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सचिन जैन

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    28 अप्रैल को भारत गौरव टूरिस्ट ट्रेन की होगी शुरुआत, 9 रात और 10 दिनों में इन तीर्थ स्थलों से होकर गुजरेगी

    इंडियन रेलवे 28 अप्रैल, 2023 को पुणे से पुरी-गंगासागर दिव्य काशी यात्रा का शुभारंभ करने की तैयारी में है, जो सनातन धर्म के तीर्थयात्रियों हेतु पूर्ण रूप से बुक है.

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    एक वेश्‍या का ख़त: समाज मुझे सम्‍मान नहीं देता लेकिन इसे आपको अपने लिए पढ़ना चाहिए...

    मैंने इतने सालों में एक ही बात समझी है कि जो वंचित और उपेक्षित होता है, वही प्रताड़ित और शोषित होता है. क्या हम इसे खत्‍म नहीं कर सकते? यदि वंचित होना खत्म होगा, तो प्रताड़ना और शोषण अपने आप खत्‍म होगा. मैं चाहती हूं कि हमारी बस्ती में लड़कियों को सम्मानजनक रोज़गार मिलना चाहिए ताकि उन्हें वेश्यावृत्ति न करना पड़े.

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    मातृत्व लाभ बनाम मातृत्व हक–एक बेहद अधूरी शुरुआत

    31 दिसंबर 2016 को प्रधानमंत्री का राष्‍ट्र के नाम संबोधन हुआ. इसमें कहा गया कि ''गर्भवती महिलाओं के लिए भी एक देशव्यापी योजना शुरू की जा रही है.

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    बजट 2017-18 में कर, रोजगार और कृषि के बीच संबंध

    बुनियादी सिद्धांत यह है कि बजट में बड़ा हिस्सा राजनीतिक प्राथमिकताओं का होता है और छोटा हिस्सा आर्थिक प्राथमिकताओं का. इससे हमारी सरकार के दृष्टिकोण और नजरिए का पता चलता है. वास्तव में बजट को विशषज्ञों का विषय मान लिया गया है, जबकि यह सबसे आम और भाषाई रूप से निरक्षर व्यक्ति को समझ में आने वाला विषय बनाया जाना चाहिए. खैर; वर्ष 2017-18 के बजट में यह दावा किया गया है कि यह बजट गांव, गरीबों, युवाओं और नई तकनीक को समर्पित बजट है. वास्तव में यह बजट बाजार में गांव और संसाधनों को घोल देने की कोशिश वाला बजट है.

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    भारत में स्कूली शिक्षा और लोक व्यय की पड़ताल

    हम समाज को शिक्षित नहीं बना पा रहे हैं. स्कूलों की स्थिति बहुत खराब है. आखिर यह स्थिति खराब क्यों है? क्या शिक्षक नहीं चाहते हैं कि बच्चे शिक्षित इंसान न बनें?

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    भारत मानसिक रोगियों और विकारों का गढ़

    दुखद बात है कि आध्यात्म में विश्वास रखने वाला समाज अवसाद, व्यवहार में हिंसा, तनाव, स्मरण शक्ति का ह्रास, व्यक्तित्व में चरम बदलाव, नशे की बढ़ती प्रवृत्ति के संकट को पहचान ही नहीं पा रहा है. हम तनाव और अवसाद या व्यवहार में बड़े बदलावों को जीवन का सामान्य अंग क्यों मान लेते हैं; जबकि ये खतरे के बड़े चिन्ह हैं.

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    गिद्धों का अस्तित्व संकट में होना यानी...

    अपन सब बाघों के अस्तित्व के लिए बहुत चिंतित हैं. बहुत से बाघ मर रहे हैं और सरकार भी प्रदर्शन कर रही है कि वह भी बहुत प्रयास कर रही है बाघों को बचाने के लिए. ऐसे में हम एक बहुत गंभीर बात भूल रहे हैं कि अपने गिद्ध भी लगभग खात्मे की कगार पर हैं.

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    किसकी पूंजी; कहां गई, किसने डुबोई और चुका कौन रहा है?

    जरा यह भी तो पता कीजिए कि भारत के नेताओं के निवेश कहां-कहां हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि सरकार में बैठे कुछ नीति निर्माताओं के हित इसी में हों कि निवेश में कोई पारदर्शिता न हो, 6 लाख करोड़ के अनर्जक ऋण और 6 लाख करोड़ रुपये की राजस्व छूट की नीति न बदलने पाए. जीवन में वक्त मिले तो सोचिएगा!

