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This Article is From Jun 11, 2019

दिल्ली में 50 डिग्री का अलार्म

Sudhir Jain
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जून 12, 2019 09:27 am IST
    • Published On जून 11, 2019 23:06 pm IST
    • Last Updated On जून 12, 2019 09:27 am IST

10 जून को दिल्ली गर्मी से झुलसने लगी. पारा ज्ञात इतिहास के सारे रिकॉर्ड तोड़कर 48 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच गया. मामला मौसम का है. इस पर किसी का बस नहीं है सो करने के लिए ज्यादा बात बनती नहीं है. एक दो हफ्ते में नहीं तो दो तीन हफ्ते बाद पानी गिरेगा ही. भूल जाएंगे कि इस साल गर्मियों में क्या हुआ था. लेकिन रिकॉर्ड तोड़ तापमान की घटना आगे के लिए दिल्ली को कोई चेतावनी तो नहीं है?

आखिर देश की राजधानी है दिल्ली
बेशक राजस्थान का चूरू नहीं है दिल्ली. और न बुंदेलखंड का महोबा या बांदा जैसा जिला है. दिल्ली दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में एक भारत की राजधानी है. यहां की हर हलचल दुनिया के लिए खबर बनती है. इसीलिए राजधानी पर गर्मी के कहर को मौसमी कहकर छोड़ देना ठीक नहीं है. कम से कम यह तो पक्का कर ही लेना पड़ेगा कि कहीं अपनी राजधानी पर कोई आफत आने का संकेत तो नहीं है यह? इसीलिए वक्त की मांग है कि दिल्ली के 48 डिग्री के बहाने पुरानी राजधानियों के इतिहास पर नज़र डाल लें. और अगर कुछ करना या एहतियात बरतना बनता हो तो सोच लें.

दिल्ली बनने के पीछे यमुना
इस पर विवाद नहीं है कि दिल्ली के दिल्ली होने के पीछे यमुना है. दुनिया में जितनी सभ्यताएं विकसित हुईं वे सब की सब नदियों से जुड़ी हैं. इसीलिए ज्ञात इतिहास से लेकर आज तक नदियों के महत्व को कभी भी नहीं नकारा गया. सिर्फ पानी ही नहीं बल्कि आबोहवा को भी नदियां तय करती हैं. इसीलिए दिल्ली में रिकॉर्ड तोड़ तापमान को दिल्ली में पानी की कमी से भी जोड़कर देख लेने में हर्ज नहीं है. सनद रहे कि नदियां ही नहीं बल्कि तालाब, हॉज, झीलें भी देश और रियासतों की राजधानियों के बनने और बिगड़ने से जुड़ी हैं. इस बात को इतिहास में झांककर समझते हैं.

फतेहपुर सीकरी और अकबर की राजधानी
अकबर को फतेहरपुर सीकरी को क्यों छोड़ना पड़ा. सबको पता है कि यह पानी की कमी और भीषण गर्मी के कारण हुआ था. ऐसा नहीं था कि अकबर फतेहपुर सीकरी को राजधानी बनाने पर भारी खर्चा करने के बाद और खर्चा करके वहां तक पानी लाने का इंतजाम कर नहीं सकते थे. चार सौ साल पहले की इस घटना के समय अकबर के सामने बुंदेलखंड की रियासतों की राजधानियों के उदाहरण मौजूद थे. मसलन बुंदेलखंड में चंदेलों की राजधानी महोबा के तालाब उनके सामने थे.

