नई दिल्ली:
महेंद्र सिंह धोनी.. कंपनियों के लिए सबसे बड़ा ब्रांड, हारी हुई बाजी जीतने वाला बाजीगर और भारतीय क्रिकेटप्रेमियों का हर सपना पूरा करने वाला पारसमणि। भारतीय क्रिकेट के इतिहास के सबसे सुनहरे पन्ने लिखने वाले इस कप्तान ने साबित कर दिया कि उनकी कामयाबी महज तकदीर की मोहताज नहीं लिहाजा वह सिर्फ मुकद्दर के ही सिकंदर नहीं हैं। सात जुलाई 1981 को जन्में धोनी आज अपना 30वां जन्मदिन मनाएंगे। दिसंबर 2004 में अपने पहले अंतरराष्ट्रीय मैच में बांग्लादेश के खिलाफ जब वह शून्य पर आउट हुए तो किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन रांची का यह लड़का छक्का लगाकर भारत की झोली में विश्व कप डालेगा। भारत को टेस्ट क्रिकेट की बादशाहत दिलाने वाले धोनी का मिडास टच टेस्ट, वनडे, टी-20 और आईपीएल में भी दुनिया ने देखा। धोनी की कामयाबी को किस्मत की कारीगरी मानने से इनकार करते हुए उनके पहले कोच केशव रंजन बनर्जी ने कहा था, यह बात सरासर गलत है कि माही की सफलता सिर्फ उसकी किस्मत अच्छी होने के कारण है। मैंने उसे मेहनत करते देखा है। वह आज जिस मुकाम पर है, उसका श्रेय उसकी मेहनत को ही जाता है। कभी फुटबालर बनने के सपने देखने वाले धोनी संयोग से क्रिकेट खेलने लगे और आज अगर यह कहा जाये कि सचिन तेंदुलकर के बाद वह भारतीय क्रिकेट को मिला सबसे बड़ा वरदान है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। भारत ने 2007 में धोनी की कप्तानी में टी20 विश्व कप जीता तो कई लोगों ने इसे तुक्का कहकर खारिज कर दिया। इसके बाद अगले चार साल में जो हुआ, उसने सभी की धारणा बदल दी। बिहार क्रिकेट टीम के साथ 1998-99 सत्र के जरिये घरेलू क्रिकेट में पदार्पण करने वाले धोनी का चयन 2004 में कीनिया दौरे के लिए भारत-ए टीम में हुआ। श्रीलंका के खिलाफ दो अप्रैल 2011 को विश्व कप फाइनल में इतिहास रचने वाले भारतीय क्रिकेट के दो दैदीप्यमान सितारे धोनी और युवराज सिंह का सामना पहली बार 1999-2000 कूच बेहार ट्राफी में हुआ था। धोनी ने उस टूर्नामेंट की 12 पारियों में 488 रन बनाए, 17 कैच लिए और सात स्टम्प आउट किए। चार साल बाद उन्हें 23 दिसंबर 2004 को बांग्लादेश के खिलाफ चटगांव में पहला वनडे खेलने का मौका मिला लेकिन वह पहली गेंद पर रन आउट हो गए। पहले चार मैच में वह कोई कमाल नहीं कर सके लेकिन पाकिस्तान के खिलाफ विशाखापत्तम में खेले गए पांचवें मैच ने सब कुछ बदल दिया। धोनी ने 123 गेंदों में 148 रन बनाए। इसी साल श्रीलंका के खिलाफ नाबाद 183 रन की पारी खेली। वनडे क्रिकेट में बेहतरीन प्रदर्शन ने उन्हें टेस्ट टीम में जगह दिलाई। वह 2005-06 के सत्र के अंत में आईसीसी वनडे रैंकिंग में शिखर पर पहुंचे। विश्व कप 2007 में टीम के पहले दौर से बाहर होने के बाद धोनी बांग्लादेश के खिलाफ श्रृंखला में मैन ऑफ द सीरिज रहे। इसके बाद इंग्लैंड दौरे के लिये उन्हें उपकप्तान बनाया गया। सितंबर 2007 में पहले टी20 विश्व कप में उन्हें भारतीय टीम का कप्तान चुना गया और इसके साथ ही भारतीय क्रिकेट को एक ऐसा अगुआ मिला जो कठिन हालात में धर्य नहीं खोता और हारी हुई बाजी जीतने का फन बखूबी जानता है। दक्षिण अफ्रीका में पहले टी20 विश्व कप में भारत ने चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान को हराकर खिताब जीता। इसके बाद आस्ट्रेलिया के खिलाफ सितंबर 2007 में सात मैचों की वनडे श्रृंखला के लिये भी धोनी को कप्तान बनाया गया। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ नागपुर में नवंबर 2008 में खेले गए चौथे और आखिरी टेस्ट के जरिये वह टेस्ट टीम के भी कप्तान बने। तीसरे टेस्ट में घायल हुए अनिल कुंबले ने संन्यास की घोषणा कर दी और धोनी को उनका वारिस चुना गया। धोनी की कप्तानी में भारत दिसंबर 2009 में आईसीसी टेस्ट रैंकिंग में शीर्ष पर पहुंचा। धोनी 2009 में लंबे समय तक आईसीसी वनडे बल्लेबाजी रैंकिंग में शीर्ष पर रहे। उस साल उन्होंने 24 पारियों में 70 की औसत से 1198 रन बनाए। विश्व क्रिकेट में उस साल उतने रन सिर्फ रिकी पोंटिंग ने बनाये थे लेकिन उन्होंने 30 पारियों में यह कमाल किया। कैप्टन कूल धोनी की एक और सौगात विश्व कप 2011 में खिताबी जीत रही। भारत 28 साल से जिस पल का इंतजार कर रहा था, वह धोनी के बल्ले से लगे छक्के के साथ आया। श्रीलंका के खिलाफ 275 रन के लक्ष्य का पीछा करते हुए धोनी फार्म में चल रहे युवराज सिंह से पहले बल्लेबाजी के लिये आये और 79 गेंद में नाबाद 91 रन की ऐतिहासिक पारी खेली। रिति स्पोर्ट्स मैनेजमेंट एंड माइंडस्कैप के साथ जुलाई 2010 में तीन साल के लिए 210 करोड़ रूपये का करार करने वाले धोनी की कहानी किसी परीकथा से कम नहीं लगती। एक समय रेलवे में टिकट संग्राहक की नौकरी करने वाले धोनी को टाइम पत्रिका ने 2011 के सबसे प्रभावी 100 लोगों में शामिल किया। समय बदल गया, नहीं बदला तो कभी हार नहीं मानने का जज्बा जो धोनी को सबसे अलग जमात में खड़ा करता है।
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