
प्रतीकात्मक फोटो
नई दिल्ली:
छत्तीसगढ़ में जंगलों की बेतहाशा कटाई के कारण जानवरों के रहन-सहन में भी बदलाव आया है। इससे सबसे ज्यादा प्रभावित लंगूर (काले मुंह का बंदर) हुए हैं। ऐसा इसलिए माना जा रहा है क्योंकि लंगूरों ने जंगल को छोड़कर जानलेवा 90-90 फीट ऊंचे बिजली टावर को अपना आशियाना बनाना शुरू कर दिया है। यह तथ्य छत्तीसगढ़ वाइल्ड लाइफ सोसाइटी की 'एडॉप्शन ऑफ पावर टावर एस रिफ्यूज बाई ग्रे लंगूर' के एक रिसर्च के जरिए सामने आया है। राज्य के आधा दर्जन जगहों पर बकायदा इसकी तस्दीक भी हुई है। इतने खतरनाक टावर में रहने के लिए उनके बीच संघर्ष के हालात भी देखे जा रहे हैं।
टावरों को ज्यादा सुरक्षित मान रहे हैं
जानकारों का कहना है कि लंगूर टावरों को जंगल से ज्यादा सुरक्षित मान रहे हैं। छत्तीसगढ़ वाइल्डलाइफ सोसाइटी के अध्यक्ष ए.एम.के भरोस बताते हैं कि इस रिसर्च को करने से पहले हमने जानना चाहा कि बंदर टावर पर क्यों चढ़ रहे हैं? देश-दुनिया के वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट से भी बातचीत की गई। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद, पांडुका, नांदघाट व मुंगेली, बेमेतरा में सड़क से लगे टावर में लंगूरों के समूह बैठे नजर आए। इसके अलावा उन जगहों पर भी गए जहां से जंगल की दूरी कम है।
रिसर्च टीम ने निकाला नतीजा
रिसर्च टीम ने इसके लिए दो दिन इन जगहों पर गुजारे। तब यह पाया कि बंदर टावर पर रहना तो चाहते हैं लेकिन इंसानों से बचना चाहते हैं, इसलिए सूर्योदय से पहले उतर जाते हैं। वहीं अगर दिन में जाना है तो इनका समूह मॉनिटरिंग करता रहता है। एक विशेष आवाज के बाद टावर पर चढ़ते हैं। कई मौकों पर दूसरे समूह के लंगूर भी यहां आकर रहना चाहते हैं, जिससे संघर्ष की स्थिति उत्पन्ना होती है।
बस्तियों की ओर आ रहे हैं जंगली जानवर
रविवि में लाइफ साइंस विभाग के प्रोफेसर डॉ. एके पति कहते हैं कि जंगल में रहने व खाने की कमी के कारण जंगली जानवर बस्तियों की ओर आ रहे हैं। लंगूर ऊंची जगह की तलाश करते-करते टॉवर पर भी बैठ सकते है। हालांकि इस पर रिसर्च की आवश्यकता है।
जंगलों की बेहिसाब कटाई हो रही है
सूबे का 44 फीसदी इलाका जंगल है, लेकिन इसकी कटाई भी बेहिसाब हो रही है। ऐसे में वन्यजीव हाथी, भालू व हिरण भी इंसानी बस्ती की ओर रुख कर रहे हैं। बलरामपुर व रायगढ़ जिले में हाथियों का उत्पात है।
महासमुंद जिले में भालूओं का समूह गांवों में पहुंचता है। बागबाहरा के चंडी माता मंदिर में तो भालू का पूरा परिवार हर शाम यहां आता है। इसी तरह हिरण भी पानी व चारा की तलाश में बस्तियों की ओर आ रहे है। पिछले दिनों राजधानी के माना और उरला के पास वाहन की ठोकर से दो हिरणों की मौत इसका प्रमाण है।
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)
टावरों को ज्यादा सुरक्षित मान रहे हैं
जानकारों का कहना है कि लंगूर टावरों को जंगल से ज्यादा सुरक्षित मान रहे हैं। छत्तीसगढ़ वाइल्डलाइफ सोसाइटी के अध्यक्ष ए.एम.के भरोस बताते हैं कि इस रिसर्च को करने से पहले हमने जानना चाहा कि बंदर टावर पर क्यों चढ़ रहे हैं? देश-दुनिया के वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट से भी बातचीत की गई। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद, पांडुका, नांदघाट व मुंगेली, बेमेतरा में सड़क से लगे टावर में लंगूरों के समूह बैठे नजर आए। इसके अलावा उन जगहों पर भी गए जहां से जंगल की दूरी कम है।
रिसर्च टीम ने निकाला नतीजा
रिसर्च टीम ने इसके लिए दो दिन इन जगहों पर गुजारे। तब यह पाया कि बंदर टावर पर रहना तो चाहते हैं लेकिन इंसानों से बचना चाहते हैं, इसलिए सूर्योदय से पहले उतर जाते हैं। वहीं अगर दिन में जाना है तो इनका समूह मॉनिटरिंग करता रहता है। एक विशेष आवाज के बाद टावर पर चढ़ते हैं। कई मौकों पर दूसरे समूह के लंगूर भी यहां आकर रहना चाहते हैं, जिससे संघर्ष की स्थिति उत्पन्ना होती है।
बस्तियों की ओर आ रहे हैं जंगली जानवर
रविवि में लाइफ साइंस विभाग के प्रोफेसर डॉ. एके पति कहते हैं कि जंगल में रहने व खाने की कमी के कारण जंगली जानवर बस्तियों की ओर आ रहे हैं। लंगूर ऊंची जगह की तलाश करते-करते टॉवर पर भी बैठ सकते है। हालांकि इस पर रिसर्च की आवश्यकता है।
जंगलों की बेहिसाब कटाई हो रही है
सूबे का 44 फीसदी इलाका जंगल है, लेकिन इसकी कटाई भी बेहिसाब हो रही है। ऐसे में वन्यजीव हाथी, भालू व हिरण भी इंसानी बस्ती की ओर रुख कर रहे हैं। बलरामपुर व रायगढ़ जिले में हाथियों का उत्पात है।
महासमुंद जिले में भालूओं का समूह गांवों में पहुंचता है। बागबाहरा के चंडी माता मंदिर में तो भालू का पूरा परिवार हर शाम यहां आता है। इसी तरह हिरण भी पानी व चारा की तलाश में बस्तियों की ओर आ रहे है। पिछले दिनों राजधानी के माना और उरला के पास वाहन की ठोकर से दो हिरणों की मौत इसका प्रमाण है।
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)
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