अंग्रेजी की स्पेलिंग में इराक के सद्दाम हुसैन और झारखंड के सद्दाम हुसैन में अंतर है. इसके बाद भी उन्हें नौकरी नहीं मिल पा रही है. तस्वीर: प्रतीकात्मक
जमशेदपुर:
इराक के तानाशाह शासक सद्दाम हुसैन को फांसी की सजा हुए 11 साल से ज्यादा समय बीत चुके हैं, लेकिन 4000 किलोमीटर दूर भारत के झारखंड में एक युवक को उसके नाम की कीमत चुकानी पड़ रही है. झारखंड के इस 25 साल के मरीन इंजीनियर को 40 बार केवल इसलिए नौकरी देने से मना कर दिया गया, क्योंकि उसका नाम सद्दाम हुसैन है. हालांकि अंग्रेजी की स्पेलिंग में इराक के सद्दाम हुसैन और झारखंड के सद्दाम हुसैन में अंतर है. इसके बाद भी उन्हें नौकरी नहीं मिल पा रही है. झारखंड के सद्दाम बताते हैं कि उनके दादा ने उन्हें ये नाम दिया था, लेकिन वे अपनी परेशानी के लिए उन्हें जिम्मेदार नहीं मानते हैं. केवल नाम के आधार पर भेदभाव का सामना कर रहे सद्दाम ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.
हिन्दुस्तान टाइम्स के मुताबिक सद्दाम हुसैन जमशेदपुर के रहने वाले हैं और उन्होंने तमिलनाडु की नूरुल इस्लाम यूनिवर्सिटी से मरीन इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की है. परिवार के लोग बताते हैं कि दादा ने सद्दाम हुसैन नाम रखते हुए कहा था कि यह लड़का दुनिया में बड़ा नाम करेगा. अब ये नाम ही उसके लिए मुसीबत बन गई है.
इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी होने के बाद सद्दाम के सभी बैचमेट नौकरी पा चुके हैं. वहीं जब सद्दाम नौकरी के लिए आवेदन करता है तो इस क्षेत्र में नौकरी देने वाली कंपनियां उसे पहली ही बार में रिजेक्ट कर देती हैं. शुरुआत के दो-तीन बार सद्दाम को लगा कि शायद उनमें टैलेंट की कमी है इसलिए नौकरी नहीं मिली, लेकिन बाद में कंपनियों से पूछताछ करने पर पता चला कि नाम की वजह से उन्हें नौकरी नहीं दी जाती है.
सद्दाम कहते हैं, 'शायद कंपनियां इस बात से डरती हैं कि अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर अप्रवासन अधिकारियों से सद्दाम हुसैन का सामना होगा तो क्या होगा?'
साजिद नाम रखा फिर भी नहीं मिली नौकरी
दोस्तों की सलाह पर 2014 में सद्दाम हुसैन ने अपना नाम बदलकर साजिद रख लिया. इसके बाद भी उसे नौकरी नहीं मिली. दरअसल, नौकरी में जैसे ही डॉक्यूमेंट की पड़ताल की जाती तो उसमें सद्दाम हुसैन नाम लिखा होता. सर्टिफिकेट में नाम बदलने के लिए सद्दाम ने सीबीएसई और यूनिवर्सिटी के चक्कर काट चुके हैं, लेकिन फायदा नहीं हुआ. अब उन्होंने नाम बदलवाने के लिए झारखंड की कोर्ट में याचिका दायर की है. कोर्ट ने उनकी याचिका पर सुनवाई के लिए 5 मई का दिन तय किया है.
मालूूूम हो कि इराक में भी सद्दाम हुसैन नाम के लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
हिन्दुस्तान टाइम्स के मुताबिक सद्दाम हुसैन जमशेदपुर के रहने वाले हैं और उन्होंने तमिलनाडु की नूरुल इस्लाम यूनिवर्सिटी से मरीन इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की है. परिवार के लोग बताते हैं कि दादा ने सद्दाम हुसैन नाम रखते हुए कहा था कि यह लड़का दुनिया में बड़ा नाम करेगा. अब ये नाम ही उसके लिए मुसीबत बन गई है.
इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी होने के बाद सद्दाम के सभी बैचमेट नौकरी पा चुके हैं. वहीं जब सद्दाम नौकरी के लिए आवेदन करता है तो इस क्षेत्र में नौकरी देने वाली कंपनियां उसे पहली ही बार में रिजेक्ट कर देती हैं. शुरुआत के दो-तीन बार सद्दाम को लगा कि शायद उनमें टैलेंट की कमी है इसलिए नौकरी नहीं मिली, लेकिन बाद में कंपनियों से पूछताछ करने पर पता चला कि नाम की वजह से उन्हें नौकरी नहीं दी जाती है.
सद्दाम कहते हैं, 'शायद कंपनियां इस बात से डरती हैं कि अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर अप्रवासन अधिकारियों से सद्दाम हुसैन का सामना होगा तो क्या होगा?'
साजिद नाम रखा फिर भी नहीं मिली नौकरी
दोस्तों की सलाह पर 2014 में सद्दाम हुसैन ने अपना नाम बदलकर साजिद रख लिया. इसके बाद भी उसे नौकरी नहीं मिली. दरअसल, नौकरी में जैसे ही डॉक्यूमेंट की पड़ताल की जाती तो उसमें सद्दाम हुसैन नाम लिखा होता. सर्टिफिकेट में नाम बदलने के लिए सद्दाम ने सीबीएसई और यूनिवर्सिटी के चक्कर काट चुके हैं, लेकिन फायदा नहीं हुआ. अब उन्होंने नाम बदलवाने के लिए झारखंड की कोर्ट में याचिका दायर की है. कोर्ट ने उनकी याचिका पर सुनवाई के लिए 5 मई का दिन तय किया है.
मालूूूम हो कि इराक में भी सद्दाम हुसैन नाम के लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
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