जश्न के मूड में बीजेपी समर्थक
देहरादून:
देहरादून में बीजेपी दफ्तर का दृश्य: शनिवार को यहां होली और दीवाली एक साथ मनाई जा रही थी. एक ओर पटाखों की लड़ियां जल रही थीं और दूसरी ओर गुलाल के साथ होली के रंग हर ओर बिखर रहे थे. जो नारे गूंज रहे थे उसमें सबसे अधिक सुनाई दे रहा था – ‘हर हर मोदी... घर घर मोदी’ और इन नारों के साथ हवा में लहरा रहा था मोदी का एक बड़ा कट आउट.
खुशी के इसी हुड़दंग के बीच रिपोर्टिंग करते हुए एक आवाज़ मेरे कानों में पड़ी. इस रंगीन माहौल को देखकर बीजेपी के एक समर्थक ने अपने साथी से कहा, “ये तो बिल्कुल शिव का अवतार है भाई.. शिवजी का अवतार.” मोदी के बारे में ये बयान उत्तराखंड से लेकर उत्तर प्रदेश और हिंदी पट्टी के उन राज्यों में बीजेपी को मिले जनादेश के पीछे की कहानी भी है जहां पिछले तीन सालों में पार्टी फैलती गई है.
मोदी पिछले तीन सालों में आम वोटर के बीच लोकप्रियता की आसमानी सीढ़ियां चढ़ी हैं. लेकिन कुल लोगों के लिए वो दैवीय अवतार बन गये हैं. उन्होंने अपनी राजनीति में जिन चीज़ों को शामिल किया है वह सामाजिक और आर्थिक बराबरी का फलासफा भी है और राष्ट्रवाद के साथ भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम की अपील भी. मोदी जब भाषणों में कब्रिस्तान और श्मशान वाले बयान देते हैं तो समाज को एक बड़े हिस्से को उपेक्षित से विशेष और संरक्षित होने का एहसास मिलता है. मोदी सर्जिकल स्ट्राइक के बाद जिस तरह से उसे देश की अस्मिता और सैनिकों के सम्मान के साथ पेश करते हैं उससे एक आम वोटर को एहसास होता है कि देश की सीमाओं को पहली बार सुरक्षित करने की पहल की गई है.
पूर्व जनरलों ने टीवी कहा कि सर्जिकल स्ट्राइक पहली बार नहीं की गई लेकिन प्रधानमंत्री ने सेना की कार्रवाई को जिस अंदाज़ में अपने बयानों और भाषणों में पेश किया उससे ‘हताश’ लोगों को पहली बार ‘आत्मसम्मान’ का बोध हुआ.
नरेंद्र मोदी कई मामलों में अपने विरोधियों को पीछे छोड़ते हैं और लगता है कि उन्हें कई मोर्चों पर मोदी से काफी कुछ सीखना है. अखिलेश यादव का बयान कि वोट मतदाता को समझाने से नहीं बहकाने से मिलते है इसकी ओर इशारा करता है. यानी मोदी अपने वोटरों को वो भरोसा दिला रहे हैं जो अब तक उन्हें नहीं मिल पाया. मिसाल के तौर पर नोटबंदी से किसान भी परेशान हुये, छोटे कारोबारी भी और गरीब लोग भी. काम धन्धे चौपट हुये और कई लोगों को नौकरियों से हाथ धाना पड़ा. पूर्व वित्तमंत्री और कांग्रेस नेता पी चिदम्बरम ने कहा है कि यूपी और उत्तराखंड में मिली जीत नोटबंदी पर जनमत संग्रह नहीं कहा जा सकता क्योंकि बाकी तीन राज्यों पंजाब, गोवा और मणिपुर में फिर आपको इसके उलट मानना होगा.
फिर भी नोटबंदी से हुई तमाम दिक्कतों के बाद भी लोग बीजेपी को वोट देते हैं तो ये मानना होगा कि मोदी लोगों के ये समझाने में सफल हुये कि उनका ये कदम भ्रष्टाचार, आतंकवाद और काले धन के खिलाफ था. ज़मीनी रिपोर्टिंग करने वाले हर पत्रकार ने लोगों के मुंह से ये सुना – ‘हां दिक्कत तो है लेकिन देश के हित में है ये कदम.’ यहां महत्वपूर्ण ये है कि ये कदम देश के ही हित में नहीं लोगों को निजी हित में भी लगा है. मोदी ने लोगों से कहा – ‘उन्होंने लूटा, मैं लौटाऊंगा’ और लोगों को ये महसूस हुआ कि अब वो उन अमीरों के बराबर हो गये हैं जिन्होंने काला धन जमा किया.
