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This Article is From Jun 03, 2020

भारत और चीन के बीच सीमा पर तनाव के विदेशी मीडिया की नजर में 4 कारण...

M. Taylor Fravel, The Washington Post
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जून 04, 2020 10:31 am IST
    • Published On जून 03, 2020 14:38 pm IST
    • Last Updated On जून 04, 2020 10:31 am IST

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मई माह की शुरुआत में, चीनी और भारतीय सैनिकों ने भारत के सिक्किम राज्‍य से सटे नााकु ला दर्रे में अपनी सीमा पर एक-दूसरे के सामने आ गए. इससे कुछ दिन पहले, पैंगॉन्ग झील के पास सीमा प्रहरियों के बीच एक विवाद ने सैनिकों को अस्पताल भेजा था. हाल के सप्ताहों में, चीनी सैनिकों ने गैलवान नदी घाटी के आसपास "वास्तविक नियंत्रण रेखा" (LAC) को भी पार कर लिया.

जानते हैं लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवाद में चीन की उन कार्रवाईयों के बारे में जिनके बारे में हम जानते है और ऐसी भी बातें जिनसे हम वाफिक नहीं हैं..

1. चीन ने इससे पहले कम से कम एक दशक में इस तरह की कार्रवाई नहीं की है


चीन-भारत सीमा  विवाद तीन अलग-अलग इलाकों में पड़ता है. पूर्वी क्षेत्र, जिसका लगभग 90,000 वर्ग किलोमीटर (लगभग 35,000 वर्ग मील), भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश से मिलता है और भारतीय नियंत्रण में है. पश्चिमी क्षेत्र, जिसे कभी-कभी अक्साई चिन या लद्दाख का हिस्सा कहा जाता है, यह शिनजियांग में लगभग 33,000 वर्ग किलोमीटर और कई जिलों में शामिल है, यह चीन के नियंत्रण में है और नेपाल के पश्चिम में मध्य या मध्य क्षेत्र, यह सबसे छोटा क्षेत्र है, लगभग 2,000 वर्ग किलोमीटर का और इस पर नियंत्रण विभाजित है यानी इस क्षेत्र पर अलग-अलग देशों का नियंत्रण है.

1962 के चीन-भारत युद्ध के बाद, LAC तीनों क्षेत्रों में एक वास्तविक सीमा के रूप में रही. हालांकि, कम से कम 13 स्थानों पर, जहां LAC है, दोनों पक्ष एक-दूसरे से असहमत हैं.

2013 या 2014 की पूर्व में हुई सीमा की घटनाओं के विपरीत, चीन पश्चिमी क्षेत्र में एक साथ LAC पर लगातार दबाव बना रहा है. अलग-अलग रिपोर्ट्स के अनुसार, संकेत हैं कि चीन ने LAC पर या उसके पास 5,000 सैनिकों की तैनाती की है. तीन स्थानों पर कथित तौर पर चीन ने LAC को उन क्षेत्रों में पार कर लिया है जिनके बारे में भारत का मानना है कि इनका समाधान हो चुका है और भारत के दृष्टिकोण से स्‍थानीय यथास्थिति को चुनौती दे रहा है.

2. चीन LAC के साथ किसी भी परिवर्तन के लिए खासतौर पर संवेदनशील रहा है

चीन के साथ सीमा विवादों पर मेरा शोध और भारत के साथ विवाद मई में चीन की कारगुजारियों की व्याख्या में मदद कर सकता है क्योंकि अमेरिका चीन का मुख्य प्रतिद्वंद्वी है न कि भारत. चीन आमतौर पर भारत के साथ सीमा विवाद में स्थिरता/स्‍थायित्‍व बनाए रखना चाहता है. चीन की सैन्य रणनीति के संदर्भ में विवादित सीमा एक दूसरे दर्जे की रणनीतिक दिशा (Secondary strategic direction) है. भारतीय सीमा के साथ स्थिरता बनाए रखते हुए, चीन अपनी सैन्य शक्ति मुख्य रणनीतिक दिशा (Main strategic direction) ताइवान और पश्चिमी प्रशांत सागर की ओर केंद्रित कर सकता है. इस तरह चीन 1962 के युद्ध के बाद से सीमा पर स्थिति मजबूत करने का प्रयास कर रहा है जबकि ऐसे सशस्त्र संघर्ष को टाल रहा है जो हालात को एक और युद्ध की ओर ले जा सकता है.

3. यहां वर्ष 1962 के बाद से क्या बदला है

पिछले एक दशक में भारत ने सीमा पर अपनी स्थिति और LAC के आसपास अपनी मौजूदगी को मजबूत करने के लिए काफी प्रयास किए हैं. भारत सीमा से लगी सड़कों के एक बड़े उन्‍नयन (अपग्रेडेशन) को पूरा करने के करीब है, इसमें एक रणनीतिक लिहाज से सैन्य उपयोग में आने वाली सड़क भी शामिल है जो पश्चिमी क्षेत्र के उत्तरी सिरे में दालुत बेग ओल्डी में एक हवाई क्षेत्र को जोड़ती है. यह दक्षिण की ओर श्योक और दरबुक के गांवों के साथ है और इसका कार्य 2019 में पूरा हुआ है. यह DS-DBO रोड, पश्चिमी क्षेत्र के इस हिस्से के साथ भारतीय सैन्‍य बलों के मूवमेंट को बहुत सुविधाजनक बनाती है और इससे यात्रा का समय 40 फीसदी कम हो जाता है. एक भारतीय समाचार पत्र के अनुसार, इस सड़क निर्माण का लक्ष्य लाइन ऑफ एक्‍चुअल कंट्रोल यानी LAC पर भारत के वर्चस्‍व को बढ़ाने में मदद करना है." भारत 2022 तक LAC तक 'फीडर' सड़कों का नेटवर्क को पूरा करने की उम्‍मीद लगाए हुए है.

