
- बिहार चुनाव में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं पर टिकट बंटवारे के आरोप लग रहे हैं. इससे पार्टी नेता नाराज है.
- कांग्रेस ने अति पिछड़ों के लिए कई बातें की थी, लेकिन कैंडिडेट लिस्ट में EBC के साथ न्याय होता नजर नहीं आता.
- कांग्रेस के कमजोर सीटों पर अति पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवार उतारे हैं, जिससे उनका मुकाबला टफ है.
Congress Crisis in Bihar Elections: बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस में टिकट बंटवारे के बाद घमासान मचा हुआ है. टिकटों की खरीद-बिक्री के आरोप के भी लग रहे हैं. नाराज नेताओं के निशाने पर प्रभारी कृष्णा अल्लावरू, प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम, CLP लीडर शकील अहमद खान जैसे नेता हैं. कांग्रेस के विधायक अफाक आलम, छत्रपति यादव ने भी पैसे लेकर टिकट बांटने का आरोप लगाया है. इन आरोपों में कितनी सच्चाई है यह तो कोई जांच एजेंसी पता कर सकती है लेकिन टिकट बंटवारे के बाद सवाल उठ रहा है कि क्या कांग्रेस अपने ही फॉर्मूला को भूल गई?
कांग्रेस की टिकट बंटवारे के फार्मूला को समझने से पहले राहुल गांधी के भाषण का यह अंश पढ़िए.
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राहुल गांधी
24 सितंबर को राहुल गांधी ने पटना में CWC के बाद आयोजित अति पिछड़ा न्याय संकल्प कार्यक्रम में यह भाषण दिया था. राहुल गांधी जाति जनगणना, आरक्षण की सीमा बढ़ाने जैसी बातें करते हैं. ताकि जिसकी जितनी हिस्सेदारी, उसकी उतनी भागीदारी सुनिश्चित की जा सके. लेकिन कांग्रेस के टिकट वितरण में भागीदारी नहीं दिखती.

EBC के लिए संकल्प पत्र जारी करते राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे और तेजस्वी यादव.
कांग्रेस ने अभी तक 54 उम्मीदवारों की घोषणा की
कांग्रेस ने अब तक 54 सीटों पर उम्मीदवारों का आधिकारिक ऐलान किया है. इसमें 10 सुरक्षित सीटें शामिल है. कांग्रेस ने 9 टिकट अनुसूचित जाति के, 1 अनुसूचित जनजाति के, 13 टिकट पिछड़े वर्ग के उम्मीदवार को, 7 टिकट अत्यंत पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों को दी है.
54 में सबसे अधिक 24 सामान्य वर्ग के उम्मीदवार
पार्टी ने सबसे अधिक 24 टिकट सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों को दिया है. टिकट बंटवारे में सबसे अधिक भागीदारी सामान्य वर्ग की है. 15.52 फीसदी आबादी वाले समूह को कांग्रेस ने 44 फीसदी से अधिक टिकट दिए हैं. 27 फीसदी वाले अन्य पिछड़ा वर्ग को 20 फीसदी टिकट दिए हैं.
अति पिछड़ा समाज की अनदेखी का आरोप
कांग्रेस ने उम्मदीवारों की घोषणा में 36 फीसदी आबादी वाले अत्यंत पिछड़ा वर्ग को सिर्फ 13 फीसदी टिकट दिए हैं. राष्ट्रीय अति पिछड़ा मोर्चा के अध्यक्ष विजय चौधरी कांग्रेस पर अति पिछड़ों की हकमारी का आरोप लगाते हैं. वे कहते हैं, "हमें हमारी संख्या के अनुरूप में टिकट नहीं दिया गया.

राष्ट्रीय अति पिछड़ा मोर्चा के अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी.
कमजोर सीटों पर अति पिछड़ों को दिया टिकट
कांग्रेस की कमजोर सीटों पर अति पिछड़ा उम्मीदवार उतारे गए. कुम्हरार की सीट पर भाजपा लगातार जीत रही है. हरनौत की सीट नीतीश कुमार के गृह जिले की सीट है, यहां जदयू का कब्जा है. हमें किसी मजबूत सीट से टिकट दिया जाता तो परिणाम बेहतर होते. हमें राहुल गांधी ने भरोसा दिया था कि हमारे साथ न्याय होगा. लेकिन बिहार कांग्रेस के नेताओं ने हमारे साथ अन्याय किया."
'राहुल गांधी की बातें कांग्रेस में कोई नहीं मानता'
नाम न छापने की शर्त पर कांग्रेस के एक अन्य नेता ने कहा, "राहुल गांधी की बातें कांग्रेस में ही कोई नहीं मानता. जिन 7 अति पिछड़ों को टिकट दिया गया है उनमें कई सीटों पर ऐसे उम्मीदवार उतारे गए हैं जो दूसरी पार्टियों में रहे हैं. मिथिलेश निषाद लोजपा से लड़े थे, कुम्हरार के उम्मीदवार इन्द्रदीप चन्द्रवंशी सुबह भाजपा में थे, शाम में टिकट मिल गया. ऐसे में पार्टी के अति पिछड़ा नेताओं के लिए जगह ही नहीं बची."
न संगठन में भागीदारी, न टिकट में
पार्टी के एक अन्य नेता ने बताया कि अभी 40 संगठन जिले हैं इनमें 15 जिलों में अगड़ी जातियों के नेता जिला अध्यक्ष हैं. अत्यंत पिछड़ी जातियों से सिर्फ 3 जिलाध्यक्ष हैं. प्रदेश कमिटी बनी नहीं है तो वहां भी भागीदारी नहीं मिली और अब टिकट से भी हमें वंचित कर दिया गया. ऐसे में हम किस मुंह से जाकर लोगों से वोट मांगे?

