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This Article is From Feb 15, 2019

स्नेहा बनीं भारत की पहली ऐसी महिला जिनकी 'ना कोई जाति ना कोई धर्म', 9 साल में जीती जंग

स्नेहा ने साल 2010 में No-Caste, No-Religion के लिए आवेदन किया और 5 फरवरी 2019 को बहुत ही मुश्किलों के बाद उन्हें यह सर्टिफिकेट मिला. अब स्नेहा पहली ऐसी शख्स या महिला बन गई हैं जिनके पास यह प्रमाणपत्र है.

स्नेहा बनीं भारत की पहली ऐसी महिला जिनकी 'ना कोई जाति ना कोई धर्म', 9 साल में जीती जंग
'ना कोई जाति ना कोई धर्म', भारत की पहली महिला बनीं स्नेहा
तमिलनाडु:

पेशे से वकील स्नेहा भारत की पहली ऐसी महिला बन गई हैं, जिनकी अब ना कोई जाति है और ना ही धर्म. स्नेहा ने खुद ये 'No Caste, No Religion' सर्टिफिकेट बनवाया है, जिसके लिए उन्हें 9 साल का समय लगा. हाल ही में 5 फरवरी को स्नेहा को उनका 'नो कास्ट, नो रिलिजन' प्रमाणपत्र मिला. स्नेहा तमिलनाडु, वेल्लोर के तिरूपत्तूर से हैं.

स्नेहा खुद ही नहीं बल्कि उनके माता-पिता भी बचपन से ही सभी सर्टिफिकेट में जाति और धर्म का कॉलम खाली छोड़ते थे.

स्नेहा ने द हिंदू को बताया कि सामाजिक परिवर्तन की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है. उससे भी ज्यादा स्नेहा को बिना जाति और धर्म के खुद की एक अलग पहचान चाहिए थी.  

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ना कोई जाति ना कोई धर्म सर्टिफिकेट

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स्नेहा ने कहा, मेरे सारे प्रमाणपत्रों में कास्ट और रिलिजन के सभी कॉलम खाली हैं. इसमें मेरा जन्म प्रमाणपत्र और स्कूल के सभी सर्टिफिकेट्स शामिल हैं. इन सभी में सिर्फ मुझे भारतीय बताया गया है. मुझे महसूस हुआ कि सभी एप्लिकेशन में सामुदायिक प्रमाण पत्र अनिवार्य था, इसीलिए मुझे एक आत्म-शपथ पत्र प्राप्त करना ही था. ताकि मैं यह कागज़ों में साबित कर सकूं कि मैं किसी जाति और धर्म से जुड़ी नहीं हूं. जब जाति और धर्म को मानने वालों के लिए प्रमाणपत्र होते हैं तो हम जैसे लोगों के लिए क्यों नहीं. 

स्नेहा ने साल 2010 में No-Caste, No-Religion के लिए आवेदन किया और 5 फरवरी 2019 को बहुत ही मुश्किलों के बाद उन्हें यह सर्टिफिकेट मिला. अब स्नेहा पहली ऐसी शख्स या महिला बन गई हैं जिनके पास यह प्रमाणपत्र है. अब स्नेहा खुद ही नहीं बल्कि वो अपनी तीन बेटियों के फॉर्म में भी जाति और धर्म का कॉलम खाली छोड़ती हैं. 

स्नेहा के इस कदम की हर जगह तारीफ हो रही है. खुद साउथ एक्टर कमल हसन ने स्नेहा और उनके प्रमाणपत्र की फोटो  ट्विटर पर शेयर की.

 

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