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    भोपाल गैस त्रासदी : हज़ारों कत्‍ल, कोई गुनहगार नहीं, आरोपी वही, जो ज़िंदा रहे...

    हमारा संविधान कहता है कि हर व्यक्ति को शोषण से मुक्त होने का मौलिक अधिकार है. हर व्यक्ति को न्याय पाने का भी मौलिक अधिकार है; लेकिन यह संभव कैसे होगा...? स्वतंत्र भारत का तंत्र तीन स्तंभों पर खड़ा होता है – विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका; भोपाल गैस त्रासदी इन तीनों स्तंभों के कमज़ोर होने का साक्षात प्रमाण है.

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    देश की अर्थव्यवस्था और मेरी जिंदगी पर एक पत्र

    हो सकता है कि इस पत्र को राष्ट्र विरोधी या किसी की अवमानना का आधार साबित करने की कोशिश की जाए; पर मुझे लगता है कि अपने अहसासों और तर्कों को सामने लाना जरूरी है. हमें खुद पर अहंकार और अंध विश्वास नहीं होना चाहिए और सरकार पर भी; जिम्मेदार लोकतंत्र के लिए नागरिकों का खुद सोचना – समझना और कहना जरूरी है.

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    #युद्धकेविरुद्ध : रोकने से ही युद्ध रुकेगा!

    बात पाकिस्तान की हो, या भारत की, इस टकराव से जूझते हुए दो पीढ़ियां गुजर गईं. जिन्होंने 1947 के मंजर देखे थे, ज्यादातर तो अब रहे ही नहीं, फिर ऐसा क्या हो रहा है कि उनमें ज्यादा हिंसा और प्रतिशोध है, जिन्होंने उस मंजर को देखा ही नहीं था. यह मानस तैयार कौन कर रहा है कि बिना अवकाश एक बड़ा तबका युद्ध के उद्घोष के साथ की दिन की शुरुआत करता है. क्या उन्हें अंदाजा है कि मानव इतिहास में किसी भी युद्ध ने इंसानियत का झंडा नहीं लहराया है?

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    क्या आर्थिक विकास के लिए अशांति जरूरी है?

    इंस्‍टीट्यूट ऑफ इकोनोमिक्स एंड पीस की रिपोर्ट वैश्विक शांति सूचकांक (ग्लोबल पीस इंडेक्स, 2015) बताती है कि विश्व में लगातार अशांति बढ़ रही है. क्या हमने कभी यह सोचा है कि दुनिया की 720 करोड़ लोगों की आबादी में से दुनिया के 20 शांत देशों में कुल 50 करोड़ लोग रहते हैं, जबकि 230 करोड़ लोग दुनिया के 20 सबसे अशांत देशों में रह रहे हैं.

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    दरअसल, क्या होता है अमीर लोगों की दुनिया का मतलब...

    हमें यह मानना ही होगा कि संपन्न लोगों की संपत्ति कई कारणों (ज्यादा अवसर, संपत्ति का ज्यादा मूल्य, संसाधनों पर हर तरह का नियंत्रण, राजनीति और नीतियों को प्रभावित करने की ताकत आदि) से बढ़ती जाती है. इसके उलट गरीब तबकों की संपत्ति बहुत कम गति से बढ़ती है, क्योंकि उन्हें अपने संसाधनों का उपयोग अपने जीवन को सुरक्षित करने के लिए ही करते रहना पड़ता है.

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    महिलाओं के विरुद्ध अपराध... जारी है कहानी...

    लंबित 10.80 लाख मामलों में महिलाओं को न्याय कब तक मिलेगा? और क्या समाज अपनी कोई ऐसी न्याय व्यवस्था बनाएगा, जिसमें महिलाएं सुरक्षित और सम्मानित हों? महिलाओं की अस्मिता के मुद्दे पर अब राजनीतिक व्यवस्था सक्रिय है, किन्तु फिर भी चरित्र में बदलाव का नहीं आना चिंता का विषय है.

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    भारत में गैर-बराबरी खत्म करना कभी नहीं होता विकास का आशय

    बहरहाल बात भारत की है, तो भारत का संविधान कहता है कि "राज्य, विशिष्टतया, आय की असमानताओं को कम करने का प्रयास करेगा और न केवल व्यक्तियों के बीच, बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले और विभिन्न व्यवसायों में लगे हुए लोगों के समूहों के बीच भी प्रतिष्ठा, सुविधाओं और अवसरों की असमानता समाप्त करेगा..."