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This Article is From May 10, 2020

जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी

Ajay Singh
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 17, 2020 17:50 pm IST
    • Published On मई 10, 2020 23:03 pm IST
    • Last Updated On मई 17, 2020 17:50 pm IST

किसी मनुष्य की जिंदगी जिन पहलुओं के एक साथ जुड़ने से इंसानी जिंदगी की शक्ल अख्तियार करती है वो और कुछ नहीं बल्कि कपड़े का एक टुकड़ा आंचल होता है जो अंचरा बन बेटे को बड़ी से बड़ी मुसीबत से न सिर्फ बचता है बल्कि उसे ज़िन्दगी जीने के हर पाठ को भी सिखाता है. सिलसिलेवार जिंदगी के अलग-अलग पड़ाव पर ये आंचल ही होता है जिसकी तलाश हम सब को होती ही है. जब कोई स्त्री अर्द्धांगिनी बनती है तो ये आंचल ही होता है जो माध्यम बनता है. सात फेरों में पुरुष के साथ महिला इसी आंचल के जरिए जुड़ती है. या यूं कह लीजिए एक पुरुष इसी आंचल का सहारा लेकर नए जीवन की शुरुआत करता है. उम्र के इस पड़ाव पर वो जिस आंचल को थामता हैं वो ताउम्र आपके सुख दुख का साथी रहता है.

आंचल के और भी कई रूप होते हैं. ये बड़ी बहन का हो या बुआ का हो या फिर भाभी का हो, आपको इसकी करीबियत अच्छी लगती है. आंचल के किसी कोने में बंधी किसी गांठ की मानिंद रिश्तों की एक अजब पहेली का साथ भी आंचल से जुड़ा है. इंसानी जज्बातों से जुड़े इस आंचल की चाह हमारे देवताओं में भी रही है. शायद यही वजह है कि भगवान शिव हनुमान के रूप में अंजनी पुत्र बने तो भगवान विष्णु कौशल्या की कोख से जन्मे. आंचल और रिश्तों के ताने-बाने को कृष्ण यशोदा और देवकी के साथ याद दिलाते हैं. यही नहीं गोपियों और उनके साथ कृष्ण का रास प्रतीक रूप में आंचल की शाश्वत जरूरत को बता जाता है. इस्लाम में भी मां को बहुत बड़ा मुक़ाम अता किया गया है. कहते हैं कि मां की दुआ में जन्नत की हवा होती है, मां के कदमों को बोसा देना काबा की दहलीज पर बोसा देने के मुतरादिफ़ माना गया है.

किसी स्त्री के लिए भी मां बनाना दुनिया की सबसे बड़ी नेमत है. जब कोई बच्चा गर्भ में आ कर पहली बार मां होने का एहसास करता है तो पहले तो वो इस एहसास से अचंभित होती है. ये अचम्भा इस बात का भी होता है कि कैसे उसके अंदर आने वाला जीव अलग जीव होते हुए भी एक है. दोनों एक साथ सोते खाते जागते नौ महीने का सफर पूरा करते हैं. इस दौरान वो अपनी जननी के गर्भनाल (अंबिकल कॉर्ड) से जुड़ा होता है न कि किसी पिता से. इस नौ महीने में एक बेटी से मां बनने के सफर का जैसे जैसे पहले महीने के एहसास से शुरू होते हुए आगे बढ़ता है वैसे वैसे उसके अंदर परिवर्तन होने लगता है. ये परिवर्तन उस ज़िम्मेदारी का होता है जिसमें त्याग है, समर्पण है, अपने बच्चे के लिये मर मिटने का ज़ज़्बा है. उसके लिए दुनिया से लड़ जाने की ताक़त है और अपने लिए नहीं अब सिर्फ बाकी ज़िन्दगी उसी के सुख दुःख के लिए जीने के संकल्प का है. मां का अपने बच्चे से संबंध किसी स्वार्थ का नहीं होता वो तो निःस्वार्थ होता है. उसमें कोई शर्त नहीं होती जबकि दुनिया के सारे रिश्ते किसी न किसी स्वार्थ से जुड़े होते हैं.

न जाने कितनी रातें मां अपने बच्चे के लिये जागती हुई गुजारती है. उसकी ज़रा सी आह पर वो तड़प उठती है. बच्चा चाहे जैसा हो, तेज़ हो, बुद्धिमान हो, मंदबुद्धि हो, अपंग हो, अपाहिज हो, कुरूप हो, पर मां के लिये तो वो दुनिया का सबसे सुन्दर और योग्य बच्चा होता है जिस पर वो अपनी जान छिड़कती है. उसकी हर तकलीफ और कष्ट को अपने हिस्से ले लेती है और उसे सुख प्रदान करती है. जब  हम नासमझ होते हैं तो मां के इन सारे कामों को उसकी जिम्मेदारी समझते थे लेकिन आज मां नहीं है, वो दुनिया से हमें छोड़ कर जब गई तो अचानक हम बड़े हो गए क्योंकि उसके रहते तक तो हम बच्चे ही थे और तब आज उसकी उस जिम्मेदारी का भाव समझ में आ रहा है जिसमें सिर्फ मेरे प्रति निःस्वार्थ प्रेम की तड़प ही थी. आज उस भाव को समझ कर आंख के सारे आंसू बाहर आकर उसके पांव पखारना चाहते हैं पर आज वो नहीं हैं. खुशनसीब होते हैं वो इंसान जिसने मां की खिदमत की और मां की दुआएं हासिल की.

मां अपने बच्चे को कभी किसी और का हिस्सा नहीं बनने देना चाहती लेकिन सृष्टि की संरचना को आगे बढ़ाने के लिए, अपनी ही तरह किसी स्त्री को मां बनने का सुख देने के लिये, समाज और परिवार का अंश बढ़ाने के लिये अपने युवा पुत्र को अपनी बहू के हाथों में समर्पित करती है और उसे मां के आंचल से हटा कर पत्नी के आंचल का सामीप्य प्रदान कराती है. और फिर उनसे उत्पन्न संतति के अन्दर अपने पुत्र की छवि को देखते हुवे सारा प्यार और दुलार उड़ेलती है. यही वजह है कि अनादिकाल से मां का स्थान स्वर्ग से भी ऊंचा मानते हैं अर्थात "जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी."

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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