राजस्थान के बाड़मेर में अकाल के हालात बन गए हैं.
बाड़मेर (राजस्थान):
राजस्थान के जोधपुर संभाग के हजारों गांवों में लगातार दूसरे साल अकाल दस्तक दे रहा है. इस अकाल के चलते अन्न, चारे और पानी की कमी से इंसान और जानवर दोनों बेहाल हैं. NDTV ने बाड़मेर में हालात का जायजा लिया.
जोधपुर से महज चालीस किमी दूर कोनारी गांव में गोपा राम चौधरी जैसे किसानों के घर अकाल की छाया पड़ने लगी है. खेत सूखकर रेगिस्तान हो चुका है और अन्न के नाम पर तीन क्विंटल बाजरा घर के अंदर रखा है. अकाल के हालात में जमीन के नीचे का पानी खारा हो गया है.
कोनारी, उदयसर, हरियाणा जैसे दर्जनों गांवों की महिलाएं मनरेगा में काम कर रही हैं और पुरुष गांव छोड़कर गुजरात चले गए हैं. कोनारी के सरपंच पोकाराम चौधरी ने बताया कि हमारे ग्राम पंचायत की गिरदावरी हो चुकी है. पटवारी ने अकालग्रस्त घोषित करने की रिपोर्ट दी है.
जोधपुर से आगे हमने बाड़मेर के सेतराऊं गांव का रुख किया. यह भील आदिवासियों का गांव है. यहां के निवासी डोरेलाल के घर अन्न के नाम पर हमें ठंडा पड़ा चूल्हा दिखा. डोरेलाल पत्थर मजदूर हैं. जब वे कमाकर लाएंगे तब पत्नी और बच्चों को खाना नसीब होगा. उन्होंने कहा कि फसल है नहीं.. बारिश है नहीं, खेत है नहीं.. बस जैसे तैसे गुजारा चलाना पड़ता है. क्या करें.
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इसी गांव के किशन मेघवाल और जैता राम ने हमें अपने खेत दिखाए. उनके 14 बीघे खेत में महज तीस क्विंटल बाजरा हुआ. बारिश न होने से ग्वार की फसल रेत की तरह उड़ गई. किशन मेघवाल ने बताया कि खेत की जुताई करके ग्वार बोया था. बारिश हुई नहीं, कुछ फसल ही नहीं निकली. सब सूख गई. किसान को बस फसल की जगह खर्चा मिला.
अकाल से इंसान ही नहीं जानवर भी बूंद-बूंद पानी को तरस रहे हैं. यह इंसान और पशु दोनों के लिए मुश्किल भरे हालात हैं. जिस इंसान ने सदियों से पशुओं की मदद से हर मुश्किल दौर काटा हो उसी इंसान ने अकाल में पशुओं को बेसहारा छोड़ दिया है. अब इंसान और पशु दोनों पानी खोज रहे हैं. तीन किमी का लंबा सफर तय करके इंसान और पशु दोनों एक जगह से पानी ले रहे हैं. अब बाड़मेर के इस अकाल के चलते आठ लाख गाय बैलों से लेकर जंगली ऊंटों तक की जिंदगी खतरे में है.
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एक किसान ने कहा कि हजारों मवेशी मरते हैं, बिना पानी के. गाय मर रही हैं. क्या करें फसल हुई नहीं, बारिश हुई तो जिएंगे वरना मेहनत मजूरी करेंगे.
सरकारी अधिकारी चुनाव करवा रहे हैं और नेता चुनाव लड़ रहे हैं. इंसान और जानवर दोनों पानी की बूंद-बूंद को तरस रहे हैं लेकिन इस अकाल में दो पेड़ इंसानों की मदद कर रहे हैं. ये पेड़ हैं खेजड़ी और केर. सांगरी के पेड़ों की डालों को महिलाएं काटती हैं. इसके पत्तों को झाड़कर पशुओं को खिलाया जाता है. केर के पेड़ों को इंसान सब्जी के तौर पर इस्तेमाल करते हैं. इसीलिए इन दोनों पेड़ों की पूजा होती है.
VIDEO : लगातार दूसरे साल अकाल की दस्तक
राजस्थान में पिछले साल 13 जिलों के 4000 गांवों को अकालग्रस्त घोषित किया गया था. इस बार फिर औसत से कम बारिश होने के कारण अकाल पड़ा है. लेकिन सरकार की तैयारी चुनाव जीतने के लिए ज्यादा और इंसान और मवेशियों की जिंदगी बचाने के लिए कम दिख रही है.
