लखनऊ:
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के तीसरे चरण में 12 जिलों की 69 सीटों पर चुनाव प्रचार थम गया है और रविवार को वोटिंग है. इस चरण में सपा के सामने अपने किले को बचाने की चुनौती होगी तो सत्ता में वापसी की उम्मीद लगाए बीजेपी और बीएसपी के सामने मुलायम सिंह यादव और उनके परिवार के प्रति वोटरों के विश्वास को डगमगाने का मौका होगा. 2012 के चुनाव परिणाम पर नजर डालें तो इन 69 सीटों में से 55 सपा ने जीती थी. इस बार विरोधी दल सपा सरकार पर लगातार आरोप लगा रहे हैं कि उन्होंने इन इलाकों पर विशेष ध्यान नहीं दिया. वहीं मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपनी रैलियों में जोर देकर कहा कि उन्होंने सबसे ज्यादा काम इन्हीं विधानसभा क्षेत्रों में कराया. आइए एक नजर में जानें तीसरे चरण के उन सात जिलों का हाल जहां एक-एक वोट बढ़ाएंगे राजनीतिक दलों की धड़कनें.
इटावा: मुलायम सिंह यादव का गांव सैफई इसी जिले में पड़ता है. कहा जाता है कि इस जिले के ज्यादातर लोगों की सीधी पहुंच मुलायम सिंह यादव और उनके परिवार से है. इसके बाद भी 2012 के चुनाव में इस जिले की चार में से एक सीट पर बीएसपी प्रत्याशी जीत गए थे. इस बार अखिलेश यादव का चाचा शिवपाल सिंह यादव के बीच झगड़ा चल रहा है. ऐसे में उनके सामने अपनी साख साबित करने की चुनौती होगी. वहीं विरोधी बीजेपी और बीएसपी इस झगड़े के बीच एक-एक वोट का गुना-गणित लगाएगी.
मैनपुरी: 2014 में नरेंद्र मोदी लहर के बाद भी मैनपुरी के लोगों ने मुलायम सिंह यादव को यहां से जीत दिलाकर संसद में भेजा था. हालांकि बाद में मुलायम सिंह यादव ने यह सीट अपने पोते तेज प्रताप सिंह यादव को सौंप दी. 2012 के चुनाव में सपा ने यहां की सभी 4 सीटें जीती थीं. हालांकि इस जीत में शिवपाल यादव का बड़ा हाथ माना जाता है. इस बार बीजेपी यहां सेंधमारी करने के लिए पूरी ताकत झोंक चुकी है.
कन्नौज: मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इसी जिले से सांसद बनकर राजनीति में एंट्री मारी थी. बाद में उन्होंने ये सीट पत्नी डिंपल यादव को सौंप दी. 2012 विधानसभा चुनाव में यहां की सभी तीन सीटें सपा के खाते में गई थी. इस बार पीएम मोदी ने खुद यहां रैली की है और अपने भाषण के जरिए यहां के लोगों को समझाने की कोशिश की कि अखिलेश अपने पिता के सगे नहीं हुए तो भला वे कन्नौज के लोगों की मदद क्या करेंगे. देखना दिलचस्प होगा कि कन्नौज के लोग अखिलेश पर भरोसा करते हैं या पीएम मोदी का प्लान सफल होगा.
ओरैया: 2002 में भले ही मायावती सत्ता से दूर रही थी, लेकिन उनकी पार्टी बीएसपी ने औरैया जिले की सभी तीन सीटों पर जीत दर्ज की थी. 2007 में बीएसपी की सरकार बनने के बाद भी सपा ने सेंधमारी करते हुए यहां की एक सीट पर कब्जा किया. 2012 में सपा ने यहां की सभी तीन सीटें जीती थी. अब देखना दिलचस्प होगा कि इस बार औरैया की तीन में से कितनी सीटें किस दल के खाते में जाएगी.
बाराबंकी: इस जिले की जनता हर चुनाव में बेहद दिलचस्प तरीके से विजेता चुनती रही है. हाल ही में कांग्रेस छोड़कर सपा में आए मुलायम सिंह यादव के पुराने दोस्त बेनी प्रसाद वर्मा इस जिले के बड़े नेता माने जाते हैं. कुर्मी बहुल्य इस इलाके के हैदरगढ़ सीट से चुनाव जीतकर राजनाथ सिंह 2002 में राज्य के मुख्यमंत्री भी बन चुके हैं. उस साल बीजेपी ने यहां की आठ में से चार सीटें जीती थीं, तीन सपा और एक बीएसपी के खाते में गई थी. 2007 में भी सपा को तीन सीटों से संतोष करना पड़ा, वहीं पांच सीटों पर बीएसपी के हाथी का दम दिखा. यानी बीजेपी इस जिले से उखड़ गई. 2012 में सपा ने जोरदार बढ़त के साथ पांच सीटें जीत गई. बीजेपी को एक सीट मिली तो बीएसपी का खाता भी नहीं खुला. इस चुनाव में भी यहां विधानसभा की छह सीटें हैं.
