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This Article is From Sep 08, 2023

वैज्ञानिकों ने आकाशगंगा में खोजा सूर्य के बराबर एक नया तारा, क्या वहां कोई पृथ्वी भी मौजूद है

बताया जा रहा है कि ब्लैक-होल के विस्फोट को आमतौर पर ज्वारीय व्यवधान की घटनाओं के रूप में जाना जाता है जो तब होती है जब कोई तारा ब्लैक-होल में समा जाता है या ब्लैक होल उसे निगल लेता है. हालांकि, बार-बार प्रकाश के उत्सर्जन का मतलब है कि ये तारा आंशिक रूप से नष्ट हो रहा है. शोधकर्ताओं के मुताबिक, जिन घटनाओं में बार-बार विस्फोट होता है.

वैज्ञानिकों ने आकाशगंगा में खोजा सूर्य के बराबर एक नया तारा, क्या वहां कोई पृथ्वी भी मौजूद है

अंतरिक्ष एक रहस्य है. इसे अभी कोई नहीं समझ सकता है. हम पृथ्वीवासियों को पता नहीं है कि अंतरीक्ष में हमारे जैसे कितने ग्रह और सूर्य हैं. हालांकि वैज्ञानिक अभी इसी खोज में लगे हुए हैं. इन सबके बावजूद ब्रिटिश खगोलविदों ने आकाशगंगा में एक तारे की खोज की है. सूर्य के आकार के इस तारे को लगभग 500 मिलियन प्रकाश वर्ष दूर देखा गया है. हालांकि, वैज्ञानिकों को लग रहा है कि इस ग्रह को एक ब्लैक होल नष्ट कर रहा है और वह बार-बार इस तारो को खंडित और निगला रहा है. वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस नाटकीय घटना से लगभग हर 25 दिनों में प्रकाश का नियमित विस्फोट उत्पन्न होता था. जिसे ब्रिटेन के लीसेस्टर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने देखा है. अगर वास्तव में इस ग्रह के बारे में हमें जानकारी मिल गई तो मानव सभ्यता के लिए एक बड़ी खोज होगी.

वैज्ञानिकों ने दिया तारे को स्विफ्ट J0230 नाम

जानकारी के मुताबिक, ब्लैक-होल के विस्फोट को आमतौर पर ज्वारीय व्यवधान की घटनाओं के रूप में जाना जाता है जो तब होती है जब कोई तारा ब्लैक-होल में समा जाता है या ब्लैक होल उसे निगल लेता है. शोधकर्ताओं का मानना है कि, बार-बार प्रकाश के उत्सर्जन का मतलब है कि ये तारा आंशिक रूप से नष्ट हो रहा है. रिसर्चर्स के मुताबिक, जिन घटनाओं में बार-बार विस्फोट होता है, उनके दो प्रकार होते हैं. इसमें पहला वह है जो हर साल होते हैं वहीं दूसरी घटना में कुछ घंटों के अंतराल पर विस्फोट की घटनाएं देखने को मिलती हैं. जानकाारी के मुताबिक, लीसेस्टर विश्वविद्यालय के शाधकर्ताओं की टीम का कहना है कि इस तारे के बार-बार टूटने के इस तरह की प्रकाश उत्सर्जन की घटना 25 दिनों में एक बार हो रही थी. वैज्ञानिकों ने इस तारे को स्विफ्ट J0230 नाम दिया है. जो अपेक्षा के अनुरूप क्षय यानी नष्ट होने के बजाय, सात से 10 दिनों के लिए चमकना शुरू कर देता था. लेकिन उसके बाद वह अचानक से बंद हो जाता था. ये प्रक्रिया हर 25 दिन में एक बार होती थी. वैसे देखा जाए तो ये बहुत बड़ी खोज है. इससे मानव सभ्यता को आगे बढ़ने में काफी मदद मिलेगी.

रिर्सचर्स का मानना है कि नेचर एस्ट्रोनॉमी पत्रिका में प्रकाशित होने की वजह से उनके काम ने हर किसी की समझ में ला दिया. जिससे ये समझ में आ गया कि परिक्रमा करने वाले तारे ब्लैक-होल द्वारा कैसे बाधित होते हैं. वहीं लीसेस्टर यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर चुके डॉ. रॉबर्ट आइल्स-फेरिस ने कहा कि, "अतीत में हमने जो भी प्रणालियां देखी हैं, उनमें से अधिकांश में तारा पूरी तरह से नष्ट हो गया है. स्विफ्ट J0230 आंशिक रूप से नष्ट हो रहा है. यह एक रोमांचक घटनाक्रम है."

वहीं यूनिवर्सिटी ऑफ लीसेस्टर स्कूल ऑफ फिजिक्स एंड एस्ट्रोनॉमी के डॉ फिल इवांस और अध्ययन के मुख्य लेखक का कहना है कि, "यह पहली बार है जब हमने अपने सूर्य जैसे तारे को बार-बार कम द्रव्यमान वाले ब्लैक होल द्वारा टुकड़े-टुकड़े होते और समाप्त होते देखा है." नए तारे स्विफ्ट J0230 के बारे में विस्फोट के मॉडल के माध्यम से यह सुझाव दिया गया कि ये तारा सूर्य जितना बड़ा है, जो कम द्रव्यमान वाले ब्लैक-होल के पास एक अण्डाकार कक्षा में चक्कर काट रहा है. बताया जा रहा है कि स्विफ्ट J0230 का द्रव्यमान तीन पृथ्वियों के बराबर है जो ब्लैक होल में गिरकर गर्म हो गया.
 

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