लंदन:
ऑस्ट्रिया के शोधकर्ताओं ने एक नई तकनीक इजाद की है, जिससे 10 दिन बाद भी किसी व्यक्ति की मौत के सही समय का पता लगाया जा सकेगा। शोधकर्ताओं के एक दल ने जानवरों की मांसपेशियों में मौजूद प्रोटीन और एंजाइम के क्षय को मापकर यह तरीका खोज निकाला है। ऑस्ट्रिया के जाल्सबर्ग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने कहा कि यह प्रक्रिया मनुष्य की मौत के बाद बीते समय का पता लगाने के लिए फोरेंसिक जांच में लागू हो सकती है।
मौजूदा दौर में मौत के 36 घंटों के बाद व्यक्ति की मौत के समय के बारे में पता लगाए जाने से संबंधित कोई भी विश्वसनीय तरीका नहीं है। शोधकर्ताओं ने मानव के नमूनों पर इस विधि का प्रयोग शुरू कर दिया है और इसके शुरुआती परिणाम आशाजनक है। मुख्य शोधकर्ता पीटर स्टाइनबाखर ने कहा कि हमने मनुष्य की मांसपेशियों के ऊतक में ठीक वही परिवर्तन और गिरावट दर्ज की जैसा कि हमने सुअर की मांसपेशियों के अध्ययन में की थी।
शोधकर्ताओं के दल ने पाया कि प्रोटीन के कुछ विश्लेषणों में यह बात सामने आई है कि 240 घंटों बाद भी उनमें कोई क्षय नहीं हुआ है। स्टाइनबाखर ने कहा कि मौत के बाद प्रोटीन का क्षय शुरू हो जाता है। यह प्रक्रिया एक नियत समय में होती है। अलग-अलग समय में प्रोटीन अलग-अलग अवयवों में बदलता है। इस तरह नमूने में मौजूद अवयव के आधार पर अंदाजा लगाया जा सकता है कि मौत कब हुई थी।
मौजूदा दौर में मौत के 36 घंटों के बाद व्यक्ति की मौत के समय के बारे में पता लगाए जाने से संबंधित कोई भी विश्वसनीय तरीका नहीं है। शोधकर्ताओं ने मानव के नमूनों पर इस विधि का प्रयोग शुरू कर दिया है और इसके शुरुआती परिणाम आशाजनक है। मुख्य शोधकर्ता पीटर स्टाइनबाखर ने कहा कि हमने मनुष्य की मांसपेशियों के ऊतक में ठीक वही परिवर्तन और गिरावट दर्ज की जैसा कि हमने सुअर की मांसपेशियों के अध्ययन में की थी।
शोधकर्ताओं के दल ने पाया कि प्रोटीन के कुछ विश्लेषणों में यह बात सामने आई है कि 240 घंटों बाद भी उनमें कोई क्षय नहीं हुआ है। स्टाइनबाखर ने कहा कि मौत के बाद प्रोटीन का क्षय शुरू हो जाता है। यह प्रक्रिया एक नियत समय में होती है। अलग-अलग समय में प्रोटीन अलग-अलग अवयवों में बदलता है। इस तरह नमूने में मौजूद अवयव के आधार पर अंदाजा लगाया जा सकता है कि मौत कब हुई थी।
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