रायपुर:
पुरातात्विक दृष्टिकोण से छत्तीसगढ़ बेहद अहम रहा है. यहां आमतौर पर हर जिले में हजारों साल पुराने इतिहास पुरातात्विक खुदाई में मिलते रहते हैं. राजिम में सिंधु घाटी की सभ्यता के समान ही लगभग साढ़े तीन हजार साल पहले की सभ्यता का पता लगा है. वहीं सिरपुर में भी ढाई हजार साल पहले के इतिहास सामने आए हैं. अभी हाल ही में कवर्धा जिले के बम्हनी गांव में युवाओं की टोली ने कमाल करते हुए पत्थरों और कचरों से पट चुकी सैकड़ों साल पुरानी बावली (कुंआ) को खुदाई कर निकालने में सफलता पाई है. ये बावली गांव के प्राचीन तालाब से लगी हुई है. ग्रामीणों का मानना है कि ये बावली करीब सवा सौ साल पुरानी होगी.
पुरातत्व विभाग के संचालक आशुतोष मिश्रा ने सप्ताहभर के भीतर टीम भेजकर बावली के इतिहास खंगालने की बात कही है.
गांव के सरपंच कमलेश कौशिक ने बताया कि युवाओं की टोली ने एक महीने पहले ही आठ जनवरी को बावली खोदना शुरू कर दिया था. नौ फरवरी तक खोदने के बाद इस बावली में पानी निकल आया. ग्रामीणों का मानना है कि बम्हनी में पहले कबीरपंथ के गुरु कंवल दास भी रहा करते थे. यहां माता साहेब की समाधि भी है. ग्रामीणों का कहना है कि बावली का इस्तेमाल स्नान या दूसरे प्रयोजन लिए होता रहा होगा.
ग्रामीणों के अनुसार, बावली में एक के बाद एक कुल 21 सीढ़ियां मिली हैं. 35 फीट खोदने के बाद पानी निकला. बताया जा रहा है कि खुदाई में घोड़े के अवशेष, कांसे की थाली, शिवलिंग व नंदी की मूतियों के साथ अन्य मूर्तियां भी मिली हैं.
पुरातत्वविद् आदित्य श्रीवास्तव का कहना है कि यह बावली लगभग सवा सौ साल पुरानी प्रतीत होती है. ग्रामीणों से बातचीत में कबीरपंथ के धर्मगुरुओं द्वारा बावली खुदवाने की बात सामने आई है.
पुरातत्व विभाग के संचालक आशुतोष मिश्रा ने सप्ताहभर के भीतर टीम भेजकर बावली के इतिहास खंगालने की बात कही है.
गांव के सरपंच कमलेश कौशिक ने बताया कि युवाओं की टोली ने एक महीने पहले ही आठ जनवरी को बावली खोदना शुरू कर दिया था. नौ फरवरी तक खोदने के बाद इस बावली में पानी निकल आया. ग्रामीणों का मानना है कि बम्हनी में पहले कबीरपंथ के गुरु कंवल दास भी रहा करते थे. यहां माता साहेब की समाधि भी है. ग्रामीणों का कहना है कि बावली का इस्तेमाल स्नान या दूसरे प्रयोजन लिए होता रहा होगा.
ग्रामीणों के अनुसार, बावली में एक के बाद एक कुल 21 सीढ़ियां मिली हैं. 35 फीट खोदने के बाद पानी निकला. बताया जा रहा है कि खुदाई में घोड़े के अवशेष, कांसे की थाली, शिवलिंग व नंदी की मूतियों के साथ अन्य मूर्तियां भी मिली हैं.
पुरातत्वविद् आदित्य श्रीवास्तव का कहना है कि यह बावली लगभग सवा सौ साल पुरानी प्रतीत होती है. ग्रामीणों से बातचीत में कबीरपंथ के धर्मगुरुओं द्वारा बावली खुदवाने की बात सामने आई है.
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