आम आदमी पार्टी ने शनिवार को अपना मेनिफेस्टो जारी किया, जिसमें बिजली की दरें आधी करने और मुफ्त पानी मुहैया कराने समेत 70 तरह की घोषणाएं पार्टी ने कीं।
खास बात जिस पर मेरी नजर गई वो यह कि पार्टी ने वादे निभाने की कोई डेडलाइन तय नहीं की। जैसे पिछले चुनावों में पार्टी ने ऐलान किया था कि सरकार बनने के 15 दिन के भीतर रामलीला मैदान में लोकपाल बिल पास किया जाएगा या फिर सालभर में।
लेकिन पहले तो सरकार लेट बनी और फिर बिल लेट आया। लोकपाल बिल पास तो क्या होता, विधानसभा में रखा ही नहीं जा सका और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सरकार से इस्तीफा दे दिया।
यही नहीं, दिल्ली लोकपाल बिल पर केंद्र की यूपीए सरकार और दिल्ली की केजरीवाल सरकार में ऐसी ठनी कि केंद्र सरकार ने कहा कि पहले बिल केंद्र को भेजिए और मंजूरी लेकर ही विधानसभा में रखिए, लेकिन केजरीवाल सरकार अड़ गई और बिना मंजूरी के ही बिल विधानसभा में पेश करने की कोशिश की। सदन में बिल पेश नहीं हो पाया और केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया।
इस बार अगर आम आदमी पार्टी सत्ता में आई तो क्या करेगी और कैसे करेगी? क्योंकि मैनिफेस्टो में 'आप' का पहला वादा लोकपाल का है, लेकिन इस बार पार्टी ने इस पर कोई डेडलाइन नहीं दी है।
'आप' की मेनिफेस्टो कमिटी के प्रमुख आशीष खेतान से जब इस मुद्दे पर पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि हम इस बार डेडलाइन देकर बेमतलब का विवाद नहीं करना चाहते, क्योंकि मान लीजिए कि अगर 15 दिन में काम नहीं हो पाता है, तो अनावश्यक समस्या होती है और दबाव बन जाता है... हम सारे काम जल्द से जल्द करने की कोशिश करेंगे...आप कह सकते है कि हम नए हैं और अपनी गलतियों से सीख रहे हैं।
क्या इस बार भी लोकपाल पर केंद्र से टकराएगी आप सरकार? खेतान का साफ कहना है कि जो भी संविधान में होगा हम उसको मानकर ही आगे बढ़ेंगे। यानी पार्टी अगर सरकार में आती है तो बेमतलब के टकराव से अब बचना चाहेगी।
इससे साफ है कि पहले बहुत जल्दी में रहने वाली यह पार्टी अब राजनीति सीख रही है, इसलिए डेडलाइन और टकराव से बचते हुए पांच साल में दिल्ली बदलने की बात कर रही है। वह समझ रही है कि राजनीति ऐसे ही होती है।