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बिहार चुनाव : क्या BJP का 'मास्टरस्ट्रोक' सफल होगा... पवन सिंह-कुशवाहा के बीच सुलह से थमेगा जातीय बिखराव?

पवन सिंह और उपेंद्र कुशवाहा के बीच लोकसभा चुनाव के कारण आई खटास और मनमुटाव को खत्म करने के लिए ही यह मुलाकात आयोजित की गई थी. इस मुलाकात के दौरान जो तस्वीरें सामने आईं, वे काफी प्रतीकात्मक थीं. पवन सिंह ने उपेंद्र कुशवाहा के पैर छूकर आशीर्वाद लिया, जिससे यह स्पष्ट संदेश गया कि दोनों नेताओं के बीच अब दिल की दूरी मिट चुकी है और गिले-शिकवे दूर हो गए हैं.

बिहार चुनाव : क्या BJP का 'मास्टरस्ट्रोक' सफल होगा... पवन सिंह-कुशवाहा के बीच सुलह से थमेगा जातीय बिखराव?
  • भोजपुरी सुपरस्टार पवन सिंह ने बिहार चुनाव से पहले भाजपा में वापसी की और अमित शाह, जे.पी. नड्डा से मुलाकात की.
  • पवन सिंह ने उपेंद्र कुशवाहा से भी भेंट की, जिससे गठबंधन में तालमेल की उम्मीद बढ़ी.
  • लोकसभा चुनाव में पवन सिंह और कुशवाहा के बीच मतभेद के कारण NDA को शाहाबाद क्षेत्र में नुकसान हुआ था.
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नई दिल्ली:

बिहार चुनाव से पहले मंगलवार को एक अहम राजनीतिक घटनाक्रम देखने को मिला. भोजपुरी फिल्मों के सुपरस्टार पवन सिंह ने दोबारा भारतीय जनता पार्टी (BJP) का दामन थाम लिया है. दिल्ली में पवन सिंह ने गृह मंत्री अमित शाह और BJP अध्यक्ष जे.पी. नड्डा से मुलाकात की. मुलाकात के बाद उन्होंने जोर देकर कहा कि वह कभी BJP से दूर गए ही नहीं थे. हालांकि, उनकी इस वापसी से ज्यादा कौतूहल का विषय उनकी उपेंद्र कुशवाहा से मुलाकात बनी. पवन सिंह ने NDA सहयोगी और राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा से भी भेंट की.

सवाल यह उठा कि जब पवन सिंह BJP के सदस्य हैं, तो उनकी मुलाकात RLM प्रमुख कुशवाहा से क्यों करवाई गई और इस बैठक में BJP की क्या भूमिका थी? राजनीतिक गलियारों में यह माना जा रहा है कि इस मुलाकात के पीछे सीट-समायोजन और NDA की व्यापक रणनीति छिपी है. BJP शायद पवन सिंह को बिहार में किसी ऐसी सीट पर चुनाव लड़ाने की योजना बना रही है, जो RLM के कोटे में आ सकती है, या जिसका संबंध कुशवाहा की राजनीतिक पकड़ वाले क्षेत्र से है. यह मुलाकात गठबंधन के भीतर तालमेल बैठाने और भविष्य की राजनीतिक साझेदारी को मजबूत करने के संकेत देती है, जिससे बिहार में NDA की चुनावी रणनीति को बल मिल सके.

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लोकसभा चुनाव: पवन सिंह की उम्मीदवारी से कुशवाहा को हार

दरअसल, पवन सिंह और उपेंद्र कुशवाहा के बीच तल्खी पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान बढ़ी थी. पिछले साल के चुनाव में, उपेंद्र कुशवाहा बिहार की काराकाट लोकसभा सीट से NDA सहयोगी के रूप में मैदान में थे और उनकी स्थिति मजबूत मानी जा रही थी. हालांकि, तभी भोजपुरी सुपरस्टार पवन सिंह ने इसी सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में उतरकर समीकरण बदल दिया. इस वजह से कुशवाहा को अपनी सीट गंवानी पड़ी और उन्हें न सिर्फ हार का सामना करना पड़ा, बल्कि वह तीसरे स्थान पर खिसक गए. वहीं, पवन सिंह खुद दूसरे नंबर पर रहे. अगर कुशवाहा और पवन सिंह को मिले वोटों को जोड़ दिया जाता, तो उनका संयुक्त वोट जीतने वाले CPI(ML) उम्मीदवार से काफी अधिक होता. इस चुनावी घटनाक्रम के बाद, स्वाभाविक रूप से, उपेंद्र कुशवाहा के मन में पवन सिंह के प्रति खटास आ गई और उनके रिश्ते तनावपूर्ण हो गए थे.

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तो क्या इसलिए हुई पवन सिंह और कुशवाहा की मुलाकात?

माना जा रहा है कि पवन सिंह और उपेंद्र कुशवाहा के बीच लोकसभा चुनाव के कारण आई खटास और मनमुटाव को खत्म करने के लिए ही यह मुलाकात आयोजित की गई थी. इस मुलाकात के दौरान जो तस्वीरें सामने आईं, वे काफी प्रतीकात्मक थीं. पवन सिंह ने उपेंद्र कुशवाहा के पैर छूकर आशीर्वाद लिया, जिससे यह स्पष्ट संदेश गया कि दोनों नेताओं के बीच अब दिल की दूरी मिट चुकी है और गिले-शिकवे दूर हो गए हैं. हालांकि, दोनों को एक मंच पर लाने का यह काम आसान नहीं था. इस बैठक को सफल बनाने के लिए बिहार बीजेपी से जुड़े नेताओं ने काफी मशक्कत की और मध्यस्थता निभाई. यह मुलाकात NDA के भीतर एकजुटता मजबूत करने की दिशा में एक अहम कदम मानी जा रही है.

