रक्सौल में भारत-नेपाल सीमा
नई दिल्ली:
रक्सौल में भारत-नेपाल सीमा पर मधेशी आंदोलनकारियों की नाकेबंदी की वजह से पूरे शहर में व्यापार ठप हो गया है। पिछले दो महीने से ज्यादा समय से व्यापारियों के इस शहर में व्यापार पूरी तरह से रूका पड़ा है। यहां के स्थानीय निवासी रोजगार के लिए बीरगंज के बाजार पर निर्भर रहते हैं लेकिन वहां बंद की वजह से उनका रोजगार छिन गया है। इस बार बिहार चुनाव में यह एक अहम चुनावी मुद्दा बनता दिख रहा है।
अब मुद्दा नेपाल पर निर्भरता खत्म करने का
रक्सौल के कपड़ा व्यापारी दिनेश धनोटिया आजकल बेहद तनाव में हैं। एनडीटीवी की टीम जब उनकी दुकान पर पहुंची तो उन्होंने बताया कि उनकी दुकान से सिर्फ सौ मीटर की दूरी पर मधेशी आंदोलनकारियों की नाकेबंदी कई हफ्तों से जारी है और इससे कारोबार पूरी तरह से ठप हो है। उन्हें अब इस बात का अहसास हो चुका है कि नेपाल के बाजार पर आर्थिक निर्भरता का विकल्प उन्हें तलाशना होगा। वे कहते हैं, 'यह इस बार हमारे लिए एक अहम चुनावी मुद्दा है। अब यह हमारी प्राथमिकता है कि हम नेपाल पर निर्भर न रहें। नेपाल पर निर्भरता कम करना ही यहां चुनावी मुद्दा है।' उनके सहयोगी कपड़ा व्यापारी सुधीर कुमार कहते हैं, 'यहां के नेताओं को हमारी मुश्किलों की कोई फिक्र नहीं है। रक्सौल में व्यापारी वर्ग अपने भरोसे ही जी और मर रहे हैं।'
धंधे हो रहे चौपट, बेरोजगारी भारी
यही आवाज भारत के नेपाल से सटे अन्य गांवों में भी सुनाई देती है। पन्टोका गांव के लोग परेशान हैं। दो महीने से अधिक समय से न रोज़गार के लिए नेपाल के सीमावर्ती शहर बीरगंज जा पाए हैं न ही गांव वाले व्यापार कर पा रहे हैं। अवध किशोर सिंह बीरगंज में फोटो स्टूडियो चलाते हैं। वह कहते हैं 'मधेशी आंदोलन लंबा खिंचा तो गांव छोड़ना पड़ जाएगा। वे मानते हैं कि नेपाल में जारी राजनीतिक संकट की वजह से यहां के लोगों की आर्थिक बदहाली इस बार महत्वपूर्ण चुनावी मुद्दा है। यहां सभी प्रभावित हैं...बड़े भी और छोटे भी।' उनके साथी व्यापारी सुनील साह कहते हैं, 'हमारे इलाके में किसी ने विकास नहीं किया। 2010 के विधानसभा चुनावों में भी आश्वासन दिया और 2015 में भी आश्वासन वही दे रहे हैं।'
नेपाल से सटे इस पूरे इलाक़े में अचानक एक तरह की बेरोजगारी दिखने लगी है। चुनावों से ऐन पहले उठे इस संकट पर नेताओं की नजर नहीं है। यह बात यहां के लोगों को नागवार गुजर रही है।
अब मुद्दा नेपाल पर निर्भरता खत्म करने का
रक्सौल के कपड़ा व्यापारी दिनेश धनोटिया आजकल बेहद तनाव में हैं। एनडीटीवी की टीम जब उनकी दुकान पर पहुंची तो उन्होंने बताया कि उनकी दुकान से सिर्फ सौ मीटर की दूरी पर मधेशी आंदोलनकारियों की नाकेबंदी कई हफ्तों से जारी है और इससे कारोबार पूरी तरह से ठप हो है। उन्हें अब इस बात का अहसास हो चुका है कि नेपाल के बाजार पर आर्थिक निर्भरता का विकल्प उन्हें तलाशना होगा। वे कहते हैं, 'यह इस बार हमारे लिए एक अहम चुनावी मुद्दा है। अब यह हमारी प्राथमिकता है कि हम नेपाल पर निर्भर न रहें। नेपाल पर निर्भरता कम करना ही यहां चुनावी मुद्दा है।' उनके सहयोगी कपड़ा व्यापारी सुधीर कुमार कहते हैं, 'यहां के नेताओं को हमारी मुश्किलों की कोई फिक्र नहीं है। रक्सौल में व्यापारी वर्ग अपने भरोसे ही जी और मर रहे हैं।'
धंधे हो रहे चौपट, बेरोजगारी भारी
यही आवाज भारत के नेपाल से सटे अन्य गांवों में भी सुनाई देती है। पन्टोका गांव के लोग परेशान हैं। दो महीने से अधिक समय से न रोज़गार के लिए नेपाल के सीमावर्ती शहर बीरगंज जा पाए हैं न ही गांव वाले व्यापार कर पा रहे हैं। अवध किशोर सिंह बीरगंज में फोटो स्टूडियो चलाते हैं। वह कहते हैं 'मधेशी आंदोलन लंबा खिंचा तो गांव छोड़ना पड़ जाएगा। वे मानते हैं कि नेपाल में जारी राजनीतिक संकट की वजह से यहां के लोगों की आर्थिक बदहाली इस बार महत्वपूर्ण चुनावी मुद्दा है। यहां सभी प्रभावित हैं...बड़े भी और छोटे भी।' उनके साथी व्यापारी सुनील साह कहते हैं, 'हमारे इलाके में किसी ने विकास नहीं किया। 2010 के विधानसभा चुनावों में भी आश्वासन दिया और 2015 में भी आश्वासन वही दे रहे हैं।'
नेपाल से सटे इस पूरे इलाक़े में अचानक एक तरह की बेरोजगारी दिखने लगी है। चुनावों से ऐन पहले उठे इस संकट पर नेताओं की नजर नहीं है। यह बात यहां के लोगों को नागवार गुजर रही है।
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