यह ख़बर 06 दिसंबर, 2013 को प्रकाशित हुई थी

वैश्विक नेता और शांति के दूत थे नेल्सन मंडेला

नेल्सन मंडेला की फाइल तस्वीर

जोहानिसबर्ग:

दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद को खत्म करने में अग्रणी भूमिका निभाकर दुनिया भर में अन्याय के खिलाफ प्रतिरोध का प्रतीक बन चुके नेल्सन मंडेला ने न सिर्फ पूरे अफ्रीकी महाद्वीप को, बल्कि दुनिया के दूसरे हिस्सों को भी स्वतंत्रता की भावना से ओत-प्रोत किया था।

अपनी जिंदगी के 27 साल जेल की अंधेरी कोठरी में काटने वाले मंडेला अपने देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने थे, जिससे देश पर अब तक चले आ रहे अल्पसंख्यक श्वेतों के अश्वेत विरोधी शासन का अंत हुआ और एक बहु-नस्ली लोकतंत्र का उद्भव हुआ।

मंडेला महात्मा गांधी के अहिंसा के सिद्धांतों, विशेषकर वकालत के दिनों में दक्षिण अफ्रीका के उनके आंदोलनों से प्रेरित थे। मंडेला ने भी हिंसा पर आधारित रंगभेदी शासन के खिलाफ अहिंसा के माध्यम से संघर्ष किया। 95-वर्षीय मंडेला का भारत में बहुत सम्मान है। 1990 में उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किया गया था।

मंडेला फेफड़ों के संक्रमण से ग्रस्त थे और लंबी बीमारी के बाद आज तड़के उनका निधन हो गया। उन्हें 1993 में नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनका चमत्कारी व्यकित्व, हास्य विनोद क्षमता और अपने साथ हुए दुर्व्यवहार को लेकर कड़ुवाहट न होना, उनकी अद्भुत जीवन गाथा से उनके असाधारण वैश्विक अपील का पता चलता है।

दक्षिण अफ्रीका में रंगभेदी शासन के खिलाफ मंडेला की लड़ाई को भारत में अंग्रेजों के शासन के खिलाफ गांधी की लड़ाई के समान समझा जाता है। 'सत्य और अहिंसा' के लिए गांधी की हमेशा प्रशंसा करने वाले मंडेला ने 1993 में दक्षिण अफ्रीका में गांधी स्मारक का अनावरण करते हुए कहा था, गांधी हमारे इतिहास का अभिन्न हिस्सा हैं, क्योंकि उन्होंने यहीं सबसे पहले सत्य के साथ प्रयोग किया, यहीं उन्होंने न्याय के लिए अपनी दृढ़ता जताई, यहीं उन्होंने एक दर्शन एवं संघर्ष के तरीके के रूप में सत्याग्रह का विकास किया।

मंडेला ने कहा था, गांधी का सबसे ज्यादा आदर अहिंसा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के लिए किया जाता है और कांग्रेस (अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस) का आंदोलन गांधीवादी दर्शन से बहुत ज्यादा प्रभावित था, इसी दर्शन ने 1952 के अवज्ञा अभियान के दौरान लाखों दक्षिण अफ्रीकियों को एकजुट करने में मदद की। इस अभियान ने ही एएनसी को लाखों जनता से जुड़े एक संगठन के तौर पर स्थापित किया। मंडेला का जन्म 1918 में केप ऑफ साउथ अफ्रीका के पूर्वी हिस्से के एक छोटे से गांव के थेंबू समुदाय में हुआ था। उन्हें अक्सर उनके कबीले 'मदीबा' के नाम से बुलाया जाता था।

मंडेला का मूल नाम रोलिहलाहला दलिभुंगा था। उनके स्कूल में एक शिक्षक ने उन्हें उनका अंग्रेजी नाम नेल्सन दिया। मंडेला नौ साल के थे जब उनके पिता का निधन हो गया। उनके पिता थेंबू के शाही परिवार के सलाहकार थे।
 

1941 में 23 साल की उम्र में जब उनकी शादी की जा रही थी, तब मंडेला सब कुछ छोड़ कर जोहानिसबर्ग भाग गए। दो साल बाद वह अफ्रीकानेर विटवाटरस्रांड विश्वविद्यालय में वकालत की पढ़ाई करने लगे, जहां उनकी मुलाकात सभी नस्लों और पृष्टभूमि के लोगों से हुई। इस दौरान वह उदारवादी, कट्टरपंथी और अफ्रीकी विचारधाराओं के संपर्क में आए, साथ ही उन्होंने नस्लभेद और भेदभाव को महसूस किया, जिससे राजनीति के प्रति उनमें जुनून पैदा हुआ।

इसी साल मंडेला अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस (एएनसी) में शामिल हुए और बाद में एएनसी यूथ लीग की सह-स्थापना की। 1944 में एवेलिन मैसे के साथ उनकी पहली शादी हुई, जिनसे उनके चार बच्चे हुए। 1958 में दोनों का तलाक हो गया। इसके बाद मंडेला ने वकालत शुरू कर दी और 1952 में ओलिवर टांबो के साथ मिलकर देश के पहले अश्वेत वकालत संस्था की शुरुआत की।

1956 में 155 अन्य कार्यकर्ताओं के साथ मंडेला पर देशद्रोह का मामला चला, लेकिन चार साल की सुनवाई के बाद उनके खिलाफ लगे आरोप हटा लिए गए। 1958 में मंडेला ने विनी मादीकीजेला से शादी की, जिन्होंने बाद में अपने पति को कैद से रिहा कराने के लिए चलाए गए अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

1960 में एएनसी को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया और मंडेला भूमिगत हो गए। 1960 में रंगभेदी शासन के साथ तनाव बहुत बढ़ गया, जब शारपेविले नरसंहार में पुलिस ने 69 अश्वेतों की गोली मारकर हत्या कर दी। इससे अब तक चले आ रहे शांतिपूर्ण प्रतिरोध का अंत हो गया और एएनसी के तत्कालीन उपाध्यक्ष मंडेला ने आर्थिक कार्रवाई शुरू कर दी। इसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और उनपर तोड़फोड़ एवं सरकार को हटाने के लिए हिंसा का सहारा लेने के आरोप दर्ज किए गए।

ऐतिहासिक सुनवाई के दौरान उन्होंने कहा, मैंने एक लोकतांत्रिक एवं स्वतंत्र समाज के आदर्श का सपना देखा है, जिसमें सब लोग सद्भाव एवं समान अवसरों के साथ रहें। मंडेला रोबेन द्वीप पर 18 साल कैद रहे और 1982 में उन्हें यहां से पोल्समूर जेल में स्थानांतरित किया गया।

मंडेला की रिहाई पर भारी भीड़ ने उनका स्वागत किया। दिसंबर 1993 में मंडेला और अफ्रीका के तत्कालीन राष्ट्रपति एफ डब्ल्यू डी क्लार्क को नोबल शांति पुरस्कार दिया गया।

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