर रही, जिनमें कहा जाता है 'सपा गई तो बसपा आई...' बीजेपी का कहना है कि लोकसभा चुनाव में बीएसपी को एक भी सीट नहीं मिली। सपा और बसपा दोनों का वोट प्रतिशत वहीं का वहीं रहा, जो उनका जातियों के आधार पर है। ऐसे में बीजेपी के लिए रास्ता आसान हो सकता है। पार्टी बीएसपी के दलित वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए जी-तोड़ मेहनत भी कर रही है। कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर सपा को, तो भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बसपा को निशाने पर रखा जा रहा है। पार्टी नेता याद दिला रहे हैं कि दो महीने पहले तक यह मानकर चला जा रहा था कि मायावती वापसी करेंगी, मगर मथुरा और कैराना में बीजेपी की आक्रामकता और इलाहाबाद कार्यकारिणी के बाद यूपी के लोग बीजेपी के बारे में भी चर्चा करने लगे हैं।
हालांकि पार्टी नेताओं को एहसास है कि मथुरा जैसी घटनाओं को उछालने से सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के मुख्य समर्थक यादवों के खिलाफ पेश करने जैसा संकेत न चला जाए। बीजेपी यह कहती है कि जाति-आधारित पार्टियां जब सत्ता में आती हैं, तो उनका उन जातियों के प्रति ज्यादा सहानुभूति वाला रवैया होता है। मगर मथुरा को लेकर बीजेपी का अभियान एक जातिविशेष के खिलाफ नहीं, बल्कि समाजवादी पार्टी सरकार के कामकाज के तरीके के खिलाफ रहेगा।
सपा के विकास के दावों की पोल खोलने की रणनीति...
बीजेपी ने सपा के विकास के दावों की भी पोल खोलने की रणनीति बनाई है। पार्टी किसानों के हितों के खिलाफ काम करने का भी आरोप लगाएगी। वरिष्ठ पार्टी नेता कहते हैं कि यूपी सरकार ने किसान फसल बीमा योजना में अभी तक टेंडर क्यों नहीं निकाला। अब खरीफ की फसल के लिए बीमा कैसे होगा। सिर्फ बैंकों से लिए गए लोन पर ही बीमा मिलेगा। इससे किसान बहुत नाराज हैं। बीजेपी इसे बड़ा मुद्दा बनाएगी।
सीएम उम्मीदवार का सवाल बीजेपी अभी तक हल नहीं कर पाई है। बिहार की नाकामी की याद दिलाने पर भड़के बीजेपी नेता कहते हैं महाराष्ट्र, झारखंड और हरियाणा में तो बीजेपी ने चेहरा नहीं दिया था, फिर भी वहां कामयाबी मिली। असम के हालात दूसरे थे। अभी प्रधानमंत्री, पार्टी अध्यक्ष और गृहमंत्री का चेहरा आगे कर ही पार्टी यूपी में उतरेगी। पीएम हर महीने रैली करेंगे। शाह और राजनाथ सिंह लगातार दौरे करते रहेंगे। इस बीच यूपी में सीएम उम्मीदवार घोषित करना है या नहीं, इसके बारे में कार्यकर्ताओं का फीडबैक लिया जाएगा और सर्वे कराए जाएंगे। सितंबर तक पार्टी फैसला करेगी।
कुल मिलाकर बीजेपी अपनी ओर से यूपी का महासंग्राम जीतने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। नर्म हिन्दुत्व और विकास, दोनों मुद्दों को लेकर आगे बढ़ा जाएगा, लेकिन ज्यादा जोर संगठन की मजूबती पर है। आरएसएस ने भी बीजेपी के इस महाअभियान में कंधे से कंधा मिलाकर काम करने और स्वयंसेवकों की अपनी फौज को झोंकने का फैसला किया है। बीजेपी लखनऊ के रास्ते दिल्ली आ गई है, और अब उसका इरादा दिल्ली होकर लखनऊ जाने का है।
अखिलेश शर्मा NDTV इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं...
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।
This Article is From Jun 16, 2016
लखनऊ के रास्ते 'दिल्ली' आई बीजेपी अब दिल्ली होकर 'लखनऊ' जाना चाहती है...
Akhilesh Sharma
- ब्लॉग,
-
Updated:जून 16, 2016 15:56 pm IST
-
Published On जून 16, 2016 11:05 am IST
-
Last Updated On जून 16, 2016 15:56 pm IST
-
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं
भारतीय जनता पार्टी, अमित शाह, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017, समाजवादी पार्टी सरकार, अखिलेश यादव सरकार, बीएसपी, Bharatiya Janata Party, Amit Shah, Uttar Pradesh Assembly Polls 2017, Samajwadi Party Government, Akhilesh Yadav Government, BSP