लखनऊ: शहरी लोगों की पार्टी कही जाने वाली बीजेपी पिछले कुछ समय से अपनी इस पहचान को बदलने की जुगत में है. हालांकि अमित शाह और मोदी की जोड़ी इस तरह से प्लानिंग कर रहे हैं कि पार्टी का जनाधार शहरों में कायम रहते हुए गांव में बढ़े. वहीं गांव की पार्टी कही जाने वाली सपा एक्सप्रेस वे, मेट्रो आदि की बातें कर शहरों में अपनी पैठी कायम करने की कोशिश कर रही है. इस लिहाज से लखनऊ जिला दोनों पार्टियों के लिए बेहद अहम माना जा रहा है. लखनऊ की जनता लंबे समय तक बीजेपी के संस्थापक अटल बिहारी वाजपेयी और उनके नाम पर भरोसा करती आई है. 2007 में यहां की आठ में से 4 बीजेपी तो सपा ने एक सीट जीती थी. दो निर्दलीय और इतने ही बीएसपी ने जीते थे. 2012 में यहां विधानसभा की 10 सीटों में से बीजेपी केवल एक जीत पाई. वहीं सपा ने उम्मीदों से विपरीत सात पर परचम लहराया था. एक कांग्रेस के खाते में गई थी. इस बार सपा ने लखनऊ में मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा को उतारकर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है. क्योंकि गृहमंत्री राजनाथ सिंह यहां से सांसद हैं.
हरदोई: सपा के वरिष्ठ नेता नरेश अग्रवाल हरदोई जिले के कद्दावर नेता माने जाते हैं. इसका असर 2012 के विधानसभा चुनाव दिखा था. यहां की आठ में से छह सीटें सपा ने जीती थी. एक सीट पर नरेश अग्रवाल के बेटे नितिन जीते थे. 2007 के चुनाव में यहां की नौ सीटों में से केवल नरेश अग्रवाल खुद सपा के लिए एक सीट जीत पाए थे और बीएसपी आठ सीटें जीती थी. 2014 के लोकसभा चुनाव में वे यहां से चुनाव हार गए थे. 2017 की जंग में पीएम मोदी खुद यहां वोट मांगने पहुंचे हैं. वहीं सपा और बीएसपी ने भी यहां ताबड़तोड़ रैलियां की हैं.
मालूम हो कि तीसरे चरण में इन सात जिलों के अलावा फर्रुखाबाद, कानपुर देहात, कानपुर, उन्नाव और सीतापुर में भी वोट डाले जाएंगे. हालांकि इन जिलों में पिछले चुनावों में सभी दलों का परिणाम मिलाजुला रहा है. वहीं ऊपर बताए गए सात जिलों में 2012 के चुनाव में सपा का दम दिखा था. सभी इंतजार होगा कि इन सात जिलों में सपा अपना किला बचा पाती है या नहीं.
इटावा: मुलायम सिंह यादव का गांव सैफई इसी जिले में पड़ता है. कहा जाता है कि इस जिले के ज्यादातर लोगों की सीधी पहुंच मुलायम सिंह यादव और उनके परिवार से है. इसके बाद भी 2012 के चुनाव में इस जिले की चार में से एक सीट पर बीएसपी प्रत्याशी जीत गए थे. इस बार अखिलेश यादव का चाचा शिवपाल सिंह यादव के बीच झगड़ा चल रहा है. ऐसे में उनके सामने अपनी साख साबित करने की चुनौती होगी. वहीं विरोधी बीजेपी और बीएसपी इस झगड़े के बीच एक-एक वोट का गुना-गणित लगाएगी.
मैनपुरी: 2014 में नरेंद्र मोदी लहर के बाद भी मैनपुरी के लोगों ने मुलायम सिंह यादव को यहां से जीत दिलाकर संसद में भेजा था. हालांकि बाद में मुलायम सिंह यादव ने यह सीट अपने पोते तेज प्रताप सिंह यादव को सौंप दी. 2012 के चुनाव में सपा ने यहां की सभी 4 सीटें जीती थीं. हालांकि इस जीत में शिवपाल यादव का बड़ा हाथ माना जाता है. इस बार बीजेपी यहां सेंधमारी करने के लिए पूरी ताकत झोंक चुकी है.
कन्नौज: मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इसी जिले से सांसद बनकर राजनीति में एंट्री मारी थी. बाद में उन्होंने ये सीट पत्नी डिंपल यादव को सौंप दी. 2012 विधानसभा चुनाव में यहां की सभी तीन सीटें सपा के खाते में गई थी. इस बार पीएम मोदी ने खुद यहां रैली की है और अपने भाषण के जरिए यहां के लोगों को समझाने की कोशिश की कि अखिलेश अपने पिता के सगे नहीं हुए तो भला वे कन्नौज के लोगों की मदद क्या करेंगे. देखना दिलचस्प होगा कि कन्नौज के लोग अखिलेश पर भरोसा करते हैं या पीएम मोदी का प्लान सफल होगा.
ओरैया: 2002 में भले ही मायावती सत्ता से दूर रही थी, लेकिन उनकी पार्टी बीएसपी ने औरैया जिले की सभी तीन सीटों पर जीत दर्ज की थी. 2007 में बीएसपी की सरकार बनने के बाद भी सपा ने सेंधमारी करते हुए यहां की एक सीट पर कब्जा किया. 2012 में सपा ने यहां की सभी तीन सीटें जीती थी. अब देखना दिलचस्प होगा कि इस बार औरैया की तीन में से कितनी सीटें किस दल के खाते में जाएगी.
बाराबंकी: इस जिले की जनता हर चुनाव में बेहद दिलचस्प तरीके से विजेता चुनती रही है. हाल ही में कांग्रेस छोड़कर सपा में आए मुलायम सिंह यादव के पुराने दोस्त बेनी प्रसाद वर्मा इस जिले के बड़े नेता माने जाते हैं. कुर्मी बहुल्य इस इलाके के हैदरगढ़ सीट से चुनाव जीतकर राजनाथ सिंह 2002 में राज्य के मुख्यमंत्री भी बन चुके हैं. उस साल बीजेपी ने यहां की आठ में से चार सीटें जीती थीं, तीन सपा और एक बीएसपी के खाते में गई थी. 2007 में भी सपा को तीन सीटों से संतोष करना पड़ा, वहीं पांच सीटों पर बीएसपी के हाथी का दम दिखा. यानी बीजेपी इस जिले से उखड़ गई. 2012 में सपा ने जोरदार बढ़त के साथ पांच सीटें जीत गई. बीजेपी को एक सीट मिली तो बीएसपी का खाता भी नहीं खुला. इस चुनाव में भी यहां विधानसभा की छह सीटें हैं.
लखनऊ: शहरी लोगों की पार्टी कही जाने वाली बीजेपी पिछले कुछ समय से अपनी इस पहचान को बदलने की जुगत में है. हालांकि अमित शाह और मोदी की जोड़ी इस तरह से प्लानिंग कर रहे हैं कि पार्टी का जनाधार शहरों में कायम रहते हुए गांव में बढ़े. वहीं गांव की पार्टी कही जाने वाली सपा एक्सप्रेस वे, मेट्रो आदि की बातें कर शहरों में अपनी पैठी कायम करने की कोशिश कर रही है. इस लिहाज से लखनऊ जिला दोनों पार्टियों के लिए बेहद अहम माना जा रहा है. लखनऊ की जनता लंबे समय तक बीजेपी के संस्थापक अटल बिहारी वाजपेयी और उनके नाम पर भरोसा करती आई है. 2007 में यहां की आठ में से 4 बीजेपी तो सपा ने एक सीट जीती थी. दो निर्दलीय और इतने ही बीएसपी ने जीते थे. 2012 में यहां विधानसभा की 10 सीटों में से बीजेपी केवल एक जीत पाई. वहीं सपा ने उम्मीदों से विपरीत सात पर परचम लहराया था. एक कांग्रेस के खाते में गई थी. इस बार सपा ने लखनऊ में मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा को उतारकर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है. क्योंकि गृहमंत्री राजनाथ सिंह यहां से सांसद हैं.
हरदोई: सपा के वरिष्ठ नेता नरेश अग्रवाल हरदोई जिले के कद्दावर नेता माने जाते हैं. इसका असर 2012 के विधानसभा चुनाव दिखा था. यहां की आठ में से छह सीटें सपा ने जीती थी. एक सीट पर नरेश अग्रवाल के बेटे नितिन जीते थे. 2007 के चुनाव में यहां की नौ सीटों में से केवल नरेश अग्रवाल खुद सपा के लिए एक सीट जीत पाए थे और बीएसपी आठ सीटें जीती थी. 2014 के लोकसभा चुनाव में वे यहां से चुनाव हार गए थे. 2017 की जंग में पीएम मोदी खुद यहां वोट मांगने पहुंचे हैं. वहीं सपा और बीएसपी ने भी यहां ताबड़तोड़ रैलियां की हैं.
मालूम हो कि तीसरे चरण में इन सात जिलों के अलावा फर्रुखाबाद, कानपुर देहात, कानपुर, उन्नाव और सीतापुर में भी वोट डाले जाएंगे. हालांकि इन जिलों में पिछले चुनावों में सभी दलों का परिणाम मिलाजुला रहा है. वहीं ऊपर बताए गए सात जिलों में 2012 के चुनाव में सपा का दम दिखा था. सभी इंतजार होगा कि इन सात जिलों में सपा अपना किला बचा पाती है या नहीं.
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