कहानी एक ऐसे बाल मज़दूर की जो अब बच्चों को बाल मज़दूरी से और लड़कियों को देह व्यापार से बचा रहे हैं

कहते हैं जो दूसरों का दर्द समझता है, वहीं सच्चा इंसान कहलाता है. आज हम आपको एक ऐसे ही शख्स के बारे में बताते जा रहा हूं जिनकी कहानी सुनकर आपको उनपर गर्व होगा. इनका नाम बैदनाथ कुमार है. ये झारखंड के रांची के रहने वाले हैं.

कहानी एक ऐसे बाल मज़दूर की जो अब बच्चों को बाल मज़दूरी से और लड़कियों को देह व्यापार से बचा रहे हैं

कभी ख़ुद बाल मज़दूर थे, अब बच्चों को बाल मज़दूरी, लड़कियों को देह व्यापार से बचा रहे हैं बैदनाथ

कहते हैं जो दूसरों का दर्द समझता है, वहीं सच्चा इंसान कहलाता है. आज हम आपको एक ऐसे ही शख्स के बारे में बताते जा रहा हूं जिनकी कहानी सुनकर आपको उनपर गर्व होगा. इनका नाम बैदनाथ कुमार (Baidnath Kumar) है. ये झारखंड (Jharkhand) के रांची (Ranchi) के रहने वाले हैं. जब ये 7 साल के थे, तब से बाल मज़दूरी कर रहे थे. इनके माता-पिता इतने सक्षम नहीं थे कि बैदनाथ को अच्छे से पालन पोषण कर सकें. ऐसे में मज़बूरी में इन्हें एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (Administrative Training Institute) के मेस में काम करने भेज दिया गया. 

बचपन से काम करते करते बैदनाथ थक गए थे. उनको शुरु से लगता था कि उन्हें कुछ बड़ा करना है. मेस में काम करने के कारण उन्हें लेक्चर हॉल में प्रवेश करने की अनुमति मिल जाती थी. ऐसे में उन्होंमे बाल श्रम कानून के बारे में सुना. उन्होंने जैसे-तैसे इसके बारे में जानकारी इकठ्ठा की और उन्हें नोट कर लिया. इस एक्ट की मदद से बाल मज़दूरों को मज़दूरी से बचाया जा सकता है. 

 The New Indian Express को दिए इंटरव्यू में बैदनाथ ने बताया कि मैंने वहां के अधिकारियों से बताया कि हमें टॉर्चर किया जाता है. मैंने 14 अन्य कर्मचारियों के साथ मिलकर धरना देने का प्लान करने लगे. वायदे के मुताबिक हमें नौकरी पर परमानेंट भी नहीं किया जा रहा है. बैदनाथ ने बताया कि हमने खुद को आग लगाने की धमकी भी दी थी. बाद में मुझे गिरफ्तार कर लिया गया. बैदनाथ ने बताया कि "मेरी दी धमकी बहुत काम आई. सारे योग्य ATI कर्मचारियों को परमानेंट नौकरी पर रख लिया गया. उनलोगों को लग रहा था कि मैं कि उनके लिए और परेशानी खड़ा कर सकता हूं."

2003 में बैदनाथ ने सिविल कोर्ट कैंपस में फ़ोटोकॉपी की दुकान पर काम करना शुरु कर दिया. ये निर्णय उनके लिए बेहतरीन साबित हुआ. वहां वकील फोटोकॉपी करवाने आते थे. ऐसे में बैदनाथ को एनजीओ के बारे में जानकारी हुई. 2004 में बैदनाथ ने अपना एक एनजीओ खोल लिया. इस संस्थान का नाम उन्होंने सेवा संस्थान रखा. बैदनाथ अपने संस्थान की मदद से बच्चों और महिलाओं को शिक्षित करना चाहते थे.

आज बैदनाथ 5000 महिलाओं और बच्चों को मानव तस्करी से बचा कर उन्हें बेहतर ज़िंदगी दे रहे हैं. उन्हें पढ़ा रहे हैं और उनका ध्यान रख रहे हैं. एक सर्वे में पता चला कि करीब 7 हज़ार से ज्यादा बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं. उनका नाम सरकारी स्कूल में दर्ज है.

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बाल मज़दूर रह चुके बैदनाथ को पता है कि कम उम्र में बच्चों की ज़िंदगी पर क्या असर होता है. ऐसे में उन्होंने निर्णय लिया कि उन्हें बच्चों का सहारा बनना है. आज रांची, खुंटी और सिमडेगा के बच्चों की ज़िंदगी बेहतरीन बना रहे हैं.