- बिहार विधानसभा चुनाव में सीमांचल की 24 सीटों में से एनडीए ने 18 सीटों पर बढ़त हासिल की है
- सीमांचल को पारंपरिक रूप से महागठबंधन का गढ़ माना जाता रहा है लेकिन इस बार यहां उनका प्रदर्शन खराब रहता है
- जानकारों का कहना है कि मुस्लिमों ने नीतीश को मजबूत रखने की सोच से एनडीए खासकर जेडीयू के पक्ष में वोट दिया है
बिहार विधानसभा चुनाव में सीमांचल की सीटों पर इस बार भारी उलटफेर देखने को मिल रहा है. जहां पिछले चुनाव में मुकाबला बराबरी का था, वहीं इस बार एनडीए ने सीमांचल की 24 सीटों में से 18 सीटों पर बढ़त बना ली है. यह नतीजे राजनीतिक विश्लेषकों को भी चौंका रहे हैं क्योंकि सीमांचल को पारंपरिक रूप से महागठबंधन का गढ़ माना जाता रहा है.
महागठबंधन ने इस बार सीमांचल में कांग्रेस को 12 सीटें, राजद को 9 सीटें, वीआईपी को 2 सीटें और भाकपा माले को एक सीट दी थी. लेकिन शुरुआती रुझानों में इन दलों का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा है. सवाल उठ रहा है कि आखिर एनडीए ने सीमांचल में कैसे क्लीन स्वीप किया और मुस्लिम वोटरों का रुख क्यों बदला?
एक्सपर्ट ने क्या बताया?
राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी का कहना है कि मुस्लिम समाज में इस बार एक राय थी कि नीतीश कुमार को मजबूत रखना है. उनका तर्क है कि अगर नीतीश कमजोर पड़ते हैं तो बिहार में उत्तर प्रदेश जैसी स्थिति पैदा हो सकती है, जहां बुलडोजर राज की चर्चा होती है. इसी डर ने मुस्लिम वोटरों को एनडीए, खासकर जेडीयू के पक्ष में खड़ा कर दिया. तिवारी कहते हैं, “एनडीए को मुस्लिम समाज का भी वोट पड़ा है और जेडीयू को इसका सीधा फायदा मिला है.”

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक अजित झा ने इस मुद्दे पर एनडीटीवी के साथ बात करते हुए कहा कि जदयू को सीमांचल में पसमांदा मुसलमानों का वोट पहले भी मिला है. साथ ही उन्होंने कहा कि कमजोर वर्ग के मुसलमानों के लिए नीतीश कुमार ने बहुत अधिक काम किया है.
पसमांदा मुसलमानों का समर्थन
नीतीश कुमार को पहले भी पसमांदा समाज का वोट मिलता रहा है. यह समाज बिहार के मुस्लिमों में बड़ी संख्या में मौजूद है. जेडीयू ने हमेशा इस वर्ग को साधने की कोशिश की है. पहले भी पार्टी ने पसमांदा नेता अली अनवर को राज्यसभा भेजती रही थी.

नीतीश का सुशासन वाला छवि
नीतीश कुमार की सुशासन की छवि सीमांचल में भी असर डालती रही है. विकास, कानून-व्यवस्था और स्थिरता के मुद्दे पर जेडीयू ने अपनी पकड़ बनाए रखी है. कई मुस्लिम वोटरों को लगा कि महागठबंधन की सरकार अस्थिर हो सकती है, जबकि नीतीश के नेतृत्व में एनडीए स्थिरता की गारंटी देता है. यही धारणा एनडीए के पक्ष में वोटों का झुकाव बढ़ाने में अहम रही.
महागठबंधन की रणनीति पर उठ रहे हैं सवाल
महागठबंधन की सीटों का बंटवारा भी सवालों के घेरे में है. कांग्रेस को 12 सीटें देने का फैसला गलत साबित हुआ क्योंकि पार्टी का संगठन सीमांचल में कमजोर प्रदर्शन सामने आया है. राजद को 9 सीटें मिलीं, लेकिन वह भी अपेक्षित प्रदर्शन नहीं कर पाई. वीआईपी और भाकपा माले की उपस्थिति नगण्य रही. इससे साफ है कि महागठबंधन की रणनीति सीमांचल में कारगर नहीं रही.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं