मध्यप्रदेश के मनावर विधानसभा क्षेत्र में चुनाव जीते कांग्रेस प्रत्याशी हीरालाल अलावा.
नई दिल्ली:
हीरालाल अलावा का नाम बहुत कम लोग जानते होंगे लेकिन इस युवा नेता ने इस बार मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी के पूर्व कैबिनेट मिनिस्टर को भारी मतों से हराया है. मनावर विधानसभा सीट पर पिछले 15 सालों से बीजेपी का कब्ज़ा था. यहां हीरालाल ने पूर्व कैबिनेट मंत्री रंजना बघेला को करीब 42000 वोट से हराया है. जय आदिवासी युवा संगठन से जुड़े हीरालाल ने चुनाव से पहले कांग्रेस और बीजेपी दोनों की नींद उड़ा दी थी.
हीरालाल ने “अबकी बार आदिवासी सरकार” का नारा भी शुरू कर दिया था. हीरालाल की लोकप्रियता को देखते हुए अंतिम क्षणों में कांग्रेस ने उनको टिकट दिया. जहां कांग्रेस के स्थानीय नेता हीरालाल के खिलाफ थे वहीं राहुल गांधी ने उनके टिकट पर मोहर लगाई. हीरालाल का जन्म आदिवासी परिवार में हुआ. उन्होंने AIIMS में डॉक्टरी की पढ़ाई की. हीरालाल ने 2012 से 2015 तक सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर के रूप AIIMS में काम किया. 2015 से 2016 तक असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में भी AIIMS में नौकरी की.
अलावा ने दिसंबर 2016 में नौकरी छोड़कर अपने इलाके में काम करना शुरू कर दिया. पिछले कई सालों से हीरालाल आदिवासियों के हकों के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं. हीरालाल ने पांच साल पहले 'जय आदिवासी युवा शक्ति' नामक संगठन बनाया. उसके बाद उन्होंने मध्यप्रदेश में छात्र संघ चुनाव में अपने उम्मीदवारों को खड़ा किया और उनके समर्थन से 162 छात्र नेताओं ने जीत हासिल की. हीरालाल अनुसूचि पांच के तहत अनुसूचित जनजाति को विशेष अधिकार दिए जाने के लिए काफी सक्रिय रहे हैं. हीरालाल मानते हैं कि इस अधिकार पर सरकार ने कोई काम नहीं किया है.
यह भी पढ़ें : विधानसभा चुनाव परिणाम 2018 : इस प्रत्याशी ने सिर्फ तीन वोटों से हासिल कर ली जीत
आदिवासियों का पलायन रोकने के लिए हीरालाल ने कई कदम उठाए हैं. आदिवासी इलाकों में इकॉनामी जोन बनने से काफी सारे आदिवासी पलायन करने के लिए मजबूर हो रहे हैं. हीरालाल अपने इलाके में कई सीमेंट फैक्ट्रियों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं जो आदिवासियों की जमीन लेकर चल रही हैं. आदिवासियों के खिलाफ हो रहे पुलिस अत्याचार के खिलाफ भी हीरालाल आवाज़ उठाते रहते हैं.
VIDEO : कांग्रेस में मुख्यमंत्री के लिए माथापच्ची
अल्प संसाधन और समय दोनों की कमी होने के बावजूद हीरालाल ने शानदार जीत हासिल की. चुनाव प्रचार के लिए हीरालाल को सिर्फ 15 दिन का समय मिला था लेकिन फिर भी उन्होंने पूर्व कैबिनेट मिनिस्टर को हरा दिया.
हीरालाल ने “अबकी बार आदिवासी सरकार” का नारा भी शुरू कर दिया था. हीरालाल की लोकप्रियता को देखते हुए अंतिम क्षणों में कांग्रेस ने उनको टिकट दिया. जहां कांग्रेस के स्थानीय नेता हीरालाल के खिलाफ थे वहीं राहुल गांधी ने उनके टिकट पर मोहर लगाई. हीरालाल का जन्म आदिवासी परिवार में हुआ. उन्होंने AIIMS में डॉक्टरी की पढ़ाई की. हीरालाल ने 2012 से 2015 तक सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर के रूप AIIMS में काम किया. 2015 से 2016 तक असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में भी AIIMS में नौकरी की.
अलावा ने दिसंबर 2016 में नौकरी छोड़कर अपने इलाके में काम करना शुरू कर दिया. पिछले कई सालों से हीरालाल आदिवासियों के हकों के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं. हीरालाल ने पांच साल पहले 'जय आदिवासी युवा शक्ति' नामक संगठन बनाया. उसके बाद उन्होंने मध्यप्रदेश में छात्र संघ चुनाव में अपने उम्मीदवारों को खड़ा किया और उनके समर्थन से 162 छात्र नेताओं ने जीत हासिल की. हीरालाल अनुसूचि पांच के तहत अनुसूचित जनजाति को विशेष अधिकार दिए जाने के लिए काफी सक्रिय रहे हैं. हीरालाल मानते हैं कि इस अधिकार पर सरकार ने कोई काम नहीं किया है.
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आदिवासियों का पलायन रोकने के लिए हीरालाल ने कई कदम उठाए हैं. आदिवासी इलाकों में इकॉनामी जोन बनने से काफी सारे आदिवासी पलायन करने के लिए मजबूर हो रहे हैं. हीरालाल अपने इलाके में कई सीमेंट फैक्ट्रियों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं जो आदिवासियों की जमीन लेकर चल रही हैं. आदिवासियों के खिलाफ हो रहे पुलिस अत्याचार के खिलाफ भी हीरालाल आवाज़ उठाते रहते हैं.
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अल्प संसाधन और समय दोनों की कमी होने के बावजूद हीरालाल ने शानदार जीत हासिल की. चुनाव प्रचार के लिए हीरालाल को सिर्फ 15 दिन का समय मिला था लेकिन फिर भी उन्होंने पूर्व कैबिनेट मिनिस्टर को हरा दिया.
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