
- बिहार चुनाव करीब आते ही सत्तू की दुकानों पर लोगों की राजनीतिक चर्चा और सक्रिय भागीदारी देखी जा रही है.
- लोगों का मानना है कि पुराने नेताओं लालू यादव, नीतीश कुमार, सक्रिय राजनीति से पीछे हों और नए चेहरे आगे आएं.
- तेजस्वी यादव, चिराग पासवान और प्रशांत किशोर को नए चेहरों के तौर पर देखा जा रहा है, लेकिन भरोसे की कमी भी है.
बिहार में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और यहां की राजनीति पर चर्चा केवल चाय पर ही नहीं, बल्कि सत्तू के गिलास पर भी होती है. सत्तू जिसे बिहार का 'हॉर्लिक्स' कहा जाता है, ये लोगों के लिए सुबह के नाश्ते का हिस्सा है. नमक, भुना हुए जीरे का पाउडर, नींबू, मिर्च, प्याज... 100 ग्राम सत्तू के साथ घोल के पेट मे डाला और मिजाज मस्त. सुबह-सुबह सत्तू के ठेले पर लोगों की भीड़ जुटना रोज का सीन है और लोग जुटते हैं तो कई मुद्दों पर चर्चा भी करते हैं. पटना की सड़कों पर एक ऐसे ही सत्तू की दुकान पर पहुंचे एनडीटीवी इंडिया के मैनेजिंग एडिटर मनोरंजन भारती. चर्चा शुरू करने की देर थी. लोगों ने राजनीति और नेतृत्व पर बेबाक राय रखी.

लालू-नीतीश अब हुए पुराने
लोगों की राय में इस बार चुनाव पुराने चेहरों से अलग होगा. रामविलास पासवान अब हैं नहीं, नीतीश कुमार पर उम्र और थकान के तर्क दिए जा रहे हैं और लालू यादव भी सक्रिय राजनीति से पीछे हैं. ऐसे में बातचीत का केंद्र बिंदु बने तीन नाम तेजस्वी यादव, चिराग पासवान और प्रशांत किशोर.
जनता की आवाज में एक साझा स्वर था- नए नेतृत्व की तलाश. कोई तेजस्वी को मौका देने की बात कर रहा था, तो कोई प्रशांत किशोर को संभावनाओं का चेहरा मान रहा था. लेकिन भरोसे की कमी भी साफ दिखी. एक युवक बोला, 'भरोसा किसी पर नहीं रहा, पर बदलाव की उम्मीद सबको है.'
तेजस्वी बनाम चिराग बनाम पीके
तेजस्वी यादव को युवा और लोकप्रिय नेता मानते हुए कई लोगों ने कहा कि वे 'सबसे आगे दिखते हैं'. हालांकि, कुछ का मानना था कि चिराग अभी मुख्यमंत्री के स्तर के नेता नहीं हैं. वहीं, प्रशांत किशोर के बारे में कहा गया कि वे जनता को समझाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उनके लिए एक स्थाई वोट बैंक बनाना चुनौती होगी.
ज्योति बसु, नवीन पटनायक और अब नीतीश!
एक बुजुर्ग शख्स ने नीतीश कुमार की तुलना बंगाल के ज्योति बसु से करते हुए कहा, 'जैसे उन्होंने उम्र के बाद खुद को किनारे कर दिया, वैसे ही अब नीतीश जी को भी रिटायर हो जाना चाहिए.' एक आवाज ये भी आई कि ओडिशा के पूर्व सीएम नवीन पटनायक की तरह वे भी किनारे हो सकते हैं. वहीं, दूसरी ओर लोगों ने स्वीकार किया कि उनके दौर में बिहार में विकास भी हुआ है.

गली-चौबारों में चलने वाली चर्चाओं से साफ है कि इस बार बिहार चुनाव दिलचस्प होने वाला है. नीतीश पर भरोसा तो है ही, जनता का झुकाव नया नेतृत्व खोजने की ओर भी है, हालांकि अंतिम फैसला बैलट बॉक्स ही बताएगा.
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