बोध मछली को बचाने के लिए 15 साल से प्रयास जारी हैं. तस्वीर: प्रतीकात्मक
बस्तर:
छत्तीसगढ़ की इंद्रावती नदी में पाई जाने वाली बोध नामक मछली खत्म होने के कगार पर पहुंच गई है. यह मछली 150 किलोग्राम तक वजनी होती है. इसे लोहे के तारों की जाली बनाकर ग्रामीण पकड़ते हैं क्योंकि यह सामान्य जाल को फाड़ देती है. इस मछली को बचाने की मांग 15 साल से जारी है, लेकिन 'बस्तर की शार्क' के नाम से लोकप्रिय बोध मछली को बचाने के लिए ठोस प्रशासनिक कार्रवाई नहीं हो रही है. गर्मी के दिनों में इंद्रावती नदी का जलस्तर नीचे आते ही बड़े पैमाने पर इस मछली को पकड़ने का काम शुरू हो जाता है. लगातार पकड़े जाने के चलते अब इनकी संख्या तेजी से घटने लगी है. बारसूर बाजार में इसे खुलेआम बेचा जाता है.
बस्तर की कई पर्यावरण समितियां लंबे समय से बोध मछली को बचाने और इसे संरक्षित करने की मांग कर रही हैं, लेकिन बीते 15 साल के दौरान खत्म होने की कगार पर पहुंच चुकी बोध मछली को बचाने की कोई पहल नहीं की गई है.
मछली को राज्य मछली का दर्जा देकर इसके संरक्षण व संवर्धन की मांग की जा रही है. मछुआरा संघ के अध्यक्ष एमआर निषाद ने कहा है कि बोध मछली क्या है? और इसकी महत्ता क्या है? इस दिशा में कभी गंभीरता से काम नहीं किया गया.
छत्तीसगढ़ वन्यप्राणी संरक्षण सलाहकार समिति के वरिष्ठ सदस्य शरदचंद्र वर्मा ने बताया कि देश में लगभग हर राज्य में वहां की दुर्लभ या लोकप्रिय मछली को राज्य मछली का दर्जा दिया गया है.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
बस्तर की कई पर्यावरण समितियां लंबे समय से बोध मछली को बचाने और इसे संरक्षित करने की मांग कर रही हैं, लेकिन बीते 15 साल के दौरान खत्म होने की कगार पर पहुंच चुकी बोध मछली को बचाने की कोई पहल नहीं की गई है.
मछली को राज्य मछली का दर्जा देकर इसके संरक्षण व संवर्धन की मांग की जा रही है. मछुआरा संघ के अध्यक्ष एमआर निषाद ने कहा है कि बोध मछली क्या है? और इसकी महत्ता क्या है? इस दिशा में कभी गंभीरता से काम नहीं किया गया.
छत्तीसगढ़ वन्यप्राणी संरक्षण सलाहकार समिति के वरिष्ठ सदस्य शरदचंद्र वर्मा ने बताया कि देश में लगभग हर राज्य में वहां की दुर्लभ या लोकप्रिय मछली को राज्य मछली का दर्जा दिया गया है.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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