
- सुल्तानगंज भागलपुर जिले में गंगा किनारे स्थित धार्मिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्र है
- बिहार का यह क्षेत्र अजगैबीनाथ मंदिर और श्रावण मास की कांवड़ यात्रा के कारण विशेष धार्मिक महत्व रखता है
- सुल्तानगंज विधानसभा सीट पर पिछले दो दशकों से जदयू का राजनीतिक दबदबा रहा है, खासकर नीतीश कुमार के नेतृत्व में
भागलपुर जिले में स्थित सुल्तानगंज सिर्फ एक जगह नहीं, बल्कि एक ऐसा क्षेत्र है जहां धार्मिक आस्था, ऐतिहासिक विरासत और राजनीतिक प्रभाव देखने को मिलता है. गंगा के किनारे बसा यह इलाका अजगैबीनाथ मंदिर के कारण विशेष स्थान रखता है. हर साल श्रावण मास में यहां से देवघर तक की कांवड़ यात्रा लाखों लोगों को जोड़ती है, जिससे न सिर्फ धार्मिक ऊर्जा का संचार होता है, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी गति मिलती है.
सुल्तानगंज में कब किसने हासिल की जीत
राजनीतिक इतिहास में यह सीट कभी कांग्रेस का गढ़ रही, जिसने यहां से 7 बार जीत दर्ज की. लेकिन साल 2000 से यह क्षेत्र लगातार जदयू के कब्जे में रहा है. चाहे पार्टी का नाम समता पार्टी रहा हो या जनता दल (यूनाइटेड), नीतीश कुमार की पकड़ यहां मजबूत रही है. अब तक 6 बार जदयू ने यहां जीत दर्ज की है. जनता दल, जनता पार्टी और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने भी यहां से प्रतिनिधित्व किया है.
बीजेपी और राजद जैसी बड़ी पार्टियां अब तक इस सीट पर जीत का स्वाद नहीं चख पाई हैं. 2020 के विधानसभा चुनाव में जदयू के ललित नारायण मंडल ने कांग्रेस के ललन कुमार को 11,265 वोटों से हराया था, जबकि एलजेपी को सिर्फ 10,222 वोट मिले. 2024 के लोकसभा चुनावों में भी जदयू ने इस क्षेत्र में 26,749 वोटों की बढ़त हासिल की, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि सुल्तानगंज अभी भी नीतीश कुमार के राजनीतिक प्रभाव में है.
इस सीट का जातीय समीकरण
इतिहास की बात करें तो सुल्तानगंज का संबंध महाभारत काल के अंग देश और कर्ण जैसे योद्धाओं से जुड़ा है. यहां से मिली गुप्तकालीन कांस्य बुद्ध प्रतिमा, जो अब ब्रिटेन के संग्रहालय में है, इस क्षेत्र की सांस्कृतिक गहराई को दर्शाती है. सुल्तानगंज विधानसभा क्षेत्र की स्थापना 1951 में हुई थी और यह बांका लोकसभा सीट के अंतर्गत आता है. सुल्तानगंज और शाहकुंड दो प्रमुख विकास खंड शामिल हैं. यह क्षेत्र मुख्यतः ग्रामीण मतदाताओं वाला है, जहां 2020 में 3.28 लाख और 2024 में 3.39 लाख से अधिक मतदाता पंजीकृत थे. इनमें अनुसूचित जाति (12.97%), मुस्लिम (11.7%) और शहरी मतदाता (12.13%) शामिल हैं.
अगर 2025 का चुनाव नीतीश कुमार का अंतिम चुनाव साबित होता है, तो यहां उनके प्रति भावनात्मक जुड़ाव विपक्ष के लिए चुनौती बन सकता है.
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