ये बात भी ध्यान देने की है कि बीजेपी ने किसी मुसलमान को यूपी में टिकट नहीं दिया जैसा कि उसने 2014 के लोकसभा चुनावों में किया था. बीजेपी का कदम भले ही हिंदू ध्रुवीकरण के लिए हो लेकिन मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने इसे प्रगतिशील राजनीति के नमूने को तौर पर पेश किया है. यूपी के चुनाव में उन सीटों पर बीजेपी ने भारी जीत हासिल की है जिन सीटों पर मुस्लिम बहुल आबादी थी. जाट बहुल आबादी वाले इलाकों में एक बार फिर से बीजेपी कामयाब हुई है तो उसने देवबंद जैसी सीट भी जीती है.
मोदी के मंत्री उनके नैरेटिव को आगे ले जाते हैं. इसीलिये वित्तमंत्री अरुण जेटली हुड़दंग करने वाले एबीवीपी के छात्रों पर किसी तरह का कठोर बयान देने के बजाय कहते हैं कि भारत अकेला देश है जहां राष्ट्रवाद की बात करना गलत लगता है तो अमित शाह कांग्रेस, बीएसपी और समाजवादी पार्टी के लिये कसाब शब्द का इस्तेमाल करने के बाद भी कह पाते हैं कि लोग धर्म और जाति की राजनीति से ऊब गये हैं और वो विकास चाहते हैं.
यानी नरेंद्र मोदी ने अपनी प्रचार शैली से हिंदुत्व के मुद्दे को छद्म सेक्युलर वाद और तुष्टीकरण की राजनीति के खिलाफ जंग में बदला है और अब सारी ‘सेक्युलर’ पार्टियों की विश्वसनीयता खत्म करना बीजेपी की प्रमुख रणनीति रहेगी. यही नहीं उन्होंने नोटबंदी जैसे अपने आर्थिक कदम को जिस तरह से सर्जिकल स्ट्राइक और राष्ट्रवाद के साथ जोड़ा है वह एक ऐसा मिश्रण है जो उन्हें देश के तमाम हिस्सों के वोटरों के बीच लोकप्रिय बना रहा है. इस ताकत से निबटने से पहले उनके विरोधियों को याद रखना होगा कि मोदी शिव के अवतार वाली छवि हासिल कर चुके हैं.
खुशी के इसी हुड़दंग के बीच रिपोर्टिंग करते हुए एक आवाज़ मेरे कानों में पड़ी. इस रंगीन माहौल को देखकर बीजेपी के एक समर्थक ने अपने साथी से कहा, “ये तो बिल्कुल शिव का अवतार है भाई.. शिवजी का अवतार.” मोदी के बारे में ये बयान उत्तराखंड से लेकर उत्तर प्रदेश और हिंदी पट्टी के उन राज्यों में बीजेपी को मिले जनादेश के पीछे की कहानी भी है जहां पिछले तीन सालों में पार्टी फैलती गई है.
मोदी पिछले तीन सालों में आम वोटर के बीच लोकप्रियता की आसमानी सीढ़ियां चढ़ी हैं. लेकिन कुल लोगों के लिए वो दैवीय अवतार बन गये हैं. उन्होंने अपनी राजनीति में जिन चीज़ों को शामिल किया है वह सामाजिक और आर्थिक बराबरी का फलासफा भी है और राष्ट्रवाद के साथ भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम की अपील भी. मोदी जब भाषणों में कब्रिस्तान और श्मशान वाले बयान देते हैं तो समाज को एक बड़े हिस्से को उपेक्षित से विशेष और संरक्षित होने का एहसास मिलता है. मोदी सर्जिकल स्ट्राइक के बाद जिस तरह से उसे देश की अस्मिता और सैनिकों के सम्मान के साथ पेश करते हैं उससे एक आम वोटर को एहसास होता है कि देश की सीमाओं को पहली बार सुरक्षित करने की पहल की गई है.
पूर्व जनरलों ने टीवी कहा कि सर्जिकल स्ट्राइक पहली बार नहीं की गई लेकिन प्रधानमंत्री ने सेना की कार्रवाई को जिस अंदाज़ में अपने बयानों और भाषणों में पेश किया उससे ‘हताश’ लोगों को पहली बार ‘आत्मसम्मान’ का बोध हुआ.
