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This Article is From Mar 11, 2012

बीजेपी के लिए केंद्रीय सत्ता तक पहुंचना मुश्किल : संघ

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश विधानसभा के ताजा चुनाव में बीजेपी के पिछली बार से भी ज्यादा खराब प्रदर्शन पर निराशा जताते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने चेतावनी दी है कि पार्टी नेतृत्व ने अगर समय रहते समाधान नहीं खोजा, तो 2014 में केंद्र की सत्ता तक पहुंचना उसके लिए मुश्किल होगा।

संघ के अंग्रेजी और हिन्दी में प्रकाशित होने वाले मुखपत्रों ‘ऑर्गेनाइजर’ तथा ‘पांचजन्य’ दोनों के नवीनतम अंकों के संपादकीय में खराब प्रदर्शन के लिए पार्टी को आड़े हाथ लेते हुए उसे इस बारे में सोचने की कटाक्ष भरी नसीहत दी गई कि ‘‘उत्तर प्रदेश बीजेपी में कार्यकर्ताओं से अधिक नेताओं की फौज क्यों है।’’

ऑर्गेनाइजर के संपादकीय में कहा गया है, ‘‘उत्तर प्रदेश में बीजेपी को भी मतदाताओं से अलग थलग हो जाने की कांग्रेस की बीमारी लग गई। इसके चलते यह पिछले एक दशक में अपने आधे मतदाता गंवा बैठी है।’’ इसमें पार्टी नेतृत्व पर एक तरह से सवाल उठाते हुए कहा गया है, ‘‘मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए मूल विचारधारात्मक मुद्दों और सिद्धांतों के साथ नेतृत्व की विश्वसनीयता की जरूरत होती है। इन दिनों पार्टी से अधिक नेतृत्व और नेताओं से अधिक उनके कामकाज का चिट्ठा चुनावी नतीजों को प्रभावित करता है।’’

पांचजन्य के संपादकीय में भी बीजेपी और उसके नेतृत्व के प्रति कड़ा रुख अपनाते हुए आगाह किया गया है कि पार्टी ने अगर अपने को ठीक नहीं किया, तो आगामी लोकसभा चुनाव में भी उसका प्रदर्शन ठीक नहीं होगा। इसमें कहा गया है, ‘‘उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणामों ने पार्टी के सामने कई प्रश्न खड़े कर दिए हैं, जिनका समाधान पार्टी नेतृत्व को समय रहते खोजना होगा, अन्यथा 2014 का लोकसभा चुनाव उसके लिए अग्निपथ बन सकता है, जिसे पार कर केंद्रीय सत्ता तक पंहुचना बीजेपी के लिए मुश्किल भरा होगा।’’

संघ ने अपने मुखपत्र के संपादकीयों के जरिए बीजेपी से सीधा सवाल किया है, ‘‘भारतीय जनता पार्टी एक सुदृढ़ सांगठनिक ढांचा और वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की एक मजबूत शृंखला होने के बावजूद मतदाताओं की नजरों में क्यों नहीं चढ़ सकी? उत्तर प्रदेश में बीजेपी को कार्यकर्ताओं से अधिक नेताओं की फौज के बारे में भी सोचना होगा।’’ इसमें यह चिंता जताई गई है कि इस महत्वपूर्ण राज्य में बीजेपी का कमजोर होना कट्टरवादी ताकतों को मजबूत बनाएगा, जैसा कि इन चुनावों में सामने आया है।

उसने पार्टी से यह सवाल भी किया है कि ऐसा कैसे हो गया कि मायावती के ‘भ्रष्ट कुशासन’ से त्रस्त जनता जब विकल्प की तलाश में निकली, तो उसे वही मुलायम सिंह नजर आए, जिनके ‘गुंडाराज’ से आजिज आकर मायावती को 2007 में उसने सत्ता सौंपी थी। ऑर्गेनाइजर में प्रकाशित चुनाव परिणामों के विश्लेषण में बीजेपी को अपना ऐसा सर्वोत्तम नेता चुनने की जरूरत बताई गई है, जो जनता पर प्रभाव डाल सके।

इस विश्लेषण में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी या छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह का नाम लिए बिना कहा गया है, ‘‘जनता पर प्रभाव डालने वाला ऐसा नेता चुनने की जरूरत है, जिसका सुशासन और विकास का बढ़िया रिकॉर्ड हो। ऐसा नेता चुनकर सर्वोत्तम नतीजों को हासिल करने के लिए उसे पूर्ण समर्थन दिया जाए।’’

इसमें चेतावनी दी गई है कि अगर पार्टी जल्द ही ऐसा करने में विफल रही, तो अगले लोकसभा चुनाव अवश्यंभावी रूप से क्षेत्रीय गठजोड़ की ओर बढ़ते नजर आ रहे हैं और उसे रोका नहीं जा सकेगा। विश्लेषण में इस दलील को भी ठुकरा दिया गया है कि मुसलमानों के सपा को वोट देने से ऐसी स्थिति बनी है। इसमें कहा गया, ‘‘सचाई यह है कि मुसलमानों ने बीजेपी को कभी वोट नहीं दिया और 1996, 1998 और 1999 के संसदीय चुनावों में देश भर में मुसलमानों के भारी विरोध के बावजजूद बीजेपी उनमें विजयी हुई।’’

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