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This Article is From Jan 26, 2017

UPelections 2017: वाराणसी में टिकट बंटवारे के बाद बीजेपी में कलह, पुतले फूंककर किया विरोध

UPelections 2017: वाराणसी में टिकट बंटवारे के बाद बीजेपी में कलह, पुतले फूंककर किया विरोध
वाराणसी में विरोध प्रदर्शन करते नाराज बीजेपी कार्यकर्ता
वाराणसी: 2014 लोकसभा के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जिताने के लिये भाजपा के लोगों ने तिनका तिनका जोड़कर जीत का कारवां आगे बढ़ाया था. इन तिनकों में दूसरी पार्टियों के दिग्गज़ों को भी बड़े आश्‍वासन दे कर पार्टी में शामिल कराया था. उन लोगों ने पूरी निष्ठा के साथ बीजेपी की विचारधारा में अपने को ढाल कर मेहनत भी की. उम्मीद थी कि उन्हें टिकट मिलेगा. लेकिन जब टिकट की घोषणा हुई तो बाहरी का ठप्पा लगा कर उन्हें टिकट की मजबूत दावेदारी से बाहर कर दिया गया. इनमें बीजेपी का दमन थमने वालों में सबसे ज़्यादा कांग्रेसी हैं जिनका राजनीतिक करियर दांव पर लगा है.

शहर दक्षिणी से 2012 के चुनाव में लगभग 45000 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे दयाशंकर मिश्र दयालू को लोकसभा के चुनाव में बड़े आश्वासन के साथ पार्टी में शामिल कराया गया था. पिछले तीन साल से वह इस विधानसभा सीट पर मेहनत कर रहे हैं. लेकिन टिकट न मिलने से उनके समर्थक जहां बागी हो रहे हैं तो वहीं दयाशंकर मिश्र स्तब्ध और खामोश हो गए हैं. क्योंकि उन्हें लगता है कि उनका करियर ही दांव पर है. इसी तरह कांग्रेस से आए डॉ. अशोक सिंह हैं. हालांकि ये बनारस से नहीं बल्कि गाजीपुर सदर से टिकट मांग रहे थे. इन्हें भी बाहरी के तमगे ने टिकट से वंचित कर दिया.

अशोक सिंह बातचीत में कहते हैं, 'भाजपा के बड़े नेता ने विशवास दिलाया था कि इस बार टिकट मिलेगा. लेकिन ऐन वक़्त पर काट दिया.' आखिर किस मानक से काटा वो उनकी समझ से पर है. जबकि बनारस में कांग्रेस से मेयर का चुनाव अशोक सिंह लड़े थे और उन्हें 73 हजार वोट मिले थे. कांग्रेस के अलावा स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ बीजेपी में शामिल दो बार से विधायक उदयलाल मौर्य भी अपना टिकट कटने से स्तब्ध हैं. उदयलाल मौर्य शिवपुर विधानसभा सीट से 2007 और 2012 के चुनाव में जीते थे. वो वर्तमान में सिटिंग विधायक हैं. लिहाजा वो समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर उनका टिकट किस आधार पर कटा. वो अपने आपको पूरी तरह ठगा महसूस कर रहे हैं. उनके समर्थक उन्हें निर्दलीय लड़ने की सलाह दे रहे हैं पर अभी वो खामोश हैं और वक़्त का इंतजार कर रहे हैं.

टिकट बंटवारे का ये विरोध सिर्फ बहार से भाजपा में आए लोगों के टिकट न मिलने का ही नहीं है बल्कि भाजपा में अपने अंदर भी जिन लोगों को टिकट दिया गया उनका भी जमकर विरोध हो रहा है. इसमें खासतौर पर बीजेपी की परंपरागात सीट शहर दक्षिणी और कैंट विधानसभा की सीट पर ज़्यादा असंतोष है. इस असंतोष का प्रदर्शन भी प्रधानमंत्री के संसदीय कार्यालय से लेकर भाजपा के कार्यालय और संघ के दफ्तर में भी दिखाई पड़ा.

टिकट बंटवारे के बाद से ही बीजेपी के स्थानीय बड़े पदाधिकारियों को इस तरह के विरोध का सामना करना पड़ रहा है. शहर दक्षिणी में 7 बार से विधायक रहे श्यामदेव चौधरी भी अपना टिकट कटने और जिन लोगों को टिकट मिला उससे खुश नहीं हैं. सूत्र कहते हैं कि उन्होंने दबी जबान में ये तक कह दिया कि जनता सब देख रही है, वो खुद हिसाब कर लेगी. दादा के उपनाम से मशहूर श्यामदेव राय चौधरी बनारस में बीजेपी के चेहरा हैं. उन्हें इस बात का गहरा आघात लगा है कि उनसे इस बाबत किसी ने राय जानने की भी जरूरत नहीं समझी.

कैंट विधानसभा क्षेत्र से पार्टी ने श्रीवास्तव परिवार पर ही भरोसा जताया. यहां विधायक रहे हरीश चन्द्र श्रीवास्तव, उसके बाद उनकी पत्नी ज्योत्सना श्रीवास्तव और अब उनके बेटे सौरभ श्रीवास्तव को टिकट मिल गया,  जिससे कार्यकर्ता बहुत निराश हैं. जो लोग टिकट की उम्मीद लगाए बैठे थे वो तो निराश हैं ही, लेकिन भाजपा का कार्यकर्ता भी शायद पहली बार बनारस में इस टिकट बंटवारे से इतना नाउम्मीद हुआ है. यही वजह है कि पहली बार बनारस में विरोध का स्वर इतना मुखर हुआ. प्रधानमंत्री के कार्यालय पर विरोध हुआ तो पुतला भी फूंका गया. बाहरी तौर पर इस विरोध को आप बहुत बड़ा नहीं कह सकते पर अंदर विरोध बहुत तेज सुलग रहा है. और अगर इसे जल्द आलाकमान ठंडा नहीं कर पाता तो कोई बड़ी बात नहीं कि इस आग में बीजेपी कहीं अपनी परम्परागत सीट ही न गंवा बैठे.

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