एक और छापा... दिल्ली के बदनाम जीबी रोड के एक कोठे पर, जहां लड़कियों को इकट्ठा किया गया, और उन्होंने चेहरे ढक लिए अपने दुपट्टों से... ये लड़कियां जानती हैं, जब पुलिस और उनके साथ कैमरे आएं, तो उन्हें क्या करना है... कैसे करना है... वैसे, दिलचस्प तथ्य यह है कि पुलिस भी जानती है, कहां तलाशी लेनी है...
रेड के बाद अगली सुबह होती है, और ज़िन्दगी लौट आती है पुराने ढर्रे पर... सींखचों के पीछे से लड़कियां फिर आवाज़ देने लगती हैं, ग्राहकों को... इनके चेहरों पर भड़कीला मेकअप होता है, शायद दर्द और निराशा की लकीरों को छिपाने के लिए... लेकिन असलियत यह है कि अब यही इनका घर है, जहां वे अपने-अपने बर्बाद हो चुके परिवार के साथ रहती हैं...
आमतौर पर जीबी रोड पर काम इसी तरह चलता है... लड़कियों को बहका-फुसलाकर यहां लाया जाता है, और दलालों के हाथ बेच दिया जाता है... इसके बाद उन्हें अपना शरीर बेचने के लिए मजबूर किया जाता है... यहां से वे कभी बाहर नहीं निकल पातीं... लेकिन, कभी-कभी चमत्कार होते हैं...
ऐसी ही एक चमत्कारी कहानी है, जीबी रोड के एक कोठे से भागने में कामयाब रही एक लड़की की, जिसका असली नाम कुछ और ही है, लेकिन चलिए, उसे शिल्पा कह लेते हैं... शिल्पा को अच्छी नौकरी का लालच देकर दिल्ली लाया गया था, लेकिन उसे बेच दिया गया एक कोठे पर, जहां शुरू हुई उसकी दर्दनाक दास्तान...
शिल्पा ने एनडीटीवी को खुद बताया, "तीन दिन तक रोई मैं... मैंने बोला, यह काम नहीं कर सकती, तो रोज़-रोज़ मारते थे... मैंने 'मत मारो, मत मारो' कहा, तो मोबाइल फोन पर रिकॉर्डिंग करवाई..."
एनडीटीवी ने जब सवाल किया, "क्या रिकॉर्डिंग करवाई...", तो शिल्पा का जवाब था, "मुझसे बुलवाया, मैं अपनी मर्ज़ी से यहां आई हूं... मुझे (पैसा) कमाना था... पांव पर खड़े होना था... मेरी मर्ज़ी से मैं काम करने आई हूं..."
एनडीटीवी : वहां पर आपने क्या देखा... किस तरह का माहौल था...?
शिल्पा : लड़कियों को छोटे-छोटे कपड़े पहनाते हैं... वहां पर अच्छी तरह तैयार करवाते हैं... मेरे को भी वैसा ही कर दिया वहां...
एनडीटीवी : नाबालिग लड़कियां भी हैं वहां पर...?
शिल्पा : हां, छोटी-छोटी लड़कियां हैं वहां पर, बहुत सारी, उनमें से 75 प्रतिशत लड़कियां धोखे से लाई गई हैं, मेरी तरह, बाकी अपनी मर्ज़ी से आई हैं...
बहरहाल, कई दिन तक मारपीट, जबरदस्ती के बाद देश के दूसरे कोनों से पहुंचीं लड़कियों की तरह शिल्पा भी टूट गई, और सेक्सवर्कर के तौर पर काम करने लगी...
लेकिन एक दिन... किस्मत ने उसका साथ दिया, और उसका एक ग्राहक उसकी कहानी सुनकर मदद के लिए राजी हो गया... शिल्पा ने बताया, "वह कस्टमर आए थे... उनका चेहरा देखकर लगा कि वह अच्छे इंसान हैं... थोड़ा देखा, बात की तो अच्छे लगे... मैंने उन्हें सब बता दिया..."
इसके बाद उस ग्राहक ने शिल्पा की बात उसके भाई से करवा दी, और शिल्पा ने बता दिया कि वह कहां है... भाई तुरन्त कर्नाटक पुलिस के पास पहुंचा, और वहां से एक पुलिस टीम के साथ दिल्ली आया... स्थानीय पुलिस से संपर्क किया गया, और छापा मारने की योजना बनी... लेकिन जब छापा पड़ा, शिल्पा वहां से लापता हो चुकी थी... क्योंकि कोठा मालिकों को रेड की खबर मिल चुकी थी...
शिल्पा का कहना है, "वहां पुलिस के आने का मालूम पड़ जाता है... आधे घंटे पहले ही... कैसे मालूम पड़ जाता है, मालूम नहीं, लेकिन पता चलते ही ये लोग लड़कियों को सूट पहनाकर बाहर भेज देते हैं... या फिर एक छोटी-सी जगह पर 20-30 लड़कियों को घुसेड़ देते हैं..."
एनडीटीवी : वहां क्या कोई केबिन हैं...?
शिल्पा : हां, छोटे-छोटे रूम है... छोटी-छोटी खिड़कियां... पुलिस आए तो वहीं छिपाते हैं... उसमें कुछ नहीं है... हवा तक नहीं... सिर्फ अंधेरा... मर भी जाती हैं लड़कियां वहां पर...
एनडीटीवी : क्या लोकल पुलिस मिली हुई है...?
शिल्पा : हां, यह बात मैं गारंटी से बोल सकती हूं कि लोकल पुलिस मिली हुई है...
बहरहाल, पुलिस की रेड में कुछ न मिलने पर भी शिल्पा के भाई ने हार नहीं मानी... उसने कोठा नंबर 42 पर फिर दो आदमी भेजे, जो इस बार मोबाइल फोन से शिल्पा की तस्वीर खींचने में कामयाब रहे, जो इस बात का सबूत था कि शिल्पा अब भी उस कोठे पर मौजूद है...
लोकल पुलिस से शिल्पा के भाई को मदद नहीं मिल पा रही थी... आमतौर पर लोकल पुलिस का रवैया लापरवाही-भरा इसलिए होता है, क्योंकि ये कोठे उनके लिए मंथली, यानि महीने की एकमुश्त रिश्वत का जरिया होते हैं, हालांकि इस मामले में लोकल पुलिस इससे साफ इंकार कर रही है...
आखिरकार, शिल्पा के भाई ने एनडीटीवी इंडिया से भी मदद मांगी, और फिर हमने बात की क्राइम ब्रांच के एडिशनल कमिश्नर रवींद्र यादव से... उन्होंने बताया कि ऐसे बहुत सारे केस होते हैं, जिनमें लड़कियां बाहर से लाई जाती हैं, और उन्होंने दावा किया कि वे लोग (पुलिस) ऐसे मामलों में फौरन कार्रवाई भी करते हैं... उन्होंने कहा कि इस मामले में भी सूचना मिलते ही उन्होंने टीम तैयार कर दी थी...
खैर, एडिशनल कमिश्नर के आदेश पर क्राइम ब्रांच की एक टीम छापेमारी के लिए तैयार थी, लेकिन इस बार भी कोठे की मालकिन को रेड की ख़बर मिल गई, और लगभग 15 लड़कियों के साथ शिल्पा को सीताराम बाजार के एक ब्यूटी पार्लर में भेज दिया गया, जो उसके लिए बहुत मुफीद साबित हुआ, क्योंकि वहां उसे एक मौका मिला, और वह भाग निकली...
सो, अब शिल्पा खुद तो आज़ाद है, लेकिन चाहती है कि इन कोठों पर रहने वाली उसके जैसी और सैकड़ों लड़कियों को भी आज़ादी मिल जाए, वहां कैदी बनकर सभी तरह के जुल्म सहने को मजबूर हैं... इस मामले में शिल्पा की किस्मत और पुलिस का दबाब कुछ रंग लाया, और आज शिल्पा आज़ाद होकर अपने घर लौट गई है... लेकिन उसे यहां तक पहुंचाने वाले किसी भी गुनाहगार को न कनार्टक पुलिस पकड़ पाई है, और न दिल्ली पुलिस...
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