नरेंद्र मोदी कई मामलों में अपने विरोधियों को पीछे छोड़ते हैं और लगता है कि उन्हें कई मोर्चों पर मोदी से काफी कुछ सीखना है. अखिलेश यादव का बयान कि वोट मतदाता को समझाने से नहीं बहकाने से मिलते है इसकी ओर इशारा करता है. यानी मोदी अपने वोटरों को वो भरोसा दिला रहे हैं जो अब तक उन्हें नहीं मिल पाया. मिसाल के तौर पर नोटबंदी से किसान भी परेशान हुये, छोटे कारोबारी भी और गरीब लोग भी. काम धन्धे चौपट हुये और कई लोगों को नौकरियों से हाथ धाना पड़ा. पूर्व वित्तमंत्री और कांग्रेस नेता पी चिदम्बरम ने कहा है कि यूपी और उत्तराखंड में मिली जीत नोटबंदी पर जनमत संग्रह नहीं कहा जा सकता क्योंकि बाकी तीन राज्यों पंजाब, गोवा और मणिपुर में फिर आपको इसके उलट मानना होगा.
फिर भी नोटबंदी से हुई तमाम दिक्कतों के बाद भी लोग बीजेपी को वोट देते हैं तो ये मानना होगा कि मोदी लोगों के ये समझाने में सफल हुये कि उनका ये कदम भ्रष्टाचार, आतंकवाद और काले धन के खिलाफ था. ज़मीनी रिपोर्टिंग करने वाले हर पत्रकार ने लोगों के मुंह से ये सुना – ‘हां दिक्कत तो है लेकिन देश के हित में है ये कदम.’ यहां महत्वपूर्ण ये है कि ये कदम देश के ही हित में नहीं लोगों को निजी हित में भी लगा है. मोदी ने लोगों से कहा – ‘उन्होंने लूटा, मैं लौटाऊंगा’ और लोगों को ये महसूस हुआ कि अब वो उन अमीरों के बराबर हो गये हैं जिन्होंने काला धन जमा किया.
ये बात भी ध्यान देने की है कि बीजेपी ने किसी मुसलमान को यूपी में टिकट नहीं दिया जैसा कि उसने 2014 के लोकसभा चुनावों में किया था. बीजेपी का कदम भले ही हिंदू ध्रुवीकरण के लिए हो लेकिन मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने इसे प्रगतिशील राजनीति के नमूने को तौर पर पेश किया है. यूपी के चुनाव में उन सीटों पर बीजेपी ने भारी जीत हासिल की है जिन सीटों पर मुस्लिम बहुल आबादी थी. जाट बहुल आबादी वाले इलाकों में एक बार फिर से बीजेपी कामयाब हुई है तो उसने देवबंद जैसी सीट भी जीती है.
मोदी के मंत्री उनके नैरेटिव को आगे ले जाते हैं. इसीलिये वित्तमंत्री अरुण जेटली हुड़दंग करने वाले एबीवीपी के छात्रों पर किसी तरह का कठोर बयान देने के बजाय कहते हैं कि भारत अकेला देश है जहां राष्ट्रवाद की बात करना गलत लगता है तो अमित शाह कांग्रेस, बीएसपी और समाजवादी पार्टी के लिये कसाब शब्द का इस्तेमाल करने के बाद भी कह पाते हैं कि लोग धर्म और जाति की राजनीति से ऊब गये हैं और वो विकास चाहते हैं.
यानी नरेंद्र मोदी ने अपनी प्रचार शैली से हिंदुत्व के मुद्दे को छद्म सेक्युलर वाद और तुष्टीकरण की राजनीति के खिलाफ जंग में बदला है और अब सारी ‘सेक्युलर’ पार्टियों की विश्वसनीयता खत्म करना बीजेपी की प्रमुख रणनीति रहेगी. यही नहीं उन्होंने नोटबंदी जैसे अपने आर्थिक कदम को जिस तरह से सर्जिकल स्ट्राइक और राष्ट्रवाद के साथ जोड़ा है वह एक ऐसा मिश्रण है जो उन्हें देश के तमाम हिस्सों के वोटरों के बीच लोकप्रिय बना रहा है. इस ताकत से निबटने से पहले उनके विरोधियों को याद रखना होगा कि मोदी शिव के अवतार वाली छवि हासिल कर चुके हैं.
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