यह शुरुआत है, आगे और टिकट देंगे
बिहार प्रदेश अति पिछड़ा कांग्रेस के अध्यक्ष शशि भूषण पंडित मानते हैं कि कांग्रेस ने अति पिछड़ा वर्ग को पर्याप्त भागीदारी दी है. वे कहते हैं, "हमारे पास जितने नेता थे, उस हिसाब से हमने टिकट दिए हैं. भागीदारी के नाम पर ऐसे लोगों को टिकट नहीं दिया जा सकता जो चुनाव जीत नहीं पाएंगे. हमने मजबूत लोगों को टिकट दिया है. जिनके जीतने की संभावनाएं सर्वाधिक हैं. यह शुरुआत है, यह अंतिम चुनाव नहीं है. हम इस संख्या को और बढ़ाएंगे."
दूसरे दल के नेताओं को टिकट देने पर क्या बोले कांग्रेस नेता
दूसरे दल के नेताओं को टिकट देने के सवाल पर वे कहते हैं, "चुनाव में इस तरह के रणनीतिक फैसले लेने होते हैं. अरुण बिंद 2015 में ही लोजपा से लड़े थे. इन्द्रदीप चंद्रवंशी हमारे कार्यक्रमों से जुड़े रहे हैं. पार्टी ने उचित फैसला लिया है. मुझे लगता है कि पार्टी संगठन में भी यह संख्या और बढ़ेगी."
भागीदारी के बिना नीतीश के कोर वोट बैंक में सेंधमारी मुश्किल
CSDS का सर्वे बताता है कि 2005 अति पिछड़ी जातियों का 57 % और 2010 के चुनाव में 63 फीसदी वोट NDA गठबंधन को मिला था. 2010 में NDA ने 243 में से 206 सीटें जीती थी. पिछले विधानसभा चुनाव में यादव, कोइरी, कुर्मी के अलावा पिछड़ी जातियों और अन्य पिछड़ी जातियों के समूह ने एनडीए को 58 फीसदी और महागठबंधन को 18 फीसदी वोट दिए थे.
जानकार बोले- कांग्रेस ने अपनी चुनावी पिच गंवा दी
चुनाव विश्लेषक आशीष रंजन कहते हैं कि बीते कुछ समय में अत्यंत पिछड़े वर्ग में प्रतिनिधित्व की भूख बढ़ी है. राहुल गांधी जब बार बार भागीदारी की बात कर रहे थे तो अत्यंत पिछड़ी जातियों में एक आकर्षण बढ़ा था. लेकिन टिकट बंटवारे से कांग्रेस ने अपनी चुनावी पिच गंवा दी है.
अति पिछड़ा न्याय संकल्प तक पहुंचना मुश्किल
हालांकि महागठबंधन में आईपी गुप्ता की पार्टी और मुकेश सहनी की पार्टी VIP शामिल है जिनके 2% और 3.3 % मतदाता हैं. उनकी वजह से अत्यंत पिछड़ा वर्ग का एक हिस्सा महागठबंधन को वोट करेगा. लेकिन जो उम्मीद महागठबंधन के नेताओं को अति पिछड़ा न्याय संकल्प से थी, वहां तक पहुंचना मुश्किल है.

राहुल गांधी के सामने हुई थी 36 फीसदी टिकट देने की मांग
24 सितंबर को जब राहुल गांधी अत्यंत पिछड़ी जातियों के लिए EBC एक्ट लाने, आरक्षण की सीमा बढ़ाने जैसी 10 घोषणाएं कर रहे थे. तब भी मंच के सामने से कई नेताओं ने 36%-36% के नारे लगाए थे. उनकी मांग थी कि अत्यंत पिछड़ों को पर्याप्त टिकट दिए जाएं तभी इस मेनिफेस्टो का असर होगा.
पिछली बार से अधिक टिकट दिए, नतीजा तय करेगा आगे की राह
हालांकि अब टिकट बंटवारे के बाद साफ है कि कांग्रेस ने पिछली बार के मुकाबले इबीसी को अधिक टिकट दिए हैं लेकिन यह उनके ही फार्मूले से काफी दूर है. ऐसे में अत्यंत पिछड़ा वोट पाने की कांग्रेस की उम्मीद कितनी कारगर साबित होगी, यह परिणाम बताएगा.
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