
- एनडीए में सीटों के बंटवारे को लेकर पटना और दिल्ली में नेताओं की लगातार बैठकें हो रही हैं
- चिराग पासवान और जीतन राम मांझी ने सीटों की संख्या को लेकर सार्वजनिक तौर पर अपनी नाराजगी व्यक्त की है
- जदयू 110, चिराग पासवान 40, जीतन राम मांझी 15 और उपेन्द्र कुशवाहा 20 सीटें मांग रहे हैं
एनडीए में सीटों के बंटवारे को लेकर बैठकों का दौर जारी है, पटना से लेकर दिल्ली तक नेता बैठकें कर रहे हैं. सब अपने उम्मीदवारों की सूची लेकर माथापच्ची कर रहे हैं. एनडीए में चिराग पासवान और जीतन राम मांझी सार्वजनिक तौर पर अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं. पटना में चिराग पासवान के दल के चार सांसद और पदाधिकारी अलग बैठक कर रहे हैं, जबकि जीतन राम मांझी 15 सीटें ना मिलने की हालत में चुनाव ही नहीं लड़ने की बात कह रहे हैं.
एनडीए में जेडीयू 110 सीट लड़ना चाहती है, तो चिराग पासवान 40 सीट चाहते हैं. जीतन राम मांझी 15 तो उपेन्द्र कुशवाहा 20 सीट चाहते हैं. मौजूदा विधानसभा में जदयू के 43, जीतन राम मांझी के 4,चिराग पासवान के एक तो उपेन्द्र कुशवाहा के शून्य विधायक हैं. पिछली बार बीजेपी 110 सीट लड़ कर 74 सीट, जेडीयू 115 सीट लड़ कर 43 सीट,मांझी 7 लड़ कर 4 सीट.उपेन्द्र कुशवाहा और चिराग पासवान एनडीए का हिस्सा नहीं थे, अलग-अलग लड़े थे. उपेन्द्र कुशवाहा ने ओवैसी के साथ मिलकर एक मोर्चा बनाया था 104 सीट लड़े शून्य सीट आया. उसी तरह चिराग पासवान 135 सीट लड़ी केवल एक सीट आया.
अब बात करते हैं, महागठबंधन की. पिछली बार आरजेडी 144 सीट लड़ी थी जीती 75, कांग्रेस लड़ी 70 सीट जीती 19, भाकपा-माले 19 सीट लड़ कर 12 जीते, सीपीआई 6 सीट लड़ी 2 जीते, सीपीएम 4 लड़ीं थी जीते 2. वहीं वीआईपी के मुकेश सहनी एनडीए का हिस्सा थे उन्हें 13 सीटें दी गई थी जीते 4 थे. इस बार राजद खुद 140 लड़ना चाहती है, कांग्रेस 70 सीटें, माले 40, वीआईपी यानि सहनी 60 सीट, सीपीआई 24 और सीपीएम 11 सीट चाहती है.
जाहिर है इतनी सीटें दोनों गठबंधनों के पास है नहीं, ऊपर से किसी को उपमुख्यमंत्री भी बनना है. हर गठबंधन में हरेक दल अपने लिए अधिक सीटों की मांग करता है, उसे लगता है कि उनका आंकड़ा इससे कम नहीं होना चाहिए. सीटों के बंटवारे के वक्त हर दल की वैसी ही हालत होती है. जैसे वनडे या T-20 में गेंदबाज़ की होती है. बल्लेबाज़ के पैड पर बॉल लगी, तो सीधे कप्तान से डीआरएस लेने के लिए दबाव बनाता है. जैसे गेंदबाज़ को लगता है कि उसकी हर गेंद विकेट दिलाने वाली है, उसी तरह राजनैतिक दलों को भी लगता है कि गठबंधन में हैं तो हर सीट पर उनकी जीत तय है.
ऐसे में जो भी गठबंधन अपने मतभेद दूर करके बिना भीतरघात किए चुनाव में उतरेगा उसके जीतने के चांस उतने ही अच्छे रहेंगे.
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