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This Article is From Dec 28, 2016

नोटबंदी से 'बोर'! जनता को नए साल का तोहफा देने के लिए पीएम मोदी को 10 सुझाव

Virag Gupta
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    December 28, 2016 19:37 IST
    • Published On December 28, 2016 19:37 IST
    • Last Updated On December 28, 2016 19:37 IST
नोटबंदी आजाद भारत का ऐसा फैसला था जिससे देश की 100 फीसदी जनता प्रभावित हुई और अब अर्थशास्त्री और सरकार नोटबंदी के लाभ की मनमौजी व्याख्या कर रहे हैं. इन्हीं अर्थशास्त्रियों से नीति आयोग में प्रधानमंत्री मोदी ने सुझाव मांगे कि ऐसे और कदम बताएं जिनसे नोटबंदी का फायदा बढ़ाया जा सके. नोटबंदी के नाम पर जनता ने सब कुछ न्योछावर कर दिया और अब उन्हें बड़े बेईमानों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का इंतजार है. प्रधानमंत्री इन 10 सुझावों पर अमल करके जनता को नए साल का तोहफा दे सकते हैं.

1. नोटबंदी थोपने के बाद अन्य क्षेत्रों में सुधार तुरंत लागू हों -  नोटंबदी पर सरकार का कदम 'जहां चाह वहां राह' की सफलता को दर्शाता है. रिजर्व बैंक अधिनियम की धारा 26 (2) के तहत पुराने बंद किए गए नोटों को दोबारा चलन में नहीं लाया जा सकता था, इसके बावजूद 500 और 1000 के नोट चलन में रहे. अब 50 दिन बाद सरकार ने नोटों की वैधता खत्म करने के लिए अध्यादेश से नया क़ानून लाने का फैसला लिया है. सवाल यह है कि अन्य क्षेत्रों में सुधार तथा एक्शन के लिए क़ानून न होने का बहाना सरकार अब कैसे करती है?

2. कैशलेस इकोनॉमी में जनता की सुरक्षा एवं टैक्स वसूली के लिए बने सख्त कानून - भ्रष्टाचार, कालाधन, जाली नोट और आतंकवाद के विरुद्ध नोटबंदी से शुरू जंग कैशलेस इकोनॉमी में खत्म हो गई. देश में सभी कानून परंपरागत अर्थव्यवस्था के लिए हैं. कैशलेस अर्थव्यवस्था में डाटा सुरक्षा, प्राइवेसी, शिकायत निराकरण एवं इंटरनेट कंपनियों से टैक्स वसूली के लिए सख्त कानून सरकार कब लाएगी?

3. डिजिटल कंपनियों को मेक इन इंडिया के तहत सर्वर और ऑफिस की अनिवार्यता - सरकार द्वारा कैशलेस इकोनॉमी के प्रचार से इंटरनेट तथा डिजिटल कंपनियों को भारत में बड़ा व्यापारिक लाभ हो रहा है. नोटबंदी से परंपरागत अर्थव्यवस्था तबाह हो गई और ई-वॉलेट कंपनियों का व्यापार 700 फीसदी बढ़ गया. ये कंपनियां व्यापारिक लाभ को भारत में टैक्स दिए बगैर अमेरिका, आयरलैंड और सिंगापुर भेज देती हैं. मेक इन इंडिया के तहत देश में व्यापार करने वाली हर कंपनी को भारत में रजिस्टर्ड ऑफिस खोलने तथा सर्वर स्थापित करने का कानून बन जाए, तो टैक्स रेवेन्यू बढ़ने के साथ नौजवानों को रोजगार भी मिलेगा.

4. बैंकों में जमा जनता की गाढ़ी रकम फिर एनपीए न बन जाए - नोटबंदी के माध्यम से आम जनता की गाढ़ी बचत बैंकों में जमा हो गई है, जिसकी बदौलत लोन सस्ते होने का दावा किया जा रहा है. बैलेंस शीट में गड़बड़ी तथा बैंकों के साथ साठ-गांठ करके उद्योगपतियों ने 8 लाख करोड़ से अधिक की रकम हड़प ली है. इन उद्योगपतियों का विवरण सार्वजनिक नहीं हो रहा फिर इन लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई कैसे होगी? क्या नए लोन फिर इन्हीं डिफॉल्टर्स को दिए जाएगे? नोटबंदी के दौर में आम जनता पर सख्ती के लिए 60 नियम बनाए गए तो डिफॉल्टर्स से एनपीए वसूली और अकाउंट्स के फोरेंसिक ऑडिट के लिए अध्यादेश क्यों नहीं लाया जाता?

5. रसूखदारों पर कार्रवाई के लिए कानून - देश में 1 फीसदी लोगों ने 58.4 फीसदी संपत्ति पर अधिकार कर रखा है जिनमें नेता, नौकरशाह और उद्योगपति शामिल हैं. पनामा लीक्स तथा एचएसबीसी प्रकरण में रसूखदारों के भ्रष्टाचार की बानगी मिली पर ऐसे लोगों पर प्रभावी कार्रवाई नहीं होने से आम जनता में निराशा है. आम जनता 50 दिन की नोटबंदी में पिस गई पर बड़े आर्थिक अपराधियों के खिलाफ कानून का सख्ती से अनुपालन करके उनके रातों की नींद कब हराम होगी?