कुशवाहा को मनाने में BJP नेताओं की लंबी मशक्कत

पवन सिंह और उपेंद्र कुशवाहा के बीच सुलह करवाने के लिए BJP नेताओं को काफी प्रयास करने पड़े. सोमवार को दिन भर BJP नेताओं ने उपेंद्र कुशवाहा से बातचीत की. देर रात तक, पार्टी के वरिष्ठ नेता सक्रिय रहे; BJP के बिहार प्रभारी विनोद तावड़े और राष्ट्रीय सचिव ऋतुराज सिन्हा ने तो सीधे कुशवाहा के घर जाकर उनसे मुलाकात की.सूत्रों के अनुसार, इसी मैराथन बैठक में आखिरकार कुशवाहा ने पवन सिंह से मुलाकात और उनके पार्टी में आने पर अपनी सहमति की मुहर लगा दी. यह भी पता चला है कि इस पूरी सुलह और समझौते की प्रक्रिया की शुरुआत गृह मंत्री अमित शाह की सीधी देखरेख में हुई थी. उनके निर्देशों पर, चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान और राज्य प्रभारी विनोद तावड़े ने इस मुश्किल कार्य को सफलतापूर्वक अंजाम दिया. यह प्रयास NDA गठबंधन के भीतर एकता को मजबूत करने के BJP के संकल्प को दर्शाता है.

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जातीय समीकरणों को साधने में मिल सकता है फायदा

पवन सिंह और उपेंद्र कुशवाहा के बीच सुलह का सबसे बड़ा लाभ शाहाबाद क्षेत्र में जातीय समीकरणों को साधने में मिल सकता है. काराकाट लोकसभा सीट इसी शाहाबाद क्षेत्र का हिस्सा है, जिसमें रोहतास, बक्सर, भोजपुर और कैमूर जैसे चार जिले आते हैं. इस क्षेत्र में राजपूत (पवन सिंह की जाति) और कोइरी/कुशवाहा (उपेंद्र कुशवाहा की जाति) मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है. पिछले लोकसभा चुनाव में, इन दोनों नेताओं के एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ने से एक बड़ा नुकसान हुआ. राजपूत और कोइरी जातियां न सिर्फ इस इलाके में बल्कि पूरे बिहार में NDA के खिलाफ बंट गईं. इसका सीधा परिणाम यह हुआ कि NDA को केवल काराकाट सीट पर ही नहीं, बल्कि आरा, बक्सर, सासाराम, पाटलिपुत्र, जहानाबाद और औरंगाबाद जैसी कई अन्य सीटों पर भी हार का सामना करना पड़ा. जहां राजपूत वोटर NDA उम्मीदवार के पक्ष में थे, वहां कोइरी मतदाता खिलाफ हो गए, और जहां कोइरी वोटर समर्थन में थे, वहां राजपूतों ने विरोध किया. अब यह गठजोड़ होने से, BJP को उम्मीद है कि ये दोनों महत्वपूर्ण जातियां एकजुट होकर NDA के पक्ष में मतदान करेंगी, जिससे शाहाबाद क्षेत्र और आसपास की सीटों पर हुए नुकसान की भरपाई की जा सकेगी.

जातीय खटास का शुरुआती असर 2020 विधानसभा चुनाव में

इस जातीय मनमुटाव के शुरुआती और गंभीर लक्षण 2020 के विधानसभा चुनाव में ही दिखने लगे थे. शाहाबाद क्षेत्र की कुल 22 सीटों में से NDA को महज 2 सीटों पर ही जीत मिल पाई थी.

उस चुनाव में, NDA से अलग होकर लड़ने वाले चिराग पासवान ने तो समीकरण बिगाड़ने का काम किया ही, लेकिन सबसे बड़ा नुकसान राजपूत और कोइरी/कुशवाहा मतदाताओं के बीच उपज रही खटास ने किया. इन दोनों प्रमुख जातियों के बीच का वैमनस्य NDA के लिए विनाशकारी साबित हुआ. इस बिखराव का पूरा फायदा राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने उठाया. RJD ने एक नया प्रयोग करते हुए कोइरी जाति के कई उम्मीदवारों को इस इलाके में टिकट दिया. RJD की सहयोगी पार्टियों, कांग्रेस और CPI(ML) ने भी यही सफल रणनीति अपनाई, जिससे उन्हें इस क्षेत्र में बड़ी सफलता मिली.संक्षेप में कहें तो, 2020 में NDA की बड़ी हार ने यह स्पष्ट कर दिया था कि राजपूत और कोइरी मतदाताओं को एक साथ साधने में विफलता का सीधा असर चुनावी नतीजों पर पड़ता है.

पवन सिंह-कुशवाहा की सुलह क्या होगी मास्टरस्ट्रोक?

NDA, और विशेष रूप से BJP के लिए, शाहाबाद क्षेत्र में राजपूत और कोइरी/कुशवाहा जातियों के बीच पैदा हुई खटास और खाई को पाटना अत्यंत आवश्यक हो गया था. यही वजह है कि उपेंद्र कुशवाहा और पवन सिंह को एक साथ लाकर यह महत्वपूर्ण राजनीतिक कोशिश की गई है. दोनों नेताओं को नजदीक लाने का उद्देश्य इन दोनों प्रभावशाली जातियों के वोटों को NDA के पक्ष में एकजुट करना है. BJP को यह उम्मीद है कि कुशवाहा और पवन सिंह का यह नया गठजोड़, आगामी नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए एक मास्टरस्ट्रोक रणनीति साबित होगा. अगर यह प्रयोग सफल होता है, तो 2020 और लोकसभा चुनाव में हुए नुकसान की भरपाई करते हुए NDA बिहार में अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है.

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