- पूर्णिया जिले की सात विधानसभा सीटों में से पांच सीटें एनडीए ने जीतीं जबकि दो सीटें एआईएमआईएम के खाते में रहीं
- कांग्रेस के 4 प्रत्याशियों की हार और पप्पू यादव की समर्थित उम्मीदवारों की चुनावी असफलता स्तब्ध करती है
- राजद ने पूर्णिया में कोई सीट नहीं जीती और इसके उम्मीदवार बायसी, धमदाहा तथा रुपौली में हार गए
सीमांचल की हृदयस्थली पूर्णिया में एनडीए का जादू चला है तो दूसरी ओर एआईएमआईएम ने भी अपने 2020 के चुनाव परिणाम को बरकरार रखने में सफलता हासिल कर लिया है. कुल 7 विधानसभा क्षेत्र में से 5 सीट एनडीए के खाते में तो 2 सीट पर एआईएमआईएम ने कब्जा जमाया है. महागठबंधन का यहां तो सूपड़ा ही साफ हो गया. हैरानी की बात यह है कि निर्दलीय सांसद पप्पू यादव जो सीमांचल में कांग्रेस के संकटमोचक माने जा रहे थे, सीमांचल की छोड़िए पूर्णिया में कांग्रेस के चार प्रत्याशियों को जीत दिला पाने में नाकामयाब रहे. पप्पू यादव से भी अधिक बुरी स्थिति पूर्णिया के पूर्व सांसद जनसुराज के राष्ट्रीय अध्यक्ष उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह की रही, जो अपने गृह जिले में भी जनसुराज प्रत्याशियों की जमानत नहीं बचा पाए. ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या महागठबन्धन ने एआईएमआईएम के साथ समझौता नहीं कर बड़ी राजनीतिक भूल की है! क्या सांसद पप्पू यादव की लोकप्रियता का ग्राफ गिर रहा है और क्या जनसुराज के राष्ट्रीय अध्यक्ष उदय सिंह का राजनीतिक अस्त हो चुका है. इन तमाम सवालों के जवाब विधानसभा चुनाव परिणाम में आसानी से ढूंढे जा सकते हैं.
नहीं खुल सका राजद और कांग्रेस का खाता
पूर्णिया में कांग्रेस को जबरदस्त राजनीतिक नुकसान का सामना करना पड़ा है. 2020 चुनाव में जिले के कसबा सीट पर कांग्रेस के आफाक आलम ने जीत दर्ज किया था. इस बार वे बेटिकट हुए तो निर्दलीय मैदान में उतर गए. कांग्रेस ने पप्पू यादव के समर्थक माने जाने वाले मो. इरफान को अपना प्रत्याशी बनाया. लेकिन, वे एलजेपी प्रत्याशी नितेश सिंह के हाथों पराजित हो गए. इस प्रकार कांग्रेस ने जीती हुई सीट को गंवा दिया. इसके अलावा कांग्रेस ने अमौर, पूर्णिया सदर और बनमनखी (सु) सीट पर भी अपना प्रत्याशी खड़ा किया ,जिनकी हार हुई. राजद ने 2020 में यहां कोई सीट नही जीता था, लेकिन बायसी के एआईएमआईएम विधायक मो रुकनुद्दीन ने बाद में राजद का दामन थाम लिया था. लेकिन इस सीट पर भी उम्मीदवार बदले जाने के बावजूद राजद प्रत्याशी की हार हुई. इस प्रकार राजद जिले में अपना खाता खोलने से वंचित रह गया. उनके उम्मीदवार की बायसी, धमदाहा और रुपौली में हार हुई.
एनडीए ने जबदरस्त सफलता किया हासिल
महागठबंधन ने जिले के 5 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज कर जबरदस्त सफ़लता हासिल किया है. उनकी जीत इसलिए भी उल्लेखनीय है कि एनडीए ने न केवल अपनी पूर्व की जीती हुई 3 सीटों पर कब्जा बरकरार रखा बल्कि कांग्रेस और निर्दलीय से एक-एक सीट छीनने में भी कामयाबी हासिल किया. जेडीयू की लेशी सिंह ने धमदाहा, भाजपा के कृष्ण कुमार ऋषि ने बनमनखी (सु) और विजय खेमका ने पूर्णिया सदर सीट को बरकरार रखा जबकि लोजपा के नितेश सिंह ने कांग्रेस से कसबा और जेडीयू के कलाधर मंडल ने निर्दलीय से रुपौली सीट को जीतने का काम किया. इस प्रकार एक तरह से महागठबंधन का जिले में सूपड़ा साफ हो गया, जो अब तक कि सबसे बड़ी हार मानी जा रही है.
एआईएमआईएम ने बरकरार रखी अपनी सीट
वक्फ बिल और SIR जैसे मुद्दे को दरकिनार कर पूर्णिया के अल्पसंख्यक बाहुल्य अमौर और बायसी सीट पर असदुद्दीन ओवैसी और एआईएमआईएम का जादू मतदाताओं के सिर चढ़कर बोला है. यहां मुस्लिम मतदाताओं ने राजद और कांग्रेस की तुलना में एआईएमआईएम को तरजीह दिया है. अमौर में कांग्रेस और बायसी में राजद प्रत्याशी को एआईएमआईएम उम्मीदवार के हाथों शिकस्त मिली है. अमौर में AIMIM के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल इमाम तो बायसी में AIMIM के गुलाम सरवर चुनाव जीत चुके हैं. गौरतलब है कि 2020 में भी अमौर से अख्तरुल ईमान विजयी हुए थे जबकि बायसी से AIMIM के मो रुकनुद्दीन विधायक बने थे जो बाद में राजद में शामिल हो गए थे. मो रुकनुद्दीन की जगह पार्टी ने मो गुलाम सरवर को प्रत्याशी बनाया, जो अब चुनाव जीत चुके है. इस प्रकार एआईएमआईएम की दोनों सीट बरकरार रह गई.
पप्पू सिंह और पप्पू यादव हुए राजनीतिक तौर पर फिसड्डी साबित
राजनीति के बाजार में औंधे मुंह गिरे जनसुराज की भद पिट चुकी है. इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह जिनका कार्य-क्षेत्र पूर्णिया रहा है, वे दो बार यहां के सांसद रह चुके हैं, उनकी पार्टी यहां सभी सात सीट पर चुनाव लड़ रही थी. विडम्बना देखिए, चुनाव जिताना तो दूर, सिंह अपने पार्टी के प्रत्याशियों में से एक की भी जमानत नही बचा सके. कुछ ऐसी ही स्थिति बहुचर्चित सांसद और इस इलाके में कांग्रेस के खेवनहार राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव की भी रही. हेलीकॉप्टर का उनका तूफानी दौरा कांग्रेस और राजद प्रत्याशियों को जीत दिलाने में नाकामयाब रहा. खुद अपने लोकसभा चुनाव में 7 में से 5 विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करने वाले पप्पू यादव किसी भी कांग्रेस प्रत्याशी को जीत दिलाने में विफल साबित हुए. जीत और हार के और भी कई कारण हो सकते हैं, लेकिन अपने ही गढ़ में अपनी ही पराजय की जिम्मेवारी से पप्पू यादव और पप्पू सिंह इनकार नही कर सकते हैं.
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