6. ई-डोनेशन पर ही राजनीतिक दलों को इनकम टैक्स में मिले छूट - राजनीतिक दलों तथा नेताओं द्वारा राज्य और केंद्र के चुनावों में पांच लाख करोड़ से अधिक खर्च किया जाता है. बसपा, एनसीपी, एआईडीएमके, आप एवं टीएमसी के बैंक खाते एवं सहारा-बिरला डायरी में कांग्रेस-भाजपा के नवीनतम खुलासे से जाहिर है कि दलों द्वारा ब्लैकमनी का बहुतायत इस्तेमाल होता है. आम जनता तथा व्यापारियों को डिजिटल पेमेंट के लिए गिफ्ट दिए जा रहे हैं, तो फिर राजनीतिक दलों पर भी यह कानून क्यों लागू नहीं होता? ई-डोनेशन लेने पर ही राजनीतिक दलों को इनकम टैक्स कानून की धारा 13-ए के तहत टैक्स छूट मिलनी चाहिए, जिसके लिए चर्चा की बजाय सरकार अध्यादेश कब लाएगी?

7. नौकरशाहों को लोकपाल कानून एवं संपत्ति डिस्क्लोजर से छूट क्यों - नोटबंदी के बाद आम जनता पर अनेक कानून लाद दिए गए, जिसके तहत अपना ही पैसा लेने के लिए लोगों को शादी का कार्ड दिखाना पड़ा, जबकि अखिल भारतीय सेवाओं के अफसरों को पत्नी और आश्रित बच्चों की संपत्ति और देनदारियों का ब्योरा प्रस्तुत करने से छूट देने के लिए लोकपाल अधिनियम 2013 में सरकार द्वारा बदलाव कर दिया गया. सरकारी पैसे पर आश्रित और पोषित हर व्यक्ति-संस्था को लोकपाल के सख्त दायरे में लाने के साथ अनिवार्य डिस्क्लोजर हेतु बाध्य क्यों नहीं किया जाना चाहिए?

8. हवाला और मनी लॉड्रिंग पर लगाम लगाने में रिजर्व बैंक विफल क्यों - रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार पिछले 44 वर्षों में एक्सपोर्ट और ओवर इनवाइसिंग के माध्यम से हो रहे बड़े घोटाले से देश की जीडीपी का एक-चौथाई नुकसान हुआ है. विदेशी व्यापार, पेमेंट बैंक, एफआईआई, इंटरनेट कंपनियों द्वारा विदेशों में भेजी जा रही भारी रकम पर रिजर्व बैंक निगरानी तथा लगाम लगाने में विफल रहा है. रिजर्व बैंक के अलावा कई प्रवर्तन एजेंसियां भी इन अपराधों के खिलाफ कार्रवाई के लिए नियुक्त हैं, जिनके बीच समन्वय का अभाव है. इन सभी एजेंसियों के सूचना तंत्र को प्रभावी डिजिटल नेटवर्क में जोड़ने से देश में कालाधन, हवाला और ड्रग्स का कारोबार कम हो सकता है.

9. नौकरशाही तथा इंस्पेक्टर राज पर लगाम हेतु कम हों कानून - नोटबंदी के बाद नित नए कानूनों से देश में इंस्पेक्टर राज आने का खतरा बढ़ गया है. पुलिस, बैंक एवं टैक्स अधिकारियों को पूछताछ के नाम पर असीमित अधिकार देने से उदारीकरण की प्रक्रिया रिवर्स हो सकती है. देश में ज्यादा और जटिल कानून होने से नौकरशाही के भ्रष्ट होने का खतरा ज्यादा होता है. विधि आयोग तथा प्रशासनिक सुधार आयोग की तमाम रिपोर्टों के प्रभावी क्रियान्वयन से ही 'मिनिमम गवर्नमेंट- मैक्सिमम गवर्नेंस' का स्वप्न सरकार कब साकार करेगी?

10. डिजिटल पेमेंट्स में सरकारी बैंक तथा यूपीआई दरकिनार क्यों - नोटबंदी के कानून से सरकार ने डिजिटल पेमेंट की अनिवार्यता बढ़ा दी, जिससे पेटीएम जैसी निजी कंपनियों को बड़ा फायदा हुआ. नोटबंदी के पहले यूपीआई तथा सरकारी बैंकों के ई-वॉलेट्स की प्रणाली यदि सशक्त की जाती तो देश को ज्यादा फायदा होता. निजी क्षेत्र के पेमेंट बैंक तथा ई-वॉलेट्स पर विदेशी कंपनियों के निवेश तथा नियंत्रण हेतु नया कानून क्यों नहीं बनाया जाता, जिससे इनका लाभ देश हित में इस्तेमाल हो सके?

नोटबंदी के बाद जनता व्यथित होने के बावजूद सरकार के विरोध में नहीं दिखी, क्योंकि देश में सशक्त विपक्ष का अभाव है. सभी क्षेत्रों में सुधार तथा गवर्नेंस में बदलाव से ही जनता के अच्छे दिन आएंगे, जिनके परिणाम से ही मोदी सरकार अपनी विश्वसनीयता फिर हासिल कर पाएगी. क्या नए साल में जनता और सरकार के अच्छे दिन आएंगे?

विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...

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