कहानी 2014 की है. देवेन्द्र फडणवीस मुख्यमंत्री बनने वाले थे. उसी वक्त में होने वाले मुख्यमंत्री को मैंने चाय के लिये व्यक्तिगत न्योता दिया. लोअर परेल में एक पांच सितारा होटल में मिलना तय हुआ. मैं अपने एक साथी के संग उनका इंतजार कर रहा था. वो अकेले ही आये. सामान्य शिष्टाचार के बाद देवेन्द्र फडणवीस ने सवाल पूछा कि आपको क्या लगता है, महाराष्ट्र में सबसे पहले क्या होना चाहिए, आपके हिसाब से नई सरकार का एजेंडा क्या होना चाहिये? नये होने वाले मुख्यमंत्री का पहले दिन से ही एजेंडे पर आना तब अच्छा लगा था. बात अनौपचारिक थी और मैं एक मुंबई के नागरिक के तौर पर उन से बात कर रहा था, मेरा पहला जबाव था - इस शहर को चरमराने से बचा लीजिये. शहर कहीं ऐसा न हो जाए कि रहने लायक ही न बचे. इस बातचीत में देवेन्द्र फडणवीस ने बातों ही बातों में कहा था कि आप चिंता मत करिये मुंबई बदल जाएगा. तब मेरे लिये ये बात किसी मुख्यमंत्री का दिखाया हसीन सपना था. लेकिन अब मैं ये मान सकता हूं कि ये बात उन्होंने यूं ही नहीं कही थी. खुद के अनुभव और शहर के लोगों की समस्या को उन्होंने देखा भी था. जब वो विपक्ष में थे तो उनसे आप बिना लाग लपेटे सारी बातें कर सकते थे. इन बातों में शहर की मुश्किलें भी शामिल थीं. मैंने तब दिल्ली की शीला दीक्षित सरकार का भी जिक्र किया था. उन्हें अपने अनुभव बताए थे कि कैसे एक मुख्यमंत्री ने सब कुछ दिल्ली में बदल दिया था.
बीजेपी के मुख्यमंत्री वाली देवेन्द्र फडणवीस सरकार ने अपना कामकाज शुरू किया. इस सरकार ने एक बड़ा कीर्तिमान तो राजनीति के लिहाज़ ये बनाया ही कि अरसे बाद फडणवीस पूरे पांच साल मुख्यमंत्री रहे. वो महाराष्ट्र में पूरे पांच साल पूरे करने वाले दूसरे मुख्यमंत्री बने थे. राजनीति से इतर ये पारी उस हसीन सपने के लिये बहुत जरूरी थी जो मेरे जैसे एक आम नागरिक को दिखाया गया था. कोलकाता को चरमराते हुये देखने की बात भी उस वक्त में हुई थी. एक मेट्रो अगर तेजी से खुद को न बदले तो क्या हो सकता है उसका उदाहरण कोलकाता के तब के ध्वस्त होते इंफ्रास्टक्चर को लेकर दिया जाता था.
फडणवीस मुंबई बदलने के सपने को लेकर गंभीर थे. ये उनके कामकाज में भी दिखता रहा. एक के बाद एक कई प्रोजेक्ट लांच किये गये. सी लिंक, न्हावा शेवा, मेट्रो जैसे प्रोजेक्ट पर बात हुई तो लगता था कि सब दूर की कौड़ी हैं. सरकारें सपने दिखा कर चली जाती हैं. उसी दौर में पता लगा कि मुख्यमंत्री बनने के बाद से लगातार फडणवीस एक वॉर रूम चला रहे हैं. ये वॅार रूम तमाम इंफ्रा प्रोजेक्ट को लेकर है. खुद मुख्यमंत्री वहां जाकर स्टेट्स लिया करते थे. शहर को बदलने वाले प्रोजेक्ट की शुरुआत युद्ध स्तर पर चल रही थी. शहर को बदलाव चाहिये और हर हाल में पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ाना होगा, शहर को चरमराने से बचाना होगा ये उस पांच साल के कामकाज में साफ दिखा था. आज मुंबई में एक के बाद एक जो प्रोजेक्ट पूरे हो रहे हैं और हरी झंड़ी दिखाई जा रही है उनकी नींव में शहर को बदलने का हसीन सपना है. जिसका गवाह मैं खुद हूं.
मुंबई शहर आपको एक बड़ी कंस्ट्रक्शन साइट लग सकता है. शहर में बहुत कुछ पुराना तोड़ा जाएगा. नया बनेगा. चरमराकर टूटने से कहीं बेहतर है कि फिर से नये बनाने में सारी ताकत लग जाए. कल तक जो सपने लगते थे अगर वो हकीकत लग रहे हैं तो फडणवीस का इसमें बड़ा रोल है. फडणवीस शहर के हसीन सपने के लिये एक राजनीतिक लागत चुकाने को भी तैयार थे ये क्रेडिट उनको जरूर दिया जाना चाहिये. मेट्रो को लेकर जो भी विवाद हुये उनमें मीडिया का एक बड़ा वर्ग उनसे इत्तफाक नहीं रखता था. विरोध भी हुये. लेकिन एक नेता के तौर पर उन्होंने जो तय किया था वो किया.
अभिषेक शर्मा NDTV इंडिया के मुंबई के संपादक रहे हैं... वह आपातकाल के बाद की राजनीतिक लामबंदी पर लगातार लेखन करते रहे हैं...
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