चंदेल राजधानी का जल प्रबंधन आबोहवा के लिए भी था
बुंदेलखंड गर्मी और पानी की कमी के लिए आज कुख्यात है. पहले ऐसा नहीं था. चंदेलों की राजधानी महोबा में सात तालाबों की श्रृंखला आज के जल प्रबंधकों में बड़ा कौतूहल पैदा करती है. आज तक समझा नहीं जा सका कि एक हजार साल पहले चंदेलों की राजधानी की जमीन पर खेती या व्यापारिक इमारतों या बाजार की बजाए चारों तरफ तालाब ही तालाब क्यों बनवाए गए होंगे. एक शोध परिकल्पना है कि पीने के पानी के अलावा गर्मी से झुलसते इस इलाके को ठंडा रखने के लिए भी ये तालाब बनावाए गए. अंग्रेज प्रशासक इन प्राचीन तालाबों को वाटर शीट यानी पानी की चादर कहते थे. कहते हैं कि अपने समय में ये तालाब इतने बड़े थे कि लगातार कई साल तक सूखा पड़ने के बावजूद सूखा नहीं करते थे. और किसी भी साल कितनी भी ज्यादा बारिश होने के बावजूद इलाके में गिरा पानी इन तालाबों के डूबक्षेत्र से बाहर नहीं जाया करता था. इस बारे में एनडीटीवी के इसी स्तंभ में एक आलेख दो साल पहले लिखा जा चुका है. प्राचीन भारतीय इतिहास में चंदेलों का यश और प्रशस्ति यूं ही नहीं है. अगर एक ऐतिहासिक धरोहर के रूप में अपनी राजधानी दिल्ली को कभी बचाने के उपाय तलाशने की जरूरत पड़ी तो फतेहपुर सीकरी का कटु अनुभव और चंदेलों का प्रबंधन बहुत काम आएगा.

मोहम्मद तुगलक ने दिल्ली में क्यों बनाया सतपुला बांध
राजनीतिक कारणों से मोहम्मद तुगलक की कितनी भी आलोचना होती रहे लेकिन दिल्ली के उसके एतिहासिक कामों के खंडहर आज भी बोलते हैं. उसका बनवाया सतपुला बैराज या बांध आज विश्व धरोहर है. चैदहवीं सदी में बने इस मघ्ययुगीन जल निकाय के डूब क्षेत्र में आज दक्षिणी दिल्ली बस गई. और भले ही इसके जल ग्रहण क्षेत्र में विश्व की सबसे संपन्न रिहाइशी बसावट हो गई हो लेकिन सतपुला के खंडहर बता रहे हैं कि उस समय तुगलक की राजधानी दिल्ली में गर्मी का मौसम कैसा रहता होगा. कई कारणों से कम ही लोग जानते हैं कि मोहम्मद तुगलक का शौक नगर नियोजन और वास्तुकला में था. अगर वास्तुकला और नगर नियोजन के विद्वान तुगलग के कार्यों पर शोध में लगेंगे तो दिल्ली को दीर्घजीवी बनाने के कई सुझाव मिल सकते हैं. दिल्ली में झुलसाती गर्मी की बात करते हुए दिल्ली के हौजखास के इतिहास को भी पलटकर देख लेना चाहिए.

दिल्ली में यमुना की हालत
कहते हैं कि दिल्ली में यमुना का पाट साल दर साल सिकुड़ता ही जा रहा है. जब देखो तब यमुना के तटबंध मजबूत बनाए जाते दिखते हैं. पिछले सौ साल में दोनों किनारों के बीच की दूरी कितनी कम होती चली गई इसकी भी पड़ताल होनी चहिए. बेशक गर्मियों में यमुना में अब पानी न के बराबर दिखता है. लेकिन बारिश के दिनों में यमुना के किनारे के खेत पानी से लबालब भरते रहे होंगे. दिल्ली में सैकड़ों तालाब राजस्व विभाग के रिकॉर्ड में ज़रूर जिंदा होंगे. अगर ढ़ूढ़ने लिकलेंगे तो इन तालाबों के कंकाल जरूर पाए जाएंगे. यानी अगर आज के शासक प्रशासक चाहें तो पुराने तालाबों की जमीन मुआवजा देकर रिक्लेम करने में कोई ज्यादा अड़चन नहीं आनी चाहिए. अब ये अलग बात है कि जलविहीन विकास और गर्मी की लपट पैदा करने वाले विकास को ही हम अपना आर्थिक विकास मानने लगे हैं. फिर भी सस्टेनेबल डिवेलपमॅन्ट यानी सतत विकास की बात तो हम आज भी करते ही हैं. तो फिर अपनी राजधानी दिल्ली की दीर्घायु और वर्तमान में रहने लायक बनाए रखने पर हमें क्यों नहीं सोचते रहना चाहिए.

सुधीर जैन वरिष्ठ पत्रकार और अपराधशास्‍त्री हैं...

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