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बिहार चुनाव: लालू के करीबी राजबल्लभ ने क्यों छोड़ा राजद का साथ? क्यों हुए नीतीश के करीब

लालू प्रसाद के पुराने सहयोगी राजबल्लभ यादव का परिवार अब नीतीश कुमार के खेमे में चला गया है.

बिहार चुनाव: लालू के करीबी राजबल्लभ ने क्यों छोड़ा राजद का साथ? क्यों हुए नीतीश के करीब
  • 22 साल पहले पटना में राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने लाठी रैली आयोजित की थी, जिसमें बिहार भर से लोग शामिल हुए थे
  • राजबल्लभ प्रसाद का लालू परिवार से 1990 से सियासी जुड़ाव था, जो कई उतार-चढ़ाव के बाद अब समाप्त हो गया है
  • राजबल्लभ परिवार की पत्नी विभा देवी और सहयोगी प्रकाशवीर ने हाल ही में जदयू की सदस्यता ग्रहण कर ली है
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नवादा:

22 साल पहले पटना में लाठी रैली आयोजित हुई थी. तब राबड़ी देवी मुख्यमंत्री थी. राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने लाठी रैली आयोजित की थी. उस रैली में बिहार भर से लोग लाठी लेकर पहुंचे थे. तब नवादा के तत्कालीन विधायक और बिहार के श्रम राज्य मंत्री रहे राजबल्लभ प्रसाद भी लाठी लेकर गए थे. राजबल्लभ प्रसाद की लाठी बिहार भर से आए लाठियों में सबसे बड़ी थी. वह लाठी वाहन से ले जाया गया था. लालू ने लाठी में तेल पिलावन का नारा दिया था.

हालांकि लाठी रैली के कारण लालू प्रसाद के साथ राजबल्लभ प्रसाद की खूब आलोचना हुई थी. लेकिन तब राजबल्लभ यादव चर्चा में रहे थे. 2003 की यह घटना लालू प्रसाद से राजबल्लभ प्रसाद की सियासी निष्ठा को बयां करने का एक उहाहरण है. लालू परिवार से राजबल्लभ से सियासी जुड़ाव के कई कहानियां रही है.

1990 से था लालू से राजबल्लभ परिवार का रिश्ता

दरअसल, लालू प्रसाद से राजबल्लभ परिवार का 1990 से सियासी जुड़ाव था. 1990 में राजबल्लभ प्रसाद के बड़े भाई कृष्णा प्रसाद नवादा सीट पर बीजेपी से निर्वाचित हुए थे. लेकिन लालू प्रसाद की स्थिति कमजोर पड़ने लगी थी तब कृष्णा प्रसाद दल बदलकर लालू प्रसाद के साथ हो गए थे. 1994 में कृष्णा प्रसाद के निधन के बाद राजबल्लभ प्रसाद राजनीति में सक्रिय हुए थे, तब से लालू प्रसाद का सियासी साथ रहे.

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लालू परिवार से जुड़ाव के कारण स्थानीय स्तर पर राजबल्लभ प्रसाद की ऐसी छवि थी कि उन्हें नवादा का लालू कहा जाता था. लेकिन करीब साढ़े तीन दशक पुराना सियासी रिश्ते का आज अंत हो गया. राजबल्लभ प्रसाद की पत्नी विभा देवी और उनके सहयोगी प्रकाशवीर ने जदयू की सदस्यता ग्रहण की है.

पटना जदयू कार्यालय में विधान पार्षद संजय गांधी और मंत्री श्रवण कुमार के समक्ष विभा देवी और प्रकाशवीर ने सदस्यता ग्रहण की. दोनों नेताओं ने जदयू प्रमुख और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रति गहरी आस्था जताई है. गौरतलब है कि इसके पहले विभा देवी और प्रकाशवीर ने बिहार विधानसभा के अध्यक्ष नंदकिशोर यादव के समक्ष विधायक पद से इस्तीफा दिया था. विभा नवादा से राजद विधायक थीं, जबकि प्रकाशवीर रजौली से.

लालू परिवार से क्यों बढ़ी राजबल्लभ परिवार की दूरियां

साढ़े तीन दशक के सियासी रिश्ते में लालू परिवार और राजबल्लभ परिवार का कई दफा उतार चढ़ाव आया. निर्दलीय भी चुनाव लड़े. लेकिन लालू प्रसाद के प्रति आस्था कमजोर नही पड़ी थी. दरअसल, नौ साल पहले की घटना के बाद से दूरियां बढ़ी जिसका आज अंजाम सामने आया. 2016 में राजबल्लभ प्रसाद पर पोक्सों का मुकदमा दर्ज हुआ था. राजबल्लभ परिवार को लालू प्रसाद से उम्मीद थी. लेकिन मदद नही मिली. राजबल्लभ का आरोप है कि मदद के एवज में खनन लीज में पार्टनर बनाने का दबाव था. इसपर राजी नही होने के कारण उनके साथ ज्यादती की गई. जबकि नीतीश कुमार मुख्यमंत्री और तेजस्वी यादव उपमुख्यमंत्री थे.

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 तेजस्वी यादव ने स्थानीय निकाय चुनाव 2022 और लोकसभा चुनाव 2024 में राजबल्लभ यादव खेमा से इतर विरोधी गुट के श्रवण कुशवाहा को राजद का उम्मीदवार बना दिया गया था. यह राजबल्लभ परिवार और लालू परिवार से बढ़ती सियासी खाई को चौड़ा कर दिया.

दोनों परिवार में क्यों बढ़ी दूरियां?

दूसरी तरफ, राजबल्लभ परिवार के कई कदम से लालू परिवार में भी काफी नाराजगी रही है, जो अलगाव के रूप में सामने आया. 1995 में लालू प्रसाद ने टिकट नही दिया तब राजबल्लभ निर्दलीय लड़कर सियासी ताकत दिखाई थी. दूसरी दफा, 2022 में तेजस्वी यादव जब स्थानीय निकाय में राजबल्लभ के भतीजा अशोक यादव को राजद से उम्मीदवार नही बनाया तब अशोक निर्दलीय निर्वाचित होकर सियासी ताकत दिखाई थी. तीसरी दफा, लोकसभा 2024 में जब राजबल्लभ के भाई विनोद यादव को उम्मीदवार नही बनाया तब निर्दलीय लड़कर सियासी चुनौती दिया था.

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पहले भतीजा, फिर पत्नी जदयू में

नवंबर 2024 में राजबल्लभ का विधान पार्षद भतीजा अशोक यादव ने जदयू का दामन थामा था. अब राजबल्लभ की पत्नी विभा देवी और उनके सहयोगी प्रकाश वीर जदयू का दामन थाम लिए हैं. नवादा सीट पर विभा 2020 में राजद से जीती थी. इसके पहले तीन दफा राजबल्लभ नवादा सीट से जीते थे.जबकि प्रकाशवीर दो दफा राजद से रजौली से जीते थे. दरअसल, अगस्त 2025 में राजबल्लभ का दरवाजा राजद में बंद हो गया था, जब राजबल्लभ के विरोधी रहे जेडीयू के पूर्व विधायक कौशल यादव को तेजस्वी यादव ने शामिल करा लिया था.

बदल गए सियासी समीकरण

नवादा की सियासत में पूर्व विधायक राजबल्लभ यादव और पूर्व विधायक कौशल यादव के सियासी समीकरण बदल गए हैं. राजबल्लभ यादव महागठबंधन के सियासी समीकरण पर चुनाव लड़ते थे. जबकि कौशल एनडीए का. अब दोनों के सियासी समीकरण पूरी तरह से बदल गए हैं.
 

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