- रालोसपा के मुखिया उपेन्द्र कुशवाहा की बिहार के कुशवाहा समाज में अच्छी पकड़ मानी जाती है.
- पिछले चुनाव में कुशवाहा अलग चुनाव लड़े थे, तब करीब एक दर्जन सीटों पर बीजेपी को नुकसान हुआ था.
- बिहार चुनाव में 6 सीटें दिए जाने से नाराज कुशवाहा को मनाने के लिए केंद्रीय बीजेपी नेतृत्व को दखल देना पड़ा था.
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 एनडीए और महागठबंधन, दोनों के लिए बेहद अहम है. ऑपरेशन सिंदूर और SIR सर्वेक्षण के बाद बिहार पहला ऐसा राज्य है, जहां चुनाव हो रहे हैं. दोनों गठबंधन अपने-अपने ढंग से नेरेटिव सेट करने में लगे हैं. लोक लुभावन घोषणा पत्र और वादों के सहारे चुनावी फिजा अपने पाले में करने में जुटे हैं. दोनों बड़े गठबंधन के आमने-सामने होने के साथ ही नई-नवेली पार्टी जनसुराज भी चुनाव को रोचक बना रही है. दोनों ही गठबंधन किसी न किसी समाज में प्रभाव रखने वाली छोटी पार्टियों को अपने खेमे में लाकर सामाजिक समीकरण साधने का प्रयास कर रही हैं. इन्हीं में एक हैं उपेंद्र कुशवाहा, जो रालोसपा के मुखिया हैं.
जातीय गणित बिठाने में छोटे दल अहम
NDA की बात करें तो उसमें दो बड़ी पार्टी बीजेपी और जेडीयू के अलावा चिराग पासवान की लोजपा (आर), जीतनराम मांझी की HAM और उपेन्द्र कुशवाहा की रालोसपा है. वहीं महागठबंधन में राजद, कांग्रेस, लेफ्ट के अलावा मुकेश सहनी की VIP और अन्य छोटी-छोटी पार्टियां हैं. किसी भी चुनाव में जातीय गणित बिठाने में छोटे दलों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि अक्सर ये जाति आधारित पार्टियां होती हैं और समाज में इनका ठीक-ठाक प्रभाव होता है.
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कुशवाहा समाज पर उपेंद्र की अच्छी पकड़
ऐसा ही एक पावर सेंटर हैं उपेन्द्र कुशवाहा, जो रालोसपा के मुखिया हैं और जिनकी कुशवाहा समाज में अच्छी पकड़ मानी जाती है. उपेन्द्र कुशवाहा को शुरुआती दौर में नीतीश कुमार के बहुत करीबी नेताओं में से एक माना जाता था. वह समता पार्टी के एक तरह से फाउंडर मेंबर भी रहे हैं. कई राजनैतिक पंडित तो एक समय में उन्हें नीतीश कुमार का उत्तराधिकारी तक मानते थे.
नीतीश के कहने पर नाम में जोड़ा 'कुशवाहा'
- उपेन्द्र कुशवाहा उर्फ उपेंद्र कुमार सिंह का जन्म वैशाली में मुनेश्वर सिंह और मुनेश्वरी देवी के मध्यमवर्गीय परिवार में 6 फरवरी 1960 को हुआ.
- उन्होंने पटना साइंस कॉलेज से स्नातक किया और फिर मुजफ्फरपुर के बीआर अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में एमए की डिग्री ली.
- नीतीश कुमार के सुझाव पर उन्होंने अपने नाम में 'कुशवाहा' जोड़ा. माना गया था कि जाति से जुड़े इस उपनाम से उनकी राजनीतिक स्थिति में सुधार होगा.
- कुशवाहा ने कर्पूरी ठाकुर और जय प्रकाश नारायण के साथ काम किया था. उनके पिता मुनेश्वर सिंह कर्पूरी ठाकुर से परिचित थे.
- 1990 के दशक के अन्य महत्वपूर्ण नेता जैसे नीतीश कुमार, लालू प्रसाद और रामविलास पासवान की तरह, कुशवाहा का समाजवादी झुकाव था.
