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This Article is From Feb 27, 2017

यूपी विधानसभा चुनाव 2017 : एक विधानसभा सीट ऐसी जहां बीजेपी और कांग्रेस का प्रत्‍याशी मैदान में ही नहीं

यूपी विधानसभा चुनाव 2017 : एक विधानसभा सीट ऐसी जहां बीजेपी और कांग्रेस का प्रत्‍याशी मैदान में ही नहीं
बलिया: बलिया में एक ऐसा विधानसभा क्षेत्र है जहां पहली बार भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशी मैदान में नहीं है. हालांकि ये सीट कभी कांग्रेस का गढ़ रही है. पर इस चुनाव में उसकी उपस्थिति नहीं है. इसकी वजह वो गठबंधन है जिसमें भाजपा की सीट राजभरों की पार्टी भारतीय समाज पार्टी के खाते में चली गई. जबकि कांग्रेस की सीट सपा के खाते में. इस सीट पर 2012 के चुनाव में दूसरे स्थान पर रही भाजपा की प्रत्याशी निर्दलीय ही मैदान में कूद पड़ी लिहाजा मुकाबला दिलचस्प हो गया है. बलिया के बांसडीह विधानसभा क्षेत्र के एक गांव का जायजा लेते वक्त कुछ लोग एक बड़ी गाड़ी में लगे स्क्रीन पर फिल्म देखते नजर आये. नजदीक जाने पर पता चला कि सपा के प्रचार वाहन से अखिलेश का काम बोलता है की फिल्म ग्रामीण देख रहे हैं. रात के अंधेरे में प्रचार का ये बढ़िया तरिका है जिसके जरिये सपा अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है. पर दिन के उजाले में यहां चर्चा भाजपा की हो रही है जबकि भाजपा का कोई प्रत्याशी भी मैदान में नहीं है. लेकिन पूर्वांचल के जातीय समीकरण की गोटी को फिट करने के लिये भाजपा ने राजभरों की क्षेत्रीय पार्टी भासपा से गठबंधन किया और बांसडीह विधानसभा क्षेत्र में उनके प्रत्याशी पहली बार चुनाव मैदान में उतरे. भासपा के प्रत्याशी इस इलाके के नहीं हैं और वो पहली बार चुनाव मैदान में भी हैं.  जिसकी वजह से पहचान की एक चुनौती सामने है. पर वो कहते हैं की जनता उन्हें जिताएगी.

लेकिन भाजपा गठबंधन के लिये ये रास्ता इतना आसान नहीं क्योंकि यहां 2012 में भाजपा की प्रत्याशी रही केतकी सिंह पार्टी के टिकट की प्रबल दावेदार थीं. सीट गठबंधन में भासपा के खाते में जाने के बाद वो निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में हैं. वो कड़ी चुनौती देती भी दिखती हैं क्योंकि इस इलाके से वो दो बार चुनाव लड़ चुकी हैं, गांव-गांव को जानती हैं जबकि भासपा के प्रत्याशी इस इलाके के नहीं हैं. उनके विरोधी इसी को मुद्दा भी बना रहे हैं. निर्दलीय प्रत्याशी केतकी सिंह कहती हैं, "वो बाहर के हैं, जनता ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया है, चुनाव के बाद वो बाहर ही चले जाएंगे.

गौरतलब है कि बांसडीह विधानसभा क्षेत्र में कभी कांग्रेस के कद्दावर नेता बच्चा पाठक का दबदबा था. 1969 से सात बार उन्‍होंने इस विधानसभा सीट पर राज किया. बच्चा पाठक के बाद यहां रामगोविंद चौधरी की एंट्री हुई. वो यहां 2002 में चुनाव जीते. मुलायम मंत्रिमंडल में मंत्री भी रहे. फिर 2007 में हार गये. पर 2012 में फिर सपा से जीते और मंत्री रहे. वो हमेशा कांग्रेस के खिलाफ लड़ते रहे. इस बार भी कांग्रेस के कई दावेदार थे पर ये सीट गठबंधन से उनके पास ही रही.

बलिया की हाईप्रोफाइल सीट रही बांसडीह के इलाके में कई दिग्गज नेता बड़े मंत्री रहे लेकिन ये इलाका आभावों से जूझता रहा. हर साल प्राकृतिक आपदा यहां कहर बरपाती है. गर्मी के दिनों में आग और बाढ़ के दिनों में पलायन यहां बड़ी समस्या है. जिसका पुरसाहाल लेने वाला कोई नहीं. ऐसे में यहां बड़े दलों के उम्‍मीदवारों के बिना भी चुनाव कम दिलचस्प नहीं.

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