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                                        कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर मोक्ष की भूमि कौनहारा में लाखों श्रद्धालुओं ने डुबकी लगाई. ऐसी धार्मिक मान्यता रही है कि हाजीपुर के कौनहारा घाट पर स्वयं भगवान विष्णु आए थे. हर साल इस मौके पर दूर दराज से आए लोग एक दिन पहले से ही नदी के घाट पर जुटने लगते हैं. पटना सहित बिहार के विभिन्न घाटों पर भी लोगों ने स्नान किया. कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर गंगा और गंडक के संगम स्थल हजीपुर के कौनहारा घाट और सोनपुर के काली घाट पर 5 लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने डुबकी लगाई. श्रद्धालुओं की संख्या को देखते हुए प्रशासन ने कौनहारा घाट पर बैरिकेडिंग की व्यवस्था तो की ही थी, साथ ही एसडीआरएफ की नाव से प्रशासन के लोग खुद मॉनिटरिंग भी कर रहे थे. कार्तिक पूर्णिमा से ही शुरू होता है विश्व प्रसिद्ध हरिहर क्षेत्र का सोनपुर मेला. यहां स्नान करने के बाद लोग सोनपुर जाते हैं.
क्या हैं मान्यताएं
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार 'आ' और 'हा' नामक गज और ग्राह रूपी श्रापित गंधर्वों को मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु यहां प्रकट हुए थे. गज (हाथी) और ग्राह (घड़ियाल) के युद्ध में जब हाथी गंगा के समीप पहुंचते ही डूबने लगा तब उसने भगवान को पुकारा और तब भगवान विष्णु यहां स्वयं प्रकट हुए थे और ग्राह को मारकर गज को जीवनदान दिया था. तब वहां मौजूद ऋषि मुनियों ने भगवान से पूछा था कि इन दोनों में कौन हारा. चूंकि यहां स्वयं भगवान विष्णु के चक्र के द्वारा घड़ियाल की मृत्यु हुई थी और हाथी को बचाया गया था, तब मोक्ष प्राप्त करने के बाद दोनों गंधर्व ने किसी के हार जीत की नहीं, श्राप मुक्ति की बात बताई. तब से हाजीपुर में गंगा और गंडक नदी के इस संगम स्थल का नाम कौनहारा घाट पड़ा. इसदिन यहां देश विदेश के पर्यटक स्नान करने और हरिहरनाथ मंदिर सोनपुर में जलाभिषेक करने पहुंचते हैं. यह परंपरा हजारों साल से चली आ रही है.
                                                                        
                                    
                                क्या हैं मान्यताएं
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार 'आ' और 'हा' नामक गज और ग्राह रूपी श्रापित गंधर्वों को मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु यहां प्रकट हुए थे. गज (हाथी) और ग्राह (घड़ियाल) के युद्ध में जब हाथी गंगा के समीप पहुंचते ही डूबने लगा तब उसने भगवान को पुकारा और तब भगवान विष्णु यहां स्वयं प्रकट हुए थे और ग्राह को मारकर गज को जीवनदान दिया था. तब वहां मौजूद ऋषि मुनियों ने भगवान से पूछा था कि इन दोनों में कौन हारा. चूंकि यहां स्वयं भगवान विष्णु के चक्र के द्वारा घड़ियाल की मृत्यु हुई थी और हाथी को बचाया गया था, तब मोक्ष प्राप्त करने के बाद दोनों गंधर्व ने किसी के हार जीत की नहीं, श्राप मुक्ति की बात बताई. तब से हाजीपुर में गंगा और गंडक नदी के इस संगम स्थल का नाम कौनहारा घाट पड़ा. इसदिन यहां देश विदेश के पर्यटक स्नान करने और हरिहरनाथ मंदिर सोनपुर में जलाभिषेक करने पहुंचते हैं. यह परंपरा हजारों साल से चली आ रही है.
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