- उपेन्द्र कुशवाहा विधायक से लेकर सांसद, विपक्ष के नेता, पार्टी अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं. इन दिनों प्रधानमंत्री मोदी के करीबी माने जाते हैं.
बिहार में उपेंद्र कुशवाहा की अहमियत
उपेंद्र कुशवाहा बिहार के सबसे महत्वपूर्ण ओबीसी यादव समाज के बाद आने वाले गैर यादव ओबीसी कुशवाहा समाज से आते हैं. इनकी आबादी राज्य की कुल आबादी की करीब 6 प्रतिशत है. उपेन्द्र कुशवाहा अपने समाज के एक मजबूत नेता माने जाते है, जिनकी पूरे बिहार में पकड़ है. पिछले कुछ वर्षों में उपेंद्र कुशवाहा की राजनीतिक पकड़ कमजोर हुई है, लेकिन इसके बावजूद बिहार विधानसभा चुनाव में उनकी भूमिका अहम बनी हुई है. उनकी लोकप्रियता मुख्य रूप से कुशवाहा, कोइरी समुदाय में मानी जाती है. बिहार चुनाव में दोनों गठबंधनों ने कुशवाहा जाति को रिझाने के लिए कई कदम उठाए हैं.
पिछले चुनाव में बीजेपी के वोटों में लगाई थी सेंध
बिहार की जाति आधारित राजनीति में चिराग पासवान, जीतन राम मांझी, मुकेश सहनी और उपेंद्र कुशवाहा जैसे नेता अहम भूमिका निभाते हैं. माना जा रहा है कि ये नेता 2-5 प्रतिशत वोट शेयर पर असर डाल सकते हैं, जो त्रिकोणीय या बहुकोणीय मुकाबलों में जीत-हार तय करने में अहम हो सकता है.
पिछले विधानसभा चुनाव में उपेन्द्र कुशवाहा अलग चुनाव लड़े थे. मगध से लेकर कई इलाकों में इनके अलग लड़ने का सीधा नुकसान एनडीए को हुआ था. करीब एक दर्जन से अधिक सीटों पर बीजेपी उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ा था क्योंकि कुशवाहा के उम्मीदवारों ने वोटों में ठीक-ठाक सेंध लगाई थी. इस बार उपेन्द्र कुशवाहा एनडीए के साथ हैं. इसका फायदा कहीं न कहीं जेडीयू-बीजेपी गठबंधन को मिल सकता है.
रालोमो ने सीट बंटवारे में साधा जातीय गणित
राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में अपने कोटे की छह सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं. एनडीए गठबंधन में शामिल रालोमो ने जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए टिकट बांटे हैं, जिसमें कुशवाहा समुदाय के साथ-साथ अन्य वर्गों के चेहरों को भी मौका दिया गया है. पार्टी ने अनुभवी और क्षेत्रीय प्रभाव रखने वाले नेताओं पर भरोसा जताया है.
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राज्य सभा सांसद उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी पत्नी स्नेहलता को सासाराम विधानसभा सीट से मैदान में उतारा है. स्नेहलता के लिए यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और भोजपुरी अभिनेता व सिंगर पवन सिंह प्रचार में उतरे. पत्नी स्नेहलता की जीत पक्की करने के लिए उपेंद्र कुशवाहा पूरी ताकत झोंक रहे हैं. रालोसपा सासाराम के अलावा पारू, दिनारा उजियारपुर, बाजपट्टी, मधुबनी और ओबरा सीटों पर मजबूती से चुनाव लड़ रही है.
कुशवाहा ने इस बार कम से कम 15 सीटों की मांग की थी, पर उनके खाते में सिर्फ 6 सीटें ही आईं. शुरुआती दौर में कुशवाहा नाराज थे, मगर बीजेपी की सेंट्रल लीडरशिप के दखल के बाद उनकी नाराजगी दूर हुई. 6 विधानसभा सीटों के अलावा एक राज्यसभा सीट और एक विधान परिषद की सीट का ऑफर उन्हें दिया गया है.
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