जोधपुर से महज चालीस किमी दूर कोनारी गांव में गोपा राम चौधरी जैसे किसानों के घर अकाल की छाया पड़ने लगी है. खेत सूखकर रेगिस्तान हो चुका है और अन्न के नाम पर तीन क्विंटल बाजरा घर के अंदर रखा है. अकाल के हालात में जमीन के नीचे का पानी खारा हो गया है.
कोनारी, उदयसर, हरियाणा जैसे दर्जनों गांवों की महिलाएं मनरेगा में काम कर रही हैं और पुरुष गांव छोड़कर गुजरात चले गए हैं. कोनारी के सरपंच पोकाराम चौधरी ने बताया कि हमारे ग्राम पंचायत की गिरदावरी हो चुकी है. पटवारी ने अकालग्रस्त घोषित करने की रिपोर्ट दी है.
जोधपुर से आगे हमने बाड़मेर के सेतराऊं गांव का रुख किया. यह भील आदिवासियों का गांव है. यहां के निवासी डोरेलाल के घर अन्न के नाम पर हमें ठंडा पड़ा चूल्हा दिखा. डोरेलाल पत्थर मजदूर हैं. जब वे कमाकर लाएंगे तब पत्नी और बच्चों को खाना नसीब होगा. उन्होंने कहा कि फसल है नहीं.. बारिश है नहीं, खेत है नहीं.. बस जैसे तैसे गुजारा चलाना पड़ता है. क्या करें.
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इसी गांव के किशन मेघवाल और जैता राम ने हमें अपने खेत दिखाए. उनके 14 बीघे खेत में महज तीस क्विंटल बाजरा हुआ. बारिश न होने से ग्वार की फसल रेत की तरह उड़ गई. किशन मेघवाल ने बताया कि खेत की जुताई करके ग्वार बोया था. बारिश हुई नहीं, कुछ फसल ही नहीं निकली. सब सूख गई. किसान को बस फसल की जगह खर्चा मिला.
अकाल से इंसान ही नहीं जानवर भी बूंद-बूंद पानी को तरस रहे हैं. यह इंसान और पशु दोनों के लिए मुश्किल भरे हालात हैं. जिस इंसान ने सदियों से पशुओं की मदद से हर मुश्किल दौर काटा हो उसी इंसान ने अकाल में पशुओं को बेसहारा छोड़ दिया है. अब इंसान और पशु दोनों पानी खोज रहे हैं. तीन किमी का लंबा सफर तय करके इंसान और पशु दोनों एक जगह से पानी ले रहे हैं. अब बाड़मेर के इस अकाल के चलते आठ लाख गाय बैलों से लेकर जंगली ऊंटों तक की जिंदगी खतरे में है.
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एक किसान ने कहा कि हजारों मवेशी मरते हैं, बिना पानी के. गाय मर रही हैं. क्या करें फसल हुई नहीं, बारिश हुई तो जिएंगे वरना मेहनत मजूरी करेंगे.
सरकारी अधिकारी चुनाव करवा रहे हैं और नेता चुनाव लड़ रहे हैं. इंसान और जानवर दोनों पानी की बूंद-बूंद को तरस रहे हैं लेकिन इस अकाल में दो पेड़ इंसानों की मदद कर रहे हैं. ये पेड़ हैं खेजड़ी और केर. सांगरी के पेड़ों की डालों को महिलाएं काटती हैं. इसके पत्तों को झाड़कर पशुओं को खिलाया जाता है. केर के पेड़ों को इंसान सब्जी के तौर पर इस्तेमाल करते हैं. इसीलिए इन दोनों पेड़ों की पूजा होती है.
VIDEO : लगातार दूसरे साल अकाल की दस्तक
राजस्थान में पिछले साल 13 जिलों के 4000 गांवों को अकालग्रस्त घोषित किया गया था. इस बार फिर औसत से कम बारिश होने के कारण अकाल पड़ा है. लेकिन सरकार की तैयारी चुनाव जीतने के लिए ज्यादा और इंसान और मवेशियों की जिंदगी बचाने के लिए कम दिख रही है.
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