
बिहार में कलेक्ट्रेट यानी डीएम के दफ्तर को नीलामी करने की तैयारी है. बताया जा रहा है कि अगले 15 दिनों में पूरे कलक्ट्रेट को ही नीलाम कर दिया जाएगा. कलेक्ट्रेट के नीलामी का ये आदेश कोर्ट की तरफ से जारी किया गया है. मामला बिहार के मधुबनी का है. दरअसल, कोर्ट ने ये आदेश मधुबनी कलेक्टर द्वारा उनके आदेश को अनदेखा करन की वजह से दिया है. ये मामला मेसर्स राधा कृष्ण एक्सपोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के निदेशक रतन कुमार केडिया बनाम पंडौल कोऑपरेटिव सूता मिल. बिहार सरकार एवं अन्य के मामले में हाई कोर्ट के तत्कालीन जस्टिस न्यायमूर्ति घनश्याम प्रसाद ने 20 अगस्त 2014 को आदेश पारित किया था.

केडिया के अधिवक्ता वरुण कुमार झा के अनुसार आर्बिट्रेटर घनश्याम प्रसाद ने अपने आदेश में विपक्षी को एडवांस भुगतान 28 लाख 90 हजार 168 रुपया, क्षतिपूर्ति के रूप में 2 लाख रुपया, मुकदमा खर्च 70 हजार तथा आर्बिट्रेटर को फीस के रूप में एक लाख 80 हजार रुपए भुगतान करने का आदेश दिया था. अधिवक्ता वरुण झा के अनुसार आदेश में पारित रकम भुगतान नहीं करने पर 18 प्रतिशत ब्याज के साथ भुगतान करने का भी आदेश दिया गया था. आदेश का पालन नहीं करने पर 2016 में कंपनी के डायरेक्टर ने जिला जज मधुबनी के न्यायालय में जस्टिस घनश्याम प्रसाद के आदेश का अनुपालन करने के लिए मामला दायर किया था. अब इसी मामले में कोर्ट ने आदेश दिया है कि 15 दिनों के अंदर 4 करोड़ 17 लाख 24 हजार 459 रुपए नहीं दिया गया तो मधुबनी समाहरणालय की नीलामी कर दी जाएगी.

क्या है पूरा मामला?
अधिवक्ता वरुण कुमार झा एवं हरिशंकर श्रीवास्तव ने बताया कि वर्षों पूर्व पंडौल में सरकार की देखरेख में कोऑपरेटिव सूता मिल चलता था. कई मजदूर मिल में कार्यरत थे. 1996-97 में सूता मिल बंद हो गया. मिल बंद होने के बाद मेसर्स राधा कृष्ण एक्सपोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के डायरेक्टर कोलकाता निवासी रतन कुमार केडिया एवं पंडौल कोऑपरेटिव सूता मिल के पदाधिकारियों के साथ एक करार हु.करार के अनुसार रतन कुमार केडिया की कंपनी मिल चलाने के लिए पूंजी एवं रॉ मैटेरियल देने पर राजी हुए. मिल का संचालन उसके अधिकारियों एवं सरकार को करनी थी. मजदूर एवं अन्य संसाधन सरकार को ही उपलब्ध कराना था.
करार के अनुसार मिल चालू हुआ. मेसर्स राधा कृष्ण एक्सपोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड कंपनी एडवांस में रुपया सूता मिल के अधिकारियों को भुगतान करता रहा. रुपया भुगतान करने के बदले जब कंपनी के डायरेक्टर ने बिल का मांग किया तो उन्हें बिल देने से मना कर दिया गया. बिल नहीं देने पर कंपनी ने पैसा भुगतान करना भी बंद कर दिया. आखिरकार मिल बंद हो गया. फिर 1999 में कंपनी की डायरेक्टर ने मधुबनी न्यायालय में टाइटल सूट दायर कर मिल की संपत्ति यथावत रखने के लिए स्टेटस-को लगाने की मांग की। कोर्ट द्वारा स्टेटस-को का अर्जी खारिज करने के बाद डायरेक्टर ने हाई कोर्ट की शरण ली.
क्या कर रहे है अधिकारी
हालांकि जब पूरे मामले को लेकर मधुबनी समाहरणालय में नोटिस चिपकाया जा रहा था. तब मधुबनी जिलाधिकारी समाहरणालय स्थित अपने कार्यालय में ही मौजूद थे. हालांकि इस मामले को लेकर किसी भी प्रकार का कोई अधिकारी बयान नहीं दिया गया है. लेकिन सूटों की मानो तो प्रशासन अब पूरे मामले को लेकर अपने वरीय अधिकारी को सूचना दे दिए है साथ ही मधुबनी प्रशासन कानूनी दांव पैच भी ढूंढने में लग गई है.
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