भारत ने सीमा के साथ-साथ अपने हवाई क्षेत्र को फिर से सक्रिय और पुनर्निर्मित किया है. भारत ने दो माउंटेन डिवीजन भी बनाए हैं और सीमा पर चीन के खिलाफ आक्रामक त्वरित मैदानी प्रतिक्रिया के अंतर्गत माउंटेन स्‍ट्राइक कार्प्‍स तैयार रहा है. पिछले साल इस नव स्थापित कार्प्‍स ने भारत के "हिम विज" सैन्य अभ्यास में अपनी क्षमताओं का बखूबी प्रदर्शन किया था. एक सेवानिवृत्त भारतीय सैन्य अधिकारी का मानना है कि वेस्‍टर्न सेक्‍टर में "सीमित संघर्ष" अब चीन के सशस्त्र बलों के लिए "व्यवहार‍िक प्रस्ताव" नहीं है.

4. भारत की सीमा पर नई सड़कों ने मौजूदा गतिरोध को प्रेरित किया है

वेस्‍टर्न सेक्‍टर में भारत की सड़क निर्माण गतिविधियों के जवाब में मई में चीन की ओर से उठाए गए कदम नजर आए. एक पूर्व भारतीय रक्षा अधिकारी के अनुसार, चीन हमेशा यहां भारत के अपनी उपस्थिति का विस्तार करने को लेकर अतिसंवेदनशील रहा है. भारत की एक फीडर सड़क का निर्माण संभवतः पहला महत्वपूर्ण 'ट्रिगर' था, यह सड़क डीएसबी-डीबीओ सड़क के साथ गैलवान नदी के पास LAC को जोड़ती है. दूसरा और शायद कम महत्वपूर्ण ट्रिगर पैंगोंग झील में सड़क बनाने का भारत का प्रयास है जहां भारत और चीन LAC के स्थान को लेकर विवाद करते रहे हैं. हालांकि दोनों नई सड़कें LAC के भारतीय हिस्से पर स्थित हैं और उनका उद्देश्य LAC के साथ भारतीय स्थिति को और मजबूत करना है.

चीनी कदम, विशेष रूप से गालवान के आसपास, भारत को इन सड़क परियोजनाओं को पूरा करने से रोकने के लिए उठाए गए प्रतीत होते हैं. चीन इसे भारत को एलएसी की स्थिति को बदलने के रूप में देख रहा है, दूसरी ओर, भारत अपने कदमों को एलएसी के साथ यथास्थिति को मजबूत करने के प्रयास के रूप में देखता है.
मौजूदा सीमा मामला, चीनी-भूटानी सीमा पर डोकलाम में वर्ष 2017 में हुए चीन-भारत के गतिरोध की छाया की तरह है. भारत ने चीनी नियंत्रण के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र में सैनिकों को तैनात करके चीन को चौंका दिया था. लेकिन चीन के क्षेत्र में अपने विस्‍तार को रोकने के लिए भूटान ने भी इस पर दावा किया. चीन ने भारतीय कार्रवाई को अपनी संप्रभुता के स्पष्ट उल्लंघन के रूप माना था.

हालांकि सितंबर 2017 में  इस मामले का शांति से हल निकाल लिया गया, लेकिन इस गतिरोध ने सीमा पर भारतीय गतिविधियों को लेकर चीनी की निगरानी को काफी बढ़ा दिया. 2019 तक सीमा पर 'आक्रामक व्‍यवहार' के कारण दोनों पक्ष के बीच एलएसी पर विवाद एक दशक में अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गया.

-बीजिंग क्या संकेत देने की कोशिश कर रहा है?

भले ही चीन भारतीय कदमों का जवाब दे रहा हो, लेकिन चीन के कदमों का दायरा अभूतपूर्व है. क्या वैश्विक महामारी इसकी एक व्याख्या हो सकती है? नाटकीय रूप से धीमी होती अर्थव्यवस्था, सरकार की कोरोना वायरस के प्रकोप से निपटने के लिए आलोचना, कई देशों के साथ खराब संबंध और चीन के नेताओं को राष्ट्रीय संप्रभुता के सवालों पर ताकत दिखाने और किसी भी कमजोरी का संकेत देने से बचने की जरूरत महसूस हो सकती है.

यदि बीजिंग को आशंका है कि अन्य देश चीन को कोरोना वायरस और आर्थिक 'झटकों' से कमजोर या विचलित कर सकते हैं तो चीनी नेतृत्व को यह लग सकता है कि उसे चीनी संप्रभुता के लिए किसी भी संभावित चुनौती के खिलाफ कड़े कदम उठाने होंगे. यह भारत के साथ सीमा के संबंध में ही नहीं, बल्कि ताइवान, हांगकांग और दक्षिण चीन सागर के संबंध में भी सच है.

लेकिन इतिहास भी भूमिका निभा सकता है. 1962 में चीन को अंदेशा था कि भारत ने तिब्बत में अशांति से लाभ पाने की कोशिश की और विनाशकारी ग्रेट लीप फॉरवर्ड की उथल-पुथल ने बीजिंग के युद्ध में जाने के फैसले में भूमिका निभाई. जैसी 2020 की महामारी सामने आई है, ऐसे में चीन फिर से भारत के खिलाफ सख्‍त कदम का संकेत देना चाहेगा.

- आनंद नायक द्वारा अनूदित...

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