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बिहार चुनाव: सहायक नहीं निर्णायक होंगी महिलाएं! नीतीश के आगे क्‍यों सुस्‍त है राजद और कांग्रेस?

एनडीए की रणनीति स्पष्ट है- महिलाओं के लिए नई-नई योजनाओं का ऐलान कर उन्हें लगातार अपने पाले में रखना नीतीश कुमार ने महिला सशक्तीकरण को अपनी राजनीति की ढाल बना लिया है.

बिहार चुनाव: सहायक नहीं निर्णायक होंगी महिलाएं! नीतीश के आगे क्‍यों सुस्‍त है राजद और कांग्रेस?
  • बिहार चुनाव में महिला मतदाताओं की भूमिका निर्णायक साबित होती रही है और सीएम नीतीश बखूबी ये जानते हैं.
  • मुख्यमंत्री नीतीश कुमार महिलाओं के लिए योजनाएं और आरक्षण जैसी घोषणाएं कर महिला वोट बैंक को मजबूत कर रहे हैं.
  • वहीं, विपक्षी महागठबंधन की महिला केंद्रित कोई ठोस रणनीति या चुनावी वादा अभी तक सामने नहीं आया है.
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बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Vidhansabha Chunav) नजदीक आते ही सभी राजनीतिक दल अपनी-अपनी चुनावी रणनीतियों को धार दे रहे हैं लेकिन असली सवाल यह है कि इस बार भी निर्णायक भूमिका कौन निभाएगा? शायद इसका जवाब 'महिला मतदाता' हो सकती है. खास तौर पर नीतीश कुमार की जीत में महिला वोटर्स का बड़ा हाथ रहा है. पिछले तीन चुनावों में बार-बार यह साबित हो चुका है कि बिहार में अब सिर्फ जातीय समीकरण से सरकार नहीं बनती, बल्कि आधी आबादी की चुपचाप क्रांति भी सत्ता का रास्ता तय करती है. 

चुनाव में आधी आबादी की निर्णायक भूमिका को लेकर एनडीए खेमे में जो गंभीरता दिखती है, वो अब तक विपक्षी खेमे में नहीं दिखी है. जाहिर तौर पर एनडीए, सरकार में हैं, सो उसके पास करने के लिए काफी कुछ है. लेकिन विपक्षी खेमे में महिला केंद्रित कोई आश्‍वासन तक नहीं दिया गया है. पार्टियों का चुनावी मेनिफेस्‍टो आने में अभी देर है, लेकिन ऐसा दिख रहा कि नीतीश कुमार विपक्ष के पाले में कुछ छोड़ना भी नहीं चाह रहे हैं. हाल के दिनों में हुईं घोषणाओं पर आप नजर डाल सकते हैं. 

नीतीश की महिला कार्ड वाली राजनीति

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, महिला वोटर्स की शांत ताकत को खूब समझते हैं, यही वजह है कि वे हर चुनाव से पहले महिलाओं के लिए कोई न कोई नई योजना या घोषणा करते हैं. बिहार की राजनीति पर नजर रखने वाले वरिष्‍ठ पत्रकार रवींद्र नाथ तिवारी कहते हैं कि नीतीश की महिला केंद्रित घोषणाओं ने जातीय समीकरणों को कई बार कमजोर किया और महिलाओं को उनका साइलेंट वोट बैंक बना दिया. शराबबंदी, छात्राओं के लिए साइकिल योजना और पंचायत में 50% आरक्षण पहले ही महिलाओं के बीच उनकी लोकप्रियता का आधार बन चुकी हैं

  • इस बार उन्होंने सरकारी और संविदा नौकरियों में 35% आरक्षण देने का ऐलान कर दिया
  • हाल ही में उन्होंने आशाकर्मियों और आंगनबाड़ी सेविकाओं का मानदेय बढ़ाया
  • 'पिंक बस' जैसी योजनाएं सीधे महिलाओं की रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ी हैं

विपक्ष की रणनीति क्यों कमजोर?

विपक्षी महागठबंधन यानी राजद, कांग्रेस और वामपंथी दल अब तक इस मोर्चे पर ठोस पहल करते नहीं दिखे उनकी राजनीति अब भी जातीय गठजोड़ तक सिमटी है. महिलाओं की समस्याओं को लेकर न तो कोई बड़ा वादा सामने आया और न ही कोई विशेष घोषणा. यही वजह है कि 2010 से लेकर 2020 तक महिला मतदाताओं ने जिस पैमाने पर मतदान किया, उसका ज्‍यादातर लाभ एनडीए को मिलता रहा. उदाहरण के तौर पर देखें तो पूर्णिया के बायसी विधानसभा क्षेत्र में महिलाओं का मतदान पुरुषों से 22% ज्यादा रहा, वहीं कुशेश्वरस्थान में 21% का अंतर दर्ज किया गया और दोनों ही सीटें एनडीए के खाते में गईं. विपक्ष के पास फिलहाल कोई ऐसा बड़ा एजेंडा नहीं दिखता, जो आधी आबादी को एनडीए से खींचकर उनकी तरफ मोड़ सके. 

महिला वोटरों का ऐतिहासिक ट्रेंड

बिहार की चुनावी राजनीति में महिलाओं का मतदान पैटर्न पिछले 15 वर्षों में सबसे बड़ा बदलाव साबित हुआ है. इतिहास में झांक कर देखें तो 1962 के चुनाव में महिलाओं का मतदान सिर्फ 32% था, जबकि पुरुषों का 55%. ये लैंगिक अंतर कमोबेश 2000 तक कायम रहा लेकिन 2005 के बाद यह तेजी से घटा और 2010 से महिला वोटर्स बिहार की सबसे निर्णायक ताकत बन गईं. 

  •  2010: पहली बार महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों से अधिक रहा (महिला 54% बनाम पुरुष 51%)
  •  2015: यह अंतर और बढ़ा- महिलाओं ने 60% मतदान किया, जबकि पुरुषों ने सिर्फ 50%
  •  2020: महिलाओं ने 243 सीटों में से 167 पर पुरुषों से ज्यादा वोट डाले कुल महिला मतदान प्रतिशत 60% रहा, जबकि पुरुषों का 54%

एनडीए बनाम विपक्ष की रणनीति 

एनडीए की रणनीति स्पष्ट है- महिलाओं के लिए नई-नई योजनाओं का ऐलान कर उन्हें लगातार अपने पाले में रखना नीतीश कुमार ने महिला सशक्तीकरण को अपनी राजनीति की ढाल बना लिया है. यही वजह है कि उत्तर बिहार से लेकर सीमांचल और मगध तक महिलाओं का मतदान एनडीए के पक्ष में झुका हुआ दिखता है

वहीं विपक्ष की दिक्कत यह है कि उसके पास महिला वोटरों को आकर्षित करने के लिए न तो कोई ठोस कार्यक्रम है और न ही कोई भावनात्मक कार्ड राजद और कांग्रेस आज भी जातीय समीकरण और गठबंधन की राजनीति पर भरोसा कर रहे हैं यही वजह है कि उन्हें 'आधी आबादी' के समर्थन को लेकर अब भी संदेह बना हुआ है

महिला वोट: सहायक या निर्णायक  

बिहार में 2010 से लेकर अब तक हर चुनाव का परिणाम इस बात की गवाही देता है कि महिला वोटर्स अब सिर्फ 'सहायक' नहीं, बल्कि निर्णायक भूमिका में हैं. रवींद्र नाथ कहते हैं, 'नीतीश कुमार इसे लगातार भुनाते आ रहे हैं, जबकि विपक्ष अब भी सुस्त है अगर महागठबंधन महिला वोटरों की अनदेखी करता रहा, तो 2025 का चुनाव भी एनडीए के पक्ष में झुक सकता है.' 

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