
- बिहार के पूर्वोत्तर में कसबा विधानसभा पूर्णिया क्षेत्र में आती है और महत्वपूर्ण राजनीतिक भूमिका निभाती है
- इस क्षेत्र में लगभग 40 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं जो चुनावी परिणामों को निर्णायक रूप से प्रभावित करते हैं
- कसबा का मुख्य आर्थिक आधार कृषि है और यहां विकास, रोजगार व बाढ़ समस्याएं प्रमुख सामाजिक मुद्दे हैं
बिहार के पूर्वोत्तर भाग में स्थित कसबा विधानसभा सीट, पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है और राज्य की राजनीति में अपना खास महत्व रखती है. यह सीट अपने लंबे चुनावी इतिहास और मजबूत कांग्रेस के गढ़ के रूप में जानी जाती है. आगामी विधानसभा चुनाव में इस सीट पर बीजेपी, जेडीयू, एलजेपी और आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन के बीच कड़ा मुकाबला होने की उम्मीद है. कसबा विधानसभा क्षेत्र पूर्णिया जिला मुख्यालय से लगभग 12 किलोमीटर उत्तर में स्थित है. 1967 में गठित, यह क्षेत्र कसबा, श्रीनगर, जलालगढ़ सामुदायिक विकास खंडों और कृत्यानंद नगर ब्लॉक के कुछ हिस्सों को समाहित करता है.
वोट गणित: मुस्लिम मतदाताओं की निर्णायक भूमिका
कसबा सीट पर मुस्लिम मतदाताओं की उपस्थिति चुनावी नतीजों को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. कुल पंजीकृत मतदाता (2024 तक) 2,93,314 हैं. मुस्लिम मतदाता (2020 के अनुसार) 1,13,933 (लगभग 40.20%) हैं. इस क्षेत्र में मतदान का प्रतिशत भी आमतौर पर अच्छा रहता है. 2020 के चुनाव में यहां 66.42% वोटिंग हुई थी.
क्या मुद्दे रहे हैं?
यह क्षेत्र अभी भी मुख्य रूप से ग्रामीण है, जहां विकास और रोजगार प्रमुख मुद्दे बने हुए हैं. कसबा का भू-भाग अधिकांशतः समतल है, जिससे यह मानसून के दौरान बाढ़ की चपेट में रहता है. कृषि यहां की आर्थिक रीढ़ है, जहां धान, मक्का और जूट प्रमुख फसलें हैं, लेकिन खेती अभी भी मौसमी नदियों और भूजल पर निर्भर है. रोजगार के अवसरों की कमी के कारण इस क्षेत्र से कई लोग शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन करते हैं, जो एक गंभीर सामाजिक-आर्थिक मुद्दा है. इस सीट की सबसे खास बात कांग्रेस का मजबूत इतिहास है. कांग्रेस ने यहां अब तक कुल 9 बार जीत हासिल की है और हाल के वर्षों में 2010, 2015 और 2020 में लगातार तीन बार जीत दर्ज की है.
कब-कब कौन जीता/पिछली हार जीत
कसबा विधानसभा सीट पर कांग्रेस की पकड़ ऐतिहासिक रही है, जिसने शुरुआती छह चुनावों (1967 से 1977 तक) में लगातार जीत दर्ज की थी. 2020 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के एम.डी. अफाक आलम ने जीत दर्ज की थी. कांग्रेस उम्मीदवार मो. अफाक आलम और पूर्व भाजपा विधायक प्रदीप कुमार दास के बीच यहां कड़ा मुकाबला रहा है. दास ने 2010 और 2015 में भी भाजपा उम्मीदवार के रूप में आलम को चुनौती दी थी, लेकिन तीनों बार हार गए थे. हालांकि, तीन बार विधायक रह चुके प्रदीप कुमार दास का इस क्षेत्र की राजनीति में अभी भी अहम स्थान है.
माहौल क्या है?
आगामी चुनाव में मुकाबला बेहद कांटे का रहने वाला है. एक तरफ कांग्रेस (एम.डी. अफाक आलम) अपनी जीत की हैट्रिक को चौथी जीत में बदलना चाहेगी, वहीं दूसरी तरफ NDA गठबंधन इस महत्वपूर्ण सीट को छीनने की पूरी कोशिश करेगा. 40% से अधिक मुस्लिम वोटरों की उपस्थिति में, अल्पसंख्यक मतों का ध्रुवीकरण या बिखराव ही कसबा सीट के चुनावी नतीजे की दिशा तय करेगा.
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