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बिहार का यूथ किसे करेगा वोट? मोबाइल से रखता है हर अपडेट, इन्हें बरगलाना आसान नहीं

बिहार में यूथ वोटरों की संख्या 1.75 करोड़ है, जो कुल वोटरों का करीब 24 प्रतिशत है. यह समूह राजनीतिक दिशा का रूख मोड़ने से लेकर सत्ता परिवर्तन तक की क्षमता रखता है.

बिहार का यूथ किसे करेगा वोट? मोबाइल से रखता है हर अपडेट, इन्हें बरगलाना आसान नहीं
बिहार में यूथ वोटर की संख्या 1.75 करोड़ है. यह वर्ग मोबाइल के जरिए हर चीज का अपडेट रखता है. (AI Image)

Bihar Assembly Elections 2025: जन्म के साथ ही मोबाइल, कुछ बढ़ते इंटरनेट और सोशल मीडिया की समझ, फिर कंप्यूटर का नॉलेज. ये कहानी है यूथ की. वो यूथ जिसके पास सवालों की लंबी फेहरिस्त हैं. वो यूथ को किसी पुरानी परिपाटी को मानने से कतराता है. वो यूथ जिसे कोई आसानी ने बरगला नहीं सकता. बात सियासत की करें तो ये वो समूह है जो किसी के प्रभाव या बहकावे में जल्द नहीं आता. कैडर वोट या पारंपरिक मतदान की सोच से भी ऊपर उठ चुका है. आने वाले कुछ दिनों बिहार में चुनाव होने वाला है. ऐसे में आज चर्चा बिहार के इसी यूथ वोटर की.

बिहार में यूथ वोटरों की संख्या सर्वाधिक है और वे अपना भला-बुरा सोचने की पूर्ण स्थिति में हैं. उन्हें सीएम नीतीश कुमार के उन भाषणों में कोई दिलचस्पी नहीं है कि 20 वर्ष पूर्व की सरकार कैसी थी या उस समय राज्य की क्या दशा थी. वे यह नहीं सुनना चाहते हैं कि उन्होंने किस दलदल से बिहार को निकाल कहां तक पहुंचा दिया है.
 

  1. यूथ को लालू प्रसाद द्वारा किए सामाजिक परिवर्तन या पिछड़ों के मुंह में बोली देने वाली कहानी में भी कोई दिलचस्पी नहीं है. वे कैडर वोट के चंगुल से भी बाहर निकल चुके हैं.
  2. इस जेनरेशन से पूर्व तक यह धारणा बनी हुई थी कि RSS से जुड़े हैं तो, BJP को ही वोट देने की बाध्यता है.
  3. ब्राह्मण या वैश्य BJP का ही कैडर वोट है. वे इस धारणा को भी स्वीकार करने के पक्ष में भी नहीं हैं कि यादव और मुस्लिम का रहनुमा कांग्रेस या आरजेडी ही हो सकती है.
  4. वे इस धारणा से भी काफी ऊपर हैं कि देश को आजादी दिलाने वाली या देश के लिए संविधान गढ़ने वाली कांग्रेस पार्टी ही थी. कारण साफ है कि उस समय वे थे ही नहीं या फिर थे भी तो, इसे महज कहानी समझ सुन ले रहे हैं.

जन्म लिया तो सामने था इंटरनेट

साल 1997 से 2012 के बीच जन्म लिए लोग यूथ यानी जेनरेशन जेड की श्रेणी में आते हैं. जब उनका जन्म हुआ और कुछ सोंचने-समझने की स्थिति में आये तो उनके सामने कंप्यूटर, लैपटॉप, टेबलेट, एंड्रॉयड फोन, इंटरनेट, वाकी-टॉकी सहित ऐसे अत्याधुनिक सुविधाएं उपलब्ध थी.

मोबाइल पर गेम खेलने और कार्टून मूवी देखने से अपना जीवन शुरू करने वाले इन बच्चों ने इंटरनेट का यूज कर देश-दुनियां की व्यवस्था और सुख-सुविधाओं को देख लिया था. बड़े होने के साथ वे ऑनलाइन की दुनियां में प्रवेश किए और अपने जीवन का भला-बुरा समझने लगे. किसी की बातों में आना या किसी से तुरंत प्रभावित होने की फितरत उनमें नहीं रही.

शिक्षा और कैरियर को ले हैं सजग

यूथ की पढाई-लिखाई में जितनी दिलचस्पी है, उतनी ही दिलचस्पी वे राजनीति में भी ले रहे हैं. वे ही चुनावी सभाओं में भीड़ का हिस्सा भी बन रहे हैं, लेकिन वक्ताओं के भाषण से वे प्रभावित नहीं होते हैं. वे किसी प्रलोभन में भी आते नहीं दिखते हैं. वे नेताओं की योजना और उसके क्रियान्वयन नर गंभीरता से ध्यान देते हैं कि इस योजना से उनके जीवन और भविष्य पर क्या असर होगा. इससे उनकी जिंदगी बेहतर होगी या नहीं. वे शिक्षा और अपने कैरियर को लेकर भी काफी सजग हैं.

अभी जब राज्य में नौकरी, रोजगार और पलायन सबसे बड़ा मुद्दा बनकर उभरा है तो यह सिर्फ और सिर्फ इन्हीं युवाओं के प्रयास का नतीजा है.

बिहार में कुल 1.75 करोड़ वोटर हैं यूथ


बिहार की कुल आबादी 13.43 करोड़ है, जिनमें से 7.24 करोड़ मतदाता हैं. इन मतदाताओं का एक चौथाई हिस्सा यूथ का है. यानी 18 वर्ष से लेकर 28 वर्ष तक के यूथ वोटरों की कुल संख्या 1.75 करोड़ है, जो कुल मतदाताओं का 24 प्रतिशत है. इतनी बड़ी आबादी किसी भी आंदोलन को हवा देने के लिए काफी है.

सोशल मीडिया के उपयोग में माहिर यह जेनरेशन किसी के भी पक्ष या विपक्ष में हवा का रूख मोड़ने की क्षमता रखता है. इसीलिए सभी राजनैतिक दल इसी यूथ को अपनी पार्टी के सोशल मीडिया की कमान सौंपते हैं. होश और जोश से भरे इस यूथ में सत्ता परिवर्तन करने तक की क्षमता है.

इनका मन-मिजाज पढ़ना है मुश्किल

इस जेनरेशन में पैदा हुए और अब वोटर बन चुके युवा सिर्फ और सिर्फ अपना भविष्य देख रहे हैं. दुनिया के अन्य देशों और देश के अन्य राज्यों से बिहार की तुलना कर रहे हैं. वे किसी प्रलोभन में भी नहीं आते दिख रहे हैं. उनकी मानसिकता को समझना चुनावी सर्वे करने वालों के भी जटिल समस्या बन गई है.

सर्वे में दो मुख्य धाराओं में किसी का समर्थन नहीं कर या 'कह नहीं सकते' के कॉलम में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने वाले के मन मिजाज को पढ़ना मुश्किल हो गया है. लिहाजा यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि बिहार में इस बार चुनाव प्रचार-प्रसार, योजना या प्रलोभन से इतर प्रभावित हो सकता है. यह कहने में भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि बिहार इस बार चुनावी राजनीति को नई दिशा दे.

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