
गूगल में है लीव डोनेशन सिस्टम
नौकरीपेशा लोगों को गूगल की यह खबर अच्छी लगेगी और हो सकता है वे कह उठें.. काश, ऐसा मेरी कंपनी में भी होता! दरअसल, गूगल के शानदार ऑफिस के अलावा यहां की कुछ नीतियां भी लोगों को आकर्षित करती हैं। गूगल में लीव डोनेशन सिस्टम है जिसमें स्टाफ मेंबर्स जरूरत पड़ने पर एक-दूसरे को अपनी छुटि्टयां दे सकते हैं। गूगल ऐसी पहली कंपनी है जहां ऐसा कोई तरीका अपनाया गया।
दैनिक भास्कर में छपी खबर के मुताबिक, इंजीनियरों ने अपने एक सहयोगी की मदद के लिए एक बार लीव डोने की थी। इसके बाद गूगल ने इसे पॉलिसी बना लिया। कंपनी के ‘टेक योर पेरेंट्स टू वर्क डे’ इवेंट में गूगल के सीनियर वाइस प्रेजिडेंट (एचआर) लैस्ज्लो बॉक ने इस सिस्टम को अडॉप्ट करने के पीछे की कहानी सुनाई। ‘टेक योर पेरेंट्स टू वर्क डे’ इवेंट में गूगल में काम कर रहे लोगों की फैमिली को गूगल हेडक्वार्टर घूमने का मौका मिलता है।
बॉक ने बताया, 'दरअसल हमारे यहां पहले साल से लेकर तीसरे साल तक सालाना 15 पेड लीव ही मिलती हैं। चौथे से छठे साल में ये बढ़कर 20 से 25 हो जाती हैं। कई मुश्किल मौकों पर ये छटिुटयां नाकाफी होती हैं। कुछ साल पहले की बात है, हमारे एक साथी के पेरेंट्स की तबियत बिगड़ी, वह छुट्टी पर चले गए। लेकिन उनकी छुट्टी खत्म होने तक पेरेंट्स ठीक नहीं हो पाए। ऐसे में दो ही विकल्प थे, पहला-सैलरी कटवा कर छुट्टी पर रहना, दूसरा-बीमार पेरेंट को छोड़ वापस काम पर लौटना। उनके कुछ साथी इंजीनियरों को उनकी मुश्किल परिस्थितियों की जानकारी थी। लिहाजा वे लोग मेरे पास आए, हमने चर्चा की। हम पॉलिसी तो बदल नहीं सकते थे, लिहाजा विकल्पों पर चर्चा हुई। तभी उन लोगों ने अपनी-अपनी पेड लीव में से कुछ छुट्टियां डोनेट करने का आइडिया दिया। यह मेरे लिए बड़ा ही इनोवेटिव और क्रिएटिव आइडिया था। इस तरह हमने गूगल का वेकेशन डोनेशन सिस्टम बनाया। अब जरूरत के मुताबिक लोग सहकर्मियों को छुट्टियां डोनेट करते रहते हैं। इस तरह से लीव डोनेशन का यह सिलसिला चलता रहता है।'
जाहिर है, यह बेहद सहयोगात्मक रवैया है।
दैनिक भास्कर में छपी खबर के मुताबिक, इंजीनियरों ने अपने एक सहयोगी की मदद के लिए एक बार लीव डोने की थी। इसके बाद गूगल ने इसे पॉलिसी बना लिया। कंपनी के ‘टेक योर पेरेंट्स टू वर्क डे’ इवेंट में गूगल के सीनियर वाइस प्रेजिडेंट (एचआर) लैस्ज्लो बॉक ने इस सिस्टम को अडॉप्ट करने के पीछे की कहानी सुनाई। ‘टेक योर पेरेंट्स टू वर्क डे’ इवेंट में गूगल में काम कर रहे लोगों की फैमिली को गूगल हेडक्वार्टर घूमने का मौका मिलता है।
बॉक ने बताया, 'दरअसल हमारे यहां पहले साल से लेकर तीसरे साल तक सालाना 15 पेड लीव ही मिलती हैं। चौथे से छठे साल में ये बढ़कर 20 से 25 हो जाती हैं। कई मुश्किल मौकों पर ये छटिुटयां नाकाफी होती हैं। कुछ साल पहले की बात है, हमारे एक साथी के पेरेंट्स की तबियत बिगड़ी, वह छुट्टी पर चले गए। लेकिन उनकी छुट्टी खत्म होने तक पेरेंट्स ठीक नहीं हो पाए। ऐसे में दो ही विकल्प थे, पहला-सैलरी कटवा कर छुट्टी पर रहना, दूसरा-बीमार पेरेंट को छोड़ वापस काम पर लौटना। उनके कुछ साथी इंजीनियरों को उनकी मुश्किल परिस्थितियों की जानकारी थी। लिहाजा वे लोग मेरे पास आए, हमने चर्चा की। हम पॉलिसी तो बदल नहीं सकते थे, लिहाजा विकल्पों पर चर्चा हुई। तभी उन लोगों ने अपनी-अपनी पेड लीव में से कुछ छुट्टियां डोनेट करने का आइडिया दिया। यह मेरे लिए बड़ा ही इनोवेटिव और क्रिएटिव आइडिया था। इस तरह हमने गूगल का वेकेशन डोनेशन सिस्टम बनाया। अब जरूरत के मुताबिक लोग सहकर्मियों को छुट्टियां डोनेट करते रहते हैं। इस तरह से लीव डोनेशन का यह सिलसिला चलता रहता है।'
जाहिर है, यह बेहद सहयोगात्मक रवैया है।
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