- बिहार विधानसभा चुनाव के दो चरणों में मतदान पूरा होने के बाद अब वोटों की गिनती चल रही है
- यादव बहुल सीटों पर महागठबंधन और एनडीए के बीच कड़ा और दिलचस्प मुकाबला जारी है
- यादव समुदाय परंपरागत रूप से राजद का वोट बैंक माना जाता है और पार्टी को निर्णायक बढ़त मिली है
बिहार विधानसभा चुनाव के दो चरणों में मतदान पूरा होने के बाद अब वोटों की गिनती चल रही है. शुरुआती रुझानों से साफ है कि राज्य में महागठबंधन और एनडीए के बीच सीधा मुकाबला देखने को मिल रहा है. खासकर यादव बहुल सीटों पर बेहद दिलचस्प और कड़ा संघर्ष जारी है. यादव समुदाय को लंबे समय से राष्ट्रीय जनता दल (राजद) का परंपरागत वोट बैंक माना जाता रहा है. चुनावी समीकरणों में यह वर्ग राजद को थोक में वोट देता रहा है, जिससे पार्टी को कई बार निर्णायक बढ़त मिली है. यही वजह है कि इन सीटों पर महागठबंधन की उम्मीदें सबसे ज्यादा टिकी हैं.
यादव बहुल सीटों का क्या है हाल?
हालांकि इस बार तस्वीर पूरी तरह एकतरफा नहीं है. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने भी यादव वोटरों को साधने के लिए कई बड़े चेहरे मैदान में उतारे हैं। रामकृपाल यादव, जो कभी राजद के करीबी रहे, अब बीजेपी की टिकट पर दानापुर से चुनाव लड़ रहे हैं. उनके अलावा पार्टी ने कई अन्य यादव नेताओं को भी प्रमुख भूमिकाएं दी हैं.
जदयू भी पीछे नहीं है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी ने बिजेंद्र यादव जैसे नेताओं को आगे कर यादव वोटरों को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश की है.
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यादव वोटों में सेंधमारी इस बार चुनावी नतीजों को काफी हद तक प्रभावित कर सकती है. अगर बीजेपी और जदयू यादव वोटों में कुछ प्रतिशत भी हिस्सेदारी बढ़ाने में सफल रहते हैं, तो महागठबंधन की राह मुश्किल हो सकती है. वहीं, अगर राजद अपने पारंपरिक वोट बैंक को पूरी तरह बचा लेता है, तो यह उसके लिए बड़ी जीत का आधार बन सकता है. अब देखना होगा कि गिनती पूरी होने पर यादव बहुल सीटों पर किसकी जीत होती है और यह नतीजे बिहार की सत्ता के समीकरण को किस दिशा में मोड़ते हैं.
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