कांग्रेस के लोग इन नतीजों केा बदलाव मान रहे हैं
नई दिल्ली:
सुबह सुबह जब कांग्रेस दफ्तर पहुंची तो अंधेरा ही था... टीवी रिपोर्टर सुबह 6 बजे से लाइव कर रहे थे. एक्ज़िट पोल का असर था शायद कि अधिकतर को यही लग रहा था कि जैसे ही नतीजे आने शुरू होंगे काम खत्म हो जाएगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
पोस्टल बैलट में लगा कि बड़े कांटे की टक्कर है और यही वात वहां आपस में होती रही. कुछ देर में कांग्रेस के प्रवक्ता वहां पहुंचना शुरू हो गए. कुछ टीवी चैनलों की लाइव पर बैठे और कुछ वहां मौजूद रिपोर्टरों से बातें करने लगे. लंबे वक्त से इस बीट को कवर कर रहे रिपोर्टरों के मुताबिक आम तौर पर प्रवक्ता इतनी जल्दी नहीं आते. हवा का रुख देखने के बाद ही आते हैं. लेकिन इस बार कुछ अलग था. शायद उस कैंपेन का नतीजा जो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस बार गुजरात में किया- पार्टी वालों को कुछ उम्मीद और काफी हिम्मत देने वाली.
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लेकिन अचानक सुबह के साढ़े नौ बजते बजते चैनलों पर कांग्रेस की बढ़त दिखने लगी. वहीं पर टीवी देख रहे रिपोर्टरों में उत्साह दिखा कि शायद दस बजे के आगे भी काम हो. क्या एक्ज़िट पोल गलत थे? वहां मौजूद पार्टी वाले भी कुछ अचरज में, कुछ उत्साहित दिखे. कोई बैठा रहा, कोई कमरे से बाहर जाता रहा... बिल्कुल क्रिकेट मैच के टोटके सा कि कहीं कुछ अलग किया तो नतीजे बदल जाएंगे. हालांकि बदलना तो था ही.
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फिर धीरे-धीरे साफ हुआ कि निश्चित तौर पर कांग्रेस दोनों में से कोई भी राज्य नहीं जीत रही. लेकिन आम तौर पर जो मरघट का सन्नाटा छाता है, इस एहसास के बाद इस बार वो कांग्रेस के दफ्तर में नहीं दिखा. थोड़ी निराशा लेकिन मूड अपबीट. जो कांग्रेस जन मौजूद थे उनसे बात करने पर यही लगा कि वो इसे बदलाव मान रहे हैं, शुरुआत मान रहे हैं. हताशा नहीं दिखी. आने वाले दिनों में ये उत्साह रहेगा या नहीं ये तो पता नहीं लेकिन चुनाव नतीजों के दिन कांग्रेस दफ्तर बदला बदला सा ज़रूर लगा.
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पोस्टल बैलट में लगा कि बड़े कांटे की टक्कर है और यही वात वहां आपस में होती रही. कुछ देर में कांग्रेस के प्रवक्ता वहां पहुंचना शुरू हो गए. कुछ टीवी चैनलों की लाइव पर बैठे और कुछ वहां मौजूद रिपोर्टरों से बातें करने लगे. लंबे वक्त से इस बीट को कवर कर रहे रिपोर्टरों के मुताबिक आम तौर पर प्रवक्ता इतनी जल्दी नहीं आते. हवा का रुख देखने के बाद ही आते हैं. लेकिन इस बार कुछ अलग था. शायद उस कैंपेन का नतीजा जो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस बार गुजरात में किया- पार्टी वालों को कुछ उम्मीद और काफी हिम्मत देने वाली.
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लेकिन अचानक सुबह के साढ़े नौ बजते बजते चैनलों पर कांग्रेस की बढ़त दिखने लगी. वहीं पर टीवी देख रहे रिपोर्टरों में उत्साह दिखा कि शायद दस बजे के आगे भी काम हो. क्या एक्ज़िट पोल गलत थे? वहां मौजूद पार्टी वाले भी कुछ अचरज में, कुछ उत्साहित दिखे. कोई बैठा रहा, कोई कमरे से बाहर जाता रहा... बिल्कुल क्रिकेट मैच के टोटके सा कि कहीं कुछ अलग किया तो नतीजे बदल जाएंगे. हालांकि बदलना तो था ही.
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फिर धीरे-धीरे साफ हुआ कि निश्चित तौर पर कांग्रेस दोनों में से कोई भी राज्य नहीं जीत रही. लेकिन आम तौर पर जो मरघट का सन्नाटा छाता है, इस एहसास के बाद इस बार वो कांग्रेस के दफ्तर में नहीं दिखा. थोड़ी निराशा लेकिन मूड अपबीट. जो कांग्रेस जन मौजूद थे उनसे बात करने पर यही लगा कि वो इसे बदलाव मान रहे हैं, शुरुआत मान रहे हैं. हताशा नहीं दिखी. आने वाले दिनों में ये उत्साह रहेगा या नहीं ये तो पता नहीं लेकिन चुनाव नतीजों के दिन कांग्रेस दफ्तर बदला बदला सा ज